अग्निपरीक्षा का शंखनाद

Update: 2017-01-05 00:00 GMT


उत्तरप्रदेश सहित पांच राज्यों में चुनाव तिथियों की घोषणा के बाद अब देश का राजनीतिक माहौल पूरी तरह से गर्मा गया है। सभी राजनीतिक दलों के लिए सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण उत्तरप्रदेश का चुनाव है। यह कहा जाता है कि दिल्ली का रास्ता उत्तरप्रदेश के चुनाव नतीजों पर काफी हद तक निर्भर करता है। इस दृष्टि से देखा जाए तो यह केन्द्र में सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के लिए भी किसी अग्नि परीक्षा से कम नहीं होगा। देश की जनता की नजर भी पूरी तरह उत्तरप्रदेश के चुनाव नतीजों पर रहेगी। यह चुनाव इस कारण भी अहमियत रखते हैं क्योंकि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा 8 नवंबर को की गई नोटबंदी के बाद उनके ऊपर इसके पक्ष और विपक्ष को लेकर तीखी बहस देखने को मिली है।
Full View Full View Full View Full View Full View

उत्तरप्रदेश सहित पांच राज्यों के नतीजे यह साबित करेंगे कि यहां की जनता ने नोटबंदी को कितना पसंद या ना पसंद किया। वैसे गुजरात, महाराष्ट्र के नगरीय निकाय चुनाव सहित मध्यप्रदेश जैसे राज्यों में हुए उपचुनाव में भाजपा ने रिकार्ड मतों से जीत का वरण किया, उधर उत्तरप्रदेश की ही बात की जाए तो पिछले एक माह से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी यहां के लगातार दौरे कर रहे हैं। कानपुर, आगरा, लखनऊ जैसे बड़े शहरों में आयोजित मोदी की सभाओं में जबरदस्त भीड़ देखने को मिली। लखनऊ और कानपुर की सभाएं तो रिकार्ड तोड़ भीड़ वाली थीं। हालांकि इन सभाओं को सीधे चुनाव से जोडक़र देखना थोड़ा जल्दबाजी होगी बावजूद इसके नरेन्द्र मोदी के समर्थन में यहां जिस प्रकार की  नारेबाजी और उत्साह देखने को मिला वह अपने आप में बहुत कुछ संकेत देता है। जहां तक उत्तरप्रदेश में भाजपा के अलावा अन्य राजनीतिक दलों की बात है, तो वहां सत्ताधारी समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी का भी जनता के बीच प्रभाव रहा है। कभी उत्तरप्रदेश की राजनीति में गहरी पैठ रखने वाली कांग्रेस अब उत्तरप्रदेश में जनाधार विहीन हो चली है।

उसके पास न नेतृत्व है और न मुद्दों को ठीक ढंग से उठाने की ताकत, कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी ने उत्तरप्रदेश के बेजान हो चुके नेताओं में हवा भरने के लिए खाट सभाएं जरूर आयोजित की लेकिन यह सभाएं केवल हो-हल्ले और खाट लूटने के लिए जुटी भीड़ से ज्यादा कुछ नहीं कर सकीं। उधर कभी सत्ता में रही मायावती की बहुजन समाज पार्टी उत्तरप्रदेश में कुछ चमत्कार कर पाएगी फिलहाल ऐसा नजर नहीं आता। हालांकि मायावती ने स्वयं के ऊपर दलितों, पिछड़ों की पार्टी होने का ठप्पा हटाने के लिए इस बार यह साबित करने की कोशिश की है कि उन्होंने इस बार दलितों से ज्यादा मुस्लिम और सवर्णों को टिकट दिए हैं। उन्होंने यह भी कहा है कि हम जातिवादी नहीं हैं, लेकिन उनकी असलियत क्या है? उत्तरप्रदेश की जनता भली प्रकार जानती है। वह कई बार मायावती की मायावी और झूठे वादों को भुगत चुकी है, यही वजह है कि बसपा सत्ता की दौड़ से काफी पीछे दिखाई दे रही है। उधर प्रदेश के शासन की बागडोर संभालने वाली समाजवादी पार्टी में छिड़ी कुनबे की जंग ने उसके लिए समस्या जरूर खड़ी कर दी है, लेकिन राजनीतिक पंडितों की मानें तो यह सब नाटक-नौटंकी से ज्यादा कुछ नहीं है। आने वाले चंद दिनों में सुलह के साथ इसका पटाक्षेप हो जाएगा। इस प्रकार उत्तरप्रदेश चुनाव में जहां भाजपा, सपा के बीच सीधा मुकाबला  होने की संभावना है वहीं कुछ चुनाव क्षेत्रों में त्रिकोणीय संघर्ष भी देखने को मिल सकता है। जहां तक चुनावी मुद्दों की बात है प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भाजपा के वरिष्ठ नेता वेंकैया नायडू जैसे नेताओं ने भाजपा के चुनाव एजेंडे को पूरी तरह से साफ करते हुए कहा है कि वह केवल और केवल विकास के मुद्दे पर चुनाव में जनता के बीच जा रहे हंै। भले ही प्रधानमंत्री भाजपा के लिए विकास को उत्तरप्रदेश का प्रमुख चुनावी मुद्दा बता रहे हैं लेकिन बसपा और सपा और कांग्रेस जैसे राजनीतिक दलों की छल-कपट जातिवाद और तुष्टीकरण वाली राजनीति से कैसे निपटेंगे यह महत्वपूर्ण होगा और इससे सचेत रहने की भी जरूरत है।

 

अन्य ख़बरे....

350वें प्रकाशोत्सव पर आये पीएम मोदी से नीतीश की बढ़ी नजदीकियां, लालू व तेजस्वी पड़े अलग-थलग

भारत को एक खिलाड़ी के रूप में धोनी की सख्त जरूरत : गावस्कर

Similar News