कैग रिपोर्ट में खुलासा: मध्य प्रदेश में ई-भुगतान प्रणाली से भ्रष्टाचार, आपदा राहत में 23.81 करोड़ का गबन
MP CAG Report : भोपाल। मध्य प्रदेश (MP) में प्राकृतिक आपदा के पीड़ितों को मिलने वाली राहत राशि और संबल योजना में घोटाले का बड़ा खुलासा हुआ है। नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) की रिपोर्ट के मुताबिक, राज्य में 13 जिलों में करीब 23.81 करोड़ रुपये की राशि फर्जी बैंक खातों में ट्रांसफर की गई है। यह राशि सरकारी कर्मचारियों और उनके रिश्तेदारों के खातों में चली गई। कैग ने इस मामले में सख्त कार्रवाई की सिफारिश की है और इन जिलों में स्वतंत्र जांच एजेंसी से जांच कराने की सलाह दी है।
ई-भुगतान प्रणाली का भ्रष्टाचार
प्राकृतिक आपदाओं से प्रभावित लोगों को मुआवजा देने के लिए सरकार ने ई-भुगतान प्रणाली (IFMIS) को अपनाया था, ताकि राहत वितरण में पारदर्शिता और भ्रष्टाचार को रोका जा सके। हालांकि, यह प्रणाली खुद भ्रष्टाचार का माध्यम बन गई है।
2018 से 2022 के बीच मप्र में आपदा से प्रभावित लोगों को 10,060 करोड़ रुपये की राहत राशि वितरित की गई। लेकिन इसमें से 13 जिलों में 23.81 करोड़ रुपये फर्जी खातों में ट्रांसफर किए गए, जिनके लिए सरकारी कर्मचारियों ने फर्जी स्वीकृति आदेश तैयार किए और अपने तथा रिश्तेदारों के खातों में राशि ट्रांसफर करवा ली।
संबल योजना में अफसरों का घोटाला
कैग की रिपोर्ट में यह भी खुलासा हुआ है कि संबल योजना में मजदूरों के हक की राशि 2.47 करोड़ रुपये हड़प ली गई। बड़वानी जिले के राजपुर और सेंधवा जनपद पंचायतों में सीईओ और लेखपाल ने मिलकर यह राशि अपने और अपने करीबी लोगों के खातों में ट्रांसफर कर ली। इसके अलावा, एक मृत मजदूर के नाम पर 89.21 लाख रुपये निकाले गए जो नियमों का उल्लंघन था।
साथ ही, जिन मजदूरों को पहले ही संबल योजना का लाभ मिल चुका था, उन्हें बिना किसी ठोस कारण के 72.60 लाख रुपये अतिरिक्त दे दिए गए। रिपोर्ट में यह भी सामने आया कि श्रम विभाग ने 2.18 करोड़ मजदूरों का पंजीयन किया था, लेकिन बाद में 67.48 लाख मजदूरों को अपात्र घोषित कर दिया।
योजनाओं में बजट की कमी
संबल योजना में सरकार ने कई श्रमिकों के लिए योजनाएं बनाई थीं, लेकिन इनमें से कई योजनाओं के लिए बजट का प्रावधान ही नहीं किया गया। उदाहरण के लिए उपकरण अनुदान योजना और निशुल्क कोचिंग योजना बनाई गईं, लेकिन इन योजनाओं के लिए बजट नहीं रखा गया, जिसके कारण ये योजनाएं कागजों तक ही सीमित रह गईं और जरूरतमंद मजदूरों को इनका कोई लाभ नहीं मिला।