भारतीय राजनीति में विशेषकर मध्यप्रदेश के परिप्रेक्ष्य में श्री ज्योतिरादित्य सिंधिया का भारतीय जनता पार्टी में शामिल होना एक असाधारण राजनीतिक घटना है। इसे सिर्फ एक सामान्य दल बदल मान कर देखना भूल होगी। यह एक साहसिक प्रयोग है जिसके लिए न केवल श्री सिंधिया अभिनंदन के पात्र हैं, अपितु भाजपा का शीर्ष नेतृत्व भी अभिनंदन का हकदार है। इतना ही नहीं यह प्रयोग जमीन पर आकार ले इसके लिए मध्यप्रदेश भाजपा का नेतृत्व भी बधाई का पात्र है, जिसने न केवल स्वयं को भावनात्मक लिहाज से तैयार किया, अपितु उसे सफल बनाने में अपना योगदान भी दिया। कांग्रेस मुक्त भारतीय राजनीति की कल्पना करना अनुचित है, पर आज कांग्रेस नेतृत्व जहां देश को ले जाना चाहता है, उससे मुक्त होना आवश्यक है। इस लिहाज से यह प्रयोग अगर ठीक ठीक आगे बढ़ता है तो उ मीद की जानी चाहिए कि आने वाले निकट भविष्य में कम से कम विशेषकर उत्तर पश्चिमी भारत से कांग्रेस में आमूलचूल परिवर्तन की मांग तेज होगी और कांग्रेस गांधी परिवार से अवश्य मुक्त होगी, जिसकी देश को प्रतीक्षा है।
बहरहाल यह भविष्य का विषय है। तत्कालीन राजनीतिक परिवर्तन के लिहाज से श्री सिंधिया का कांग्रेस से बाहर आना एवं भाजपा में शामिल होना मध्यप्रदेश में कमलनाथ सरकार की विदाई की राजनीतिक जमीन तैयार कर चुका है। मु यमंत्री कमलनाथ एवं उनके सलाहकार कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह यद्यपि सारे हथकंडे अपनाएंगे, पर परिणाम से वह भी संभवत: अवगत होंगे। बैंगलुरु में 20 विधायक सिंधिया के पक्ष में लामबंद है और यह सं या आने वाले दिनों में और बढ़ेगी इसकी पूरी संभावना है।
पर, यह परिवर्तन सिर्फ मध्यप्रदेश में भाजपा की वापसी और ज्योतिरादित्य सिंधिया को केन्द्र में मंत्री बनकर ठहर गया तो अधूरा होगा। आज देश के समक्ष जो चुनौतियां हैं और जो अवसर हैं, उस लिहाज से इस राजनीतिक घटनाक्रम को सही दिशा में पूर्णता की ओर ले जाने में स्वयं श्री सिंधिया को अतिरिक्त मेहनत करनी होगी। जैसा कि आज उन्होंने भाजपा मु यालय में कहा भी है कि राजनीति उनके लिए जन सेवा एवं देश सेवा का माध्यम है। भाजपा की शीर्षतम नेत्री राजामाता सिंधिया ने कांग्रेस का साथ अपने निजी हितों के लिए नहीं छोड़ा था, वे भारतीय राजनीति में शुद्धिकरण के लिए जनसंघ में आईं और न केवल जनसंघ से जुड़ीं, अपितु मूल्य आधारित समाज के निर्माण में अपने आप को समर्पित कर दिया। परिणाम वह राजमाता से लोकमाता बनीं। वह चाहती थीं कि उनकी इस पर परा को उनके बेटे स्व. माधवराव सिंधिया आगे बढ़ाएं, पर वे जनसंघ से कांग्रेस में चले गए। क्यों गए, आज वह लिखने का अवसर नहीं है। उनके जीवन में फिर एक अवसर आया, जब कांग्रेस ने उन्हें अपमानित किया। भाजपा ने उनका साथ दिया और वे ग्वालियर से सांसद बने, पर स्व. श्री सिंधिया अवसर का लाभ देश हित में नहीं ले पाए और कांग्रेस ने भी उनके साथ न्याय नहीं किया। आज इतिहास रचने का अवसर श्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के पास है। मध्यप्रदेश में उनका अपना सिंधिया राजवंश के कारण आधार है। शेष प्रदेशों में भी एक याति है। आज वह भारतीय जनता पार्टी के मंच से जुड़े हैं। यह वह राजनीतिक दल है, जहां योग्यता को स मान है, अनुशासन को वरीयता है, निष्ठा को नमन है। श्री सिंधिया योग्य हैं, उनकी क्षमताएं भी असीमित हैं। आज वह अकेले भी नहीं आ रहे हैं उनके पीछे उनके समर्थक जो आज कांग्रेस में भी शीर्ष पर हैं, भाजपा में आने वाले है। कार्य संस्कृति में जमीन आसमान का कई मोर्चों पर अंतर है। यह उनके लिए भी आसान नहीं होगा एवं भाजपा के स्थानीय नेतृत्व के लिए भी। अत: आने वाले दिनों में सहज, सरल नियमित संवाद एवं परस्पर विश्वास का वातावरण निर्मित करना एक बड़ी चुनौती होगा। ध्यान रहे दिग्विजयी मानसिकताएं यह प्रयोग असफल हों, इसके लिए सारे प्रयास करेगी। अत: सतर्कता से आगे बढऩे की आवश्यकता है।
- एक सकारात्मक परिवर्तन के लिए यह परिवर्तन शुभ हो यही शुभकामना।