सुप्रीम कोर्ट की किसान संगठनों को सख्त नसीहत, "प्रदर्शन का हक, सड़क बंद करने का नहीं"
नईदिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया है कि किसानों को विरोध प्रदर्शन का अधिकार है, पर सड़कों को बंद नहीं किया जा सकता है। इस मसले का हल निकलना चाहिए। कोर्ट ने किसान संगठनों को जवाब दाखिल करने के लिए वक्त दिया। मामले की अगली सुनवाई 7 दिसंबर को होगी।
सुनवाई के दौरान जस्टिस संजय किशन कौल ने कहा कि नोटिस के जवाब में दो ही संगठन यहां पहुंचे हैं। सुनवाई के दौरान किसान संगठनों की ओर से वकील दुष्यंत दवे ने कहा कि सड़क किसानों ने नहीं, पुलिस की ओर से किये गए इंतजामों की वजह से बंद हुई है। हमें रामलीला मैदान नहीं आने दिया गया, पर बीजेपी ने वहीं रैली की। हमें रामलीला मैदान आने दिया जाए, सड़क खाली हो जाएगी। तब सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने 26 जनवरी को हुई हिंसा का हवाला दिया। उन्होंने कहा कि प्रवेश की इजाजत देने का ये नतीजा हुआ। किसान संगठनों की ओर से अंडरटेकिंग देने के बावजूद हिंसा हुई। मेहता ने कहा कि इस प्रदर्शन के पीछे कुछ छिपे हुए उद्देश्य भी हैं। तब दवे ने आरोप लगाया कि हिंसा प्रायोजित थी। जो लालकिले पर चढ़े , उन्हें जमानत भी मिल गई और सरकार को एतराज भी नहीं हुआ।
43 किसान संगठनों को नोटिस -
4 अक्टूबर को किसान आंदोलन के चलते बाधित दिल्ली की सड़कों को खोलने की मांग करने वाली एक दूसरी याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने 43 किसान संगठनों को नोटिस जारी किया था। जस्टिस संजय किशन कौल की अध्यक्षता वाली बेंच ने किसान संगठनों को पक्षकार बनाने की मांग पर ये नोटिस जारी किया था।
ये है मामला -
दरअसल, हरियाणा सरकार ने इस मसले पर विरोध प्रदर्शन करने वाले किसान संगठनों को भी पक्षकार बनाने की मांग की थी। 30 सितंबर को सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा था कि किसी हाइवे को स्थायी रूप से बंद नहीं किया जा सकता है। सरकार सड़क खाली नहीं करवा रही है। सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया था कि वह आंदोलनकारी नेताओं को पक्षकार बनाने का आवेदन दे ताकि आदेश देने पर विचार किया जा सके। सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था कि सरकार ने तीन सदस्यीय कमेटी बनाकर किसान नेताओं को बुलाया था लेकिन वह मीटिंग में नहीं आये। हम चाहते हैं कि उनको कोर्ट में पक्षकार बनाया जाए, वे लोग कोर्ट में आएं।