एक प्रतापी गुरु थे जो अपने सभी शिष्यों से बहुत प्रेम करते थे। अपने शिष्यों के हर गुणों और कमियों के बारे में पता कर उन्हें भविष्य के लिए तैयार करते थे। उनका एक ही मात्र लक्ष्य था कि उनका हर एक शिष्य जीवन के हर पड़ाव पर हिम्मत से आगे बढ़े। उनके सभी शिष्यों में एक शिष्य था जो अत्यंत भोला था। लेकिन वह बहुत ज्यादा आलसी था। आलस के कारण ही उसे कुछ भी पाने का मन नहीं था। वो बिना कर्म के मिलने वाले फल में रूचि रखता था। उसका यह अवगुण गुरु को बहुत परेशान कर रहा था। एक दिन उन्होंने पारस पत्थर की कहानी अपने सभी शिष्यों को सुनाई। इस पत्थर के बारे में जानने के लिए सबसे अधिक जिज्ञासु वही शिष्य था। वे समझ गये कि यह आलसी है इसलिए उसे इस जादुई पत्थर की लालसा है। लेकिन ये मूर्ख यह नहीं जानता कि जो व्यक्ति कर्महीन होता है। उसकी सहायता तो स्वयं भगवान भी नहीं कर सकते। यह सोचते- सोचते गुरु ने सोचा कि यही सही वक्त है इस शिष्य को आलसी के अवगुणों से अवगत कराने का। ऐसा सोच गुरु जी ने उस शिष्य को अपनी कुटिया में बुलवाया और कहा- बेटा! मैंने आज जिस पारस पत्थर की कहानी सुनाई वो पत्थर मेरे पास है और तुम मेरे प्रिय शिष्य हो इसलिए मैं वो पत्थर सूर्य उदय से लेकर सूर्यास्त तक के लिए तुम्हे देना चाहता हूँ। तुम उससे जो करना चाहो कर सकते हो। तुम्हें जितना स्वर्ण चाहिये तुम इस पत्थर से दिए गये समय में बना सकते हो। यह सुनकर शिष्य की ख़ुशी का ठिकाना न था। गुरु जी ने उसे प्रात: सूर्योदय होने पर पत्थर देने को कहा। रात भर वह इस पत्थर के बारे में सोचता रहा।
दूसरे दिन, शिष्य ने गुरु जी से पत्थर लिया और सोचने लगा कि कितना स्वर्ण मेरे जीवन के लिए काफी होगा? और इसी चिंतन में उसने आधा दिन निकाल दिया। भोजन कर वो अपने कक्ष में आया। उस वक्त भी वह उसी चिंतन में था कि कितना स्वर्ण जीवनव्यापन के लिए पर्याप्त होगा और यह सोचते-सोचते आदतानुसार भोजन के बाद उसकी आँख लग गई और जब खुली तब दिन ढलने को था और गुरूजी के वापस आने का समय हो चुका था। उसे फिर कुछ समझ नहीं आया। इतने में गुरु जी वापस आ गये और उन्होंने पत्थर वापस ले लिया। शिष्य ने बहुत विनती की लेकिन गुरु जी ने एक ना सुनी। तब गुरु जी ने शिष्य को समझाया पुत्र! आलस्य व्यक्ति की समझ पर लगा ताला है। आलस के कारण तुम इतने महान अवसर का लाभ भी ना उठ सके जो व्यक्ति कर्म से भागता है उसकी किस्मत कभी उसका साथ नहीं देती। तुम एक अच्छे शिष्य हो परन्तु तुममें बहुत आलस है। जिस दिन तुम इस आलस के चोले को निकाल फेंकोगे उस दिन तुम्हारे पास कई पारस के पत्थर होंगे। शिष्य को गुरु की बात समझ आ गई और उसने खुद को पूरी तरह बदल दिया। उसे कभी किसी पारस की लालसा नहीं रही।