बद-सूरत कांग्रेस हताश विपक्ष : निर्णायक युद्ध में अपनी भूमिका तय करे मतदाता
प्रसंगवश - अतुल तारे
गुजरात के सूरत में कांग्रेस बद-सूरत होकर चुनाव प्रक्रिया से बाहर हो गई। कारण लोकसभा में कांग्रेस प्रत्याशी के नामांकन के प्रस्तावक ही संदिग्ध निकले। सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव चुनाव नहीं लड़ेंगे, कारण..? अखिलेश ही जानें। अमेठी को राहुल गांधी ने नमस्ते बोल दिया, वायनाड में भी टिके रहेंगे अब संशय दिखने लगा, कारण अचानक 'सिक-लीव पर चले गए। रैली, रोड़ शो सब स्थगित। बसपा सुप्रीमो मायावती ने चुनाव लड़ने से हाथ खड़े कर दिए वजह अब भतीजे को नेता बनाना है।
शुरुआत सूरत से। कांग्रेस के लोकसभा प्रत्याशी के प्रस्तावक ही संदेह के घेरे में थे और वह समय पर उपस्थित ही नहीं हुए, जबकि वे प्रत्याशी के निकटस्थ रिश्तेदार थे। परिणाम कांग्रेस मैदान से ही बाहर हो गई। यह निकट के इतिहास में पहला अवसर होगा कि चुनाव से पहले ही भाजपा सूरत में विजयी घोषित हो गई ।
कांग्रेस की दयनीय स्थिति देख कर अब तरस भी नहीं आता । श्री राहुल गांधी के घोषित, अघोषित नेतृत्व में कांग्रेस महात्मा गांधी के कांग्रेस के विसर्जन की इच्छा को इस प्रकार पूरा करेगी, यह सोचा भी नहीं गया था। पर यह आज एक सच है। निश्चितरूप से स्वस्थ लोकतंत्र के लिए परिपक्व और मज़बूत विपक्ष अपेक्षित है। पर इसका पहला और मूलभूत दायित्व भी विपक्ष का ही है। भाजपा विपक्ष को मज़बूत करेगी यह अपेक्षा गलत है। रणभूमि में नियमत: सबको बराबरी का अवसर रहता है लेकिन सामने वाला योद्धा परिणाम का पूर्वाभास करके तीर और तूणीर रख दे तो इसमें दोष किसका?
पहले चरण का मतदान हो चुका है। पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु को हटा दें तो मतदान का प्रतिशत कम है। बिहार तो 50 फ़ीसदी से भी कम है। उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में भी यह प्रतिशत घटा है। हालाँकि आँकड़े बताते हैं कि 2014 के मतदान प्रतिशत से 2019 में घटा था। पर भाजपा की सीट बढ़ी थी। इस लिहाज से भाजपा स्वयं को निश्चिंत मान सकती है। मतदान का प्रतिशत बढ़ना सामान्यत: बदलाव का संकेत माना जाता है। पश्चिम बंगाल में भाजपा 18 पर तो तमिलनाडु में शून्य पर है। इस लिहाज़ से ये दो प्रांत भाजपा के लिए उत्साह जगाते हैं। जाहिर है जहां भाजपा के विस्तार की संभावनायें हैं, वहाँ का जनमत उसके पक्ष में संकेत दे रहा है।
ऐसे अनुकूल वातावरण में उत्तर भारत और पश्चिम भारत का दायित्व और अधिक है। जैसे कि संकेत है, देश में पहली बार उत्तर और दक्षिण से एक स्वर निकल रहे हैं। पूर्वोत्तर भारत ने भी केसरिया ओढ़ लिया है। केरल जहां भाजपा के लिए सूखा ही था। इस बार निर्णायक संघर्ष में अपना राष्ट्रहित में योगदान देने के लिए कटिबद्ध है। यह सच है कि मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, गुजरात, दिल्ली, उत्तराखण्ड में भाजपा अपने अधिकतम पर है। पर यह भी सच है कि 10 साल के शासन काल को लेकर कोई सत्ता विरोधी लहर हैं क्या? यही नहीं प्रदेश में भी जहां भाजपा की सरकार है ,सरकार का प्रदर्शन बेहतर है । अत: यह देश के आम मतदाताओं का भी नैतिक कर्तव्य बनता है कि वह स्वयं भी मतदान के लिए खुद आगे आए। देश को ठेके पर देने का भाव उचित नहीं । बेशक, देश को एक यशस्वी नेतृत्व श्री नरेंद्र मोदी के रूप में मिला है पर सारे परिश्रम और पुरुषार्थ वही करें । और देश के संभ्रांत वर्ग से ऑन लाइन वोट की आवाज़ ट्वीट या फ़ेसबुक से आये, निराशाजनक है ।
मैं अभी भोपाल से ग्वालियर सड़क मार्ग से लौट रहा था। रास्ते में बीनागंज के पास एक काला पहाड़ एक स्थान है। ढाबे पर रुका। बताना ज़रूरी ही होगा, यह क्षेत्र श्री दिग्विजय सिंह के प्रभाव का क्षेत्र है। मैंने चाय पीते पीते पूछा ..? यहाँ तो इस बार कांग्रेस मज़बूत होगी? उनके राजा ही मैदान में हैं। एक साथ दो लोग, एक की उम्र 70 के क़रीब, दिहाड़ी पर काम करने वाला मज़दूर राम सिंह दांगी और एक युवा जो अभी नौकरी की तलाश में है, बोल पड़े -जिसने राम मंदिर का विरोध किया उसे वोट नहीं। यह राजगढ़ में अंडर करंट है । भाजपा प्रत्याशी रोडमल नागर से बेहद नाराज़गी है। कई गाँवों में तो लोग उनको जानते ही नहीं । जो जानते हैं, उनके पास उनके कि़स्से हैं । पर वह कह रहे हैं, पहली बार कोई बाहर का राष्ट्राध्यक्ष (उनकी बोली में बाहर का सबसे बड़ा आदमी)मोदी के पाँव छू रहा है और क्या चाहिए ? बगल में हमारी बात एक ट्रक ड्राइवर सुन रहा था । बिहार का था। तीसरे चरण में मतदान है । उसने कहा- पहले मैं सोच ही नहीं सकता था ।अब सारे काम आराम से करके घर पहुँचूँगा और वोट भी दूँगा। इतनी अच्छी सड़क पहले न थी । ये गाँव का मतदाता है। हमारी आपकी भाषा में कम पढ़ा लिखा। कथित 'एलीट क्लास' गंवार भी कह दे। पर क्या बुद्धिजीवी विचार करेंगे कि कांग्रेस सत्ता में आने के बाद सीएए हटाने की बात कह रही है। कश्मीर में 370 बहाल करने की । क्या देश के संसाधन पर रोहिंग्या क़ब्जा करेंगे ? क्या घाटी में फिर पत्थरबाज़ों के दिन आयेंगे ? विचार, आपको, हमको, सबको करना है। निश्चित् रूप से विपक्ष मज़बूत होता तो यह देश के लिए सुखद होता। पर जिस तृणमूल को दूरदर्शन के लोगो को केसरिया होने पर आपत्ति है । जो अखिलेश, राम मंदिर पर अनर्गल प्रलाप कर रहे हों। जो केजरीवाल दिल्ली को शराब में डुबो रहे हों। ऐसे विपक्ष का करें भी क्या ?
कांग्रेस ने सत्ता में रहकर देश के साथ अक्षम्य अपराध किए। केरल के वॉयनाड में राहुल गांधी अपनी पार्टी का झंडा हटा कर किसका लगा रहे हैं, देश देख रहा है।
अत: यह तय है कि परिणाम क्या आने वाले हैं । विपक्ष की लगभग अनुपस्थिति में यह असाधारण चुनाव है। श्रीमती सोनिया गाँधी चुनाव ही नहीं लड़ रहीं हैं। राहुल अमेठी से पलायन कर गये हैं । रैली रद्द कर दी हैं । अखिलेश यादव भी चुनाव नहीं लड़ रहे हैं । जाहिर है विपक्ष टूट चुका है। संभव है, ऐसी परिस्थिति में विजय सुनिश्चित देख भाजपा कार्यकर्ता शिथिल हो जायें। पर वोट डलवाने का काम उनका ही नहीं है। बूथ पर जाइए । वोट कीजिये। अन्यथा इस युद्ध में आपकी उदासीनता का अपराध दर्ज होगा।
क्या आप ऐसा चाहते हैं ?