राष्ट्रपति भवन (नई दिल्ली)। शपथ लेना तो सरल है पर निभाना कठिन है। यह एक गीतकार की सुंदर पंक्तियां हैं पर आज जब देश के प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र दामोदर दास मोदी शपथ ले रहे थे तो सारा देश देख रहा था कि आज की शपथ वाकई असाधारण है, अद्भुत है और प्रामाणिक है। कारण देश ने देखा है, अनुभव किया है कि बीते पांच वर्षों में मोदी और उनकी टीम ने अपना सम्पूर्ण देने का प्रयास किया है और आज इसीलिए न केवल राष्ट्रपति भवन के भव्य एवं दिव्य समारोह स्थल पर देश का सांकेतिक स्वरूप अपितु सम्पूर्ण देश ने आज इस शपथ समारोह को एक सुखद आश्वस्ति के रूप में अनुभव किया।
श्री नरेन्द्र मोदी वाकई स्वतंत्र भारत के ऐसे राजनेता के रूप में आगामी कई दशकों तक जाने जाएंगे जो जनता की नब्ज पर हाथ रखना जानते हैं। आज सुबह जब देश के कोने कोने से मंत्री शामिल हुए तब उन्होंने एक साथ कई भावुक दृश्य देखे। आज भाजपा के 303 सांसद सुबह देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई की समाधि पर नतमस्तक थे। नि:संदेह स्वर्ग से आज अटल जी ने अपने शिष्य नरेंद्र मोदी को आशीर्वाद दिया होगा क्योंकि एक वोट से सरकार गिरने का दर्द अटलजी से अधिक कौन जानता है। श्री मोदी यहीं नहीं गए वह शांति एवं सादगी का संदेश देने वाले महात्मा गांधी की समाधि पर नमन करने गए अपितु विश्व में भारत के शौर्य का प्रदर्शन करने वाले सैनिकों को भी श्रद्धा सुमन अर्पित करने गए । यह ऐसी सुखद परम्परा है जिसका अभिनंदन करना चाहिए।
शपथ ग्रहण समारोह में पश्चिम बंगाल में लोकतंत्र की रक्षा के लिए अपने प्राण देने वालों के परिजनों की उपस्थिति एक भावुक दृश्य उपस्थित कर रही थी। शपथ समारोह इस परिप्रेक्ष्य में भी उल्लेखनीय है कि भाजपा ने ऐतिहासिक विजय दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले देश भर के चिन्हित कार्यकर्ताओं को भी सम्मान के साथ आमंत्रित किया। मोदी का मंत्र सबका साथ इस स्वरूप में संगठन में भी लागू हुआ।
शपथ समारोह में बिम्सटेक देशों की विश्वास पूर्वक उपस्थिति बता रही थी कि आज भारत का मस्तक विश्व के मानचित्र में गर्व से ऊंचा है वहीं पाकिस्तान को न बुलाकर मोदी ने अपनी विदेश नीति का एक कठोर संदेश भी दे दिया। समारोह स्थल पर राजनीतिक क्षेत्र के अलावा कला,अर्थ जगत, धार्मिक,खेल फिल्म ,उद्योग एवं समाज जीवन के लगभग सभी क्षेत्रों के शीर्ष हस्तियों की उपस्थिति आज देश की आंतरिक राजनीति को संदेश दे रही थी कि अब भाजपा सर्वव्यापी ही नहीं है सर्वस्पर्शी भी है। सबका साथ सबका विकास एवं अब सबका विश्वास का इस से अधिक सुंदर प्रगतिकरण और क्या होगा, क्या यह शपथ असाधारण नहीं है ?