दान की घड़ी प्रदेश में खासकर ग्वालियर चंबल संभाग में जल्दी आ गई है। दान से आशय मतदाता से है। यूं तो दान हमारी भारतीय संस्कृति का वैशिष्ट्य है पर लोकतंत्र में मतदान की अवधि का एक नियमित अंतराल होता है। पर प्रदेश के बदले राजनीतिक हालात ने उपचुनाव की अनिवार्यता को सामने खड़ा किया और कल जब आप यह पंक्तियां पढ़ रहे होंगे, मध्यप्रदेश की 28 विधानसभाओं में एक साथ उपचुनाव का मतदान शुरु हो चुका होगा। उपचुनाव सामान्यत: एक दो सीटों के लिए होता आया है पर मध्यप्रदेश के उपचुनाव अपने आप में अभूतपूर्व हैं और मतदाताओं की कठिन परीक्षा का समय है। देश ने लोकतंत्र की हर कड़ी परीक्षा का सामना किया है और मतदाताओं ने यह प्रमाणित किया है कि वह हर कठिन प्रश्न का उत्तर देने में सक्षम है।
मध्यप्रदेश में यह हालात क्यों बने, हम सब जानते हैं। यह अवसर था राजनीतिक दलों के लिए, प्रत्याशियों के लिए उपचुनाव की प्रासंगिकता या दुर्भाग्य से बनी परिस्थिति दोनों ही को लेकर गंभीर प्रश्न एवं उत्तर लेकर जनता तक जाने का। पर चूंकि कांग्रेस ने सरकार को गंवा दिया था तो उपचुनाव की भाषा का स्तर इस बार और स्तरहीन हुआ। यह पीड़ादायक रहा। कांग्रेस अपना पक्ष और बेहतर तरीके से रख कर अपने 15 माह की सरकार की उपलब्धियों को लेकर जनता के पास जा सकती थी। लेकिन कांग्रेस ने यह साहस नहीं दिखाया। क्यों नहीं दिखाया यह उसकी रणनीति भी हो सकती है या विवशता भी। भाजपा के पास भी यह अवसर था कि वह इसका उत्तर और सकारात्मक पद्धति से दे। प्रयास नहीं हुए। ऐसा नहीं पर आरोप का उत्तर सिर्फ आरोप या प्रत्यारोप नहीं है। लोकतंत्र को और परिपक्व करने के लिए राजनीतिक दलों को यह साहस दिखाना होगा।
यह चुनाव खासकर ग्वालियर चंबल अंचल में भाजपा से भी अधिक श्री ज्योतिरादित्य सिंधिया को कसौटी पर कसने का चुनाव है। सिंधिया राजवंश के प्रति अंचल में एक विशिष्ट आदर है। चुनाव के दौरान राजवंश पर कीचड़ उछालने का भरपूर प्रयास हुआ है और सारी सीमाएं लांघ कर हुआ है। अब मतदाता इसका उत्तर किस प्रकार देते हैं, यह परिणाम बताएंगे।
प्रदेश के मतदाता ने बेहद धैर्य के साथ सबको सुना है। वह भाजपा के 15 साल के शासनकाल को भी याद कर रहा है। दिग्विजय सिंह के 10 साल के शासनकाल को भी भूला नहीं है। कांग्रेस के 15 माह के हाल ही के कार्यकाल की याद भी ताजा ही है। वह यह भी देख रहा है कि आज जो दल बदल कर आए हैं, वे भी सरकार के अंग थे। वह इन सबसे ऊपर उठकर राष्ट्रीय प्रश्नों एवं उनके समाधान पर भाजपा एवं कांग्रेस की क्या भूमिका है। वह यह भी समझ रहा है। बेशक चुनाव उपचुनाव है, एक प्रदेश के हैं पर देश को मजबूत करने के लिए क्या निर्णय लेना है, यह भी वह समझ रहा है। जाहिर है निर्णय आसान नहीं है। अत: मतदाता खामोश है, मुखर नहीं है। गुलाबी सर्दी में राजनेताओं के माथे पर पसीने का यही कारण है।
मतदाता देश हित में, प्रदेश हित में, वैश्विक महामारी के आतंक के बीच एक और परीक्षा देने का मन बना चुका है। हमारी शुभकामनाएं