दिव्यांग दिवस विशेष: बैसाखी के सहारे तय कर रहीं 'सीमा' अपनी जिंदगी के सफर...
पिता की मृत्यु बाद मां का सहारा बनी बेटी ने भाई-बहनों को पढ़ाया, खुद के साथ एक भाई, बहन की भी की शादी
संतोष कुमार यादव, सुलतानपुर। दोनों पैरों से दिव्यांग 'सीमा' के मुश्किलों की सीमा नहीं है। हालांकि उनकी मुश्किलें भी उनका हौसला नही तोड़ पाईं। तीन भाई दो बहनों में सबसे बड़ी सीमा यादव ने जिंदगी एवं रास्ते के सफर में बैसाखी को सहारा और कमजोरी को अपनी ताकत बनाया।
आज वे उसी के सहारे एक नई इबारत लिख रही हैं। उनके जीवन में एक के बाद एक आने वाली उनकी हर मुश्किलें उनकी जिंदगी का हमसफ़र बनती गईं। दोनों पैर से निशक्त होने के बावजूद दिव्यांगता को मात देकर महिला सशक्तिकरण की मिसाल बनी सीमा कामकाजी महिलाओं के लिए भी एक नजीर हैं।
अनेक झंझावातों से जूझती, खुद कामयाबी की सीढ़ी चढ़ अपनी जैसी महिलाओं के लिए आज वे प्रेरणास्रोत बनकर उभरी हैं। प्रतिदिन वह आवास से स्कूल आने-जाने के लिए 30 किमी की दूरी इस हालात में तय करती हैं। अपंगता बीच संघर्षों से यहां तक का सफ़र तय करने वाली सीमा खुद बैसाखी के सहारे होकर भी अपने परिवार का सहारा हैं।
कूरेभार ब्लॉक के बरोला में जन्मी सीमा यादव जन्म से दिव्यांग नही थी। दो वर्ष की थी तभी बीमारी दौरान चिकित्सक द्वारा लगाए गए इंजेक्शन से उनके दोनों पैर अपंगता के शिकार हो गए। हालांकि दिव्यांग होने के बाद भी बड़ी होने पर उन्हें किसी के सहारे की जरूरत नही पड़ी।
उसकी वजह पढ़ाई खत्म होते ही 2007 में उन्हें बेसिक शिक्षा विभाग में शिक्षा मित्र की नौकरी मिल गई। समाजशास्त्र से स्नातकोत्तर सीमा में पढ़ने, सीखने की ललक बचपन से ही थी। यही वजह रही कि शारीरिक अक्षमता के बावजूद पढ़ाई दौरान ही कंप्यूटर, टंकड़ टाईप एवं शॉर्ट हैंड भी उन्होंने सीख लिया। 2007 में जब सीमा को नौकरी मिली और वह आर्थिक रूप से अपने पैरों पर खड़ी हुई उसी वर्ष पिता की मृत्यु हो गई।
मां सृजन देवी के साथ तबसे परिवार में बड़ी होने का फर्ज आज तक निभाती आ रहीं हैं। सुबह वे अपने सफर की शुरुआत बैसाखी के सहारे जरूर करती हैं लेकिन खुद परिवार का सहारा बनकर कुनबे को हौसला दे रही हैं। सीमा के पिता राम यज्ञ किसान परिवार से थे एवं निजी स्कूल में शिक्षक थे। पढ़ाई की अहमियत वह समझते थे, इसलिए दिव्यांग बेटी को सबसे ज्यादा पढ़ाया। उनकी मृत्यु बाद यह जिम्मेदारी सीमा ने उठाया।
बहन पूनम को बीए, भाई आशुतोष को बीएससी तक पढ़ाया दोनों की शादी की। भाई अभिनंदन को बीएससी तक पढ़ाई में मदद की जिसका दिल्ली पुलिस में चयन हुआ है। दूसरा भाई अभिषेक दसवीं की पढ़ाई कर रहा है।
सीमा ने इंटर तक की पढ़ाई के लिए बाद स्नातक के लिए घर से 6 किमी दूर महात्मा गांधी महाविद्यालय पटना में दाखिला लिया और प्रतिदिन स्कूल जाती। बाद में यहीं से स्नातकोत्तर भी किया। इसी दौरान उनकी गांव के सरकारी स्कूल में शिक्षा मित्र की नौकरी लग गई। 2009 में उनकी शादी कुड़वार वलीपुर के लहुरेपुर में हुई।
बेहतरीन इंसान के रूप में मिले जीवन साथी शिवसागर एवं सीमा एक दूसरे का सहारा बने। सीमा की सलाह पर शिवसागर ने टी स्टॉल खोली एवं एक ऑटो रिक्शा लिया। स्कूल बाद सीमा टी स्टॉल संभालती एवं शिवसागर ऑटो रिक्शा लेकर कमाने निकल पड़ते। किराए के घर में रह रहीं सीमा निजी आशियाना बनाने के ताने-बाने बुन रहीं हैं।
हालांकि अभी उनका फोकस एकलौते बेटे अंशुमान की पढ़ाई पर है जो कक्षा 8 का छात्र है। सीमा अभी प्राथमिक विद्यालय अंगनाकोल में शिक्षा मित्र के पद पर तैनात हैं।
29 अप्रैल 2015 में सरकार ने जब शिक्षा मित्रों को सहायक अध्यापक बनाया तो सीमा भी उसमें शामिल थीं। लेकिन 25 जुलाई 2015 में अध्यापक बने शिक्षा मित्रों को उनके मूल पदों पर भेज दिया गया।
तबसे सीमा अंगनाकोल में बतौर शिक्षा मित्र के पद पर ही तैनात हैं। स्कूल में शिक्षण गतिविधियों से बच्चों को परिचित कराने के लिए सीमा ने 'सीमा की उड़ान' नाम से एक अपना यूट्यूब चैनल भी बनाया है। जिसके जरिये वे बच्चों को जोड़ती हैं। उन्हें खेल, खेल में, समूह में भी विभिन्न गतिविधियों से जोड़ती हैं।
बेटा एवं पति की मदद से घर के सारे काम मैं खुद करती हूं : सीमा
सीमा कहती हैं कि उनके दोनों पैर काम नही करते। उन्हें बैसाखी के सहारे रहना पड़ता है, लेकिन वे निराश नही हैं। प्रतिदिन तीस किलोमीटर की दूरी वे घर से स्कूल आने जाने में तय करती हैं। स्कूल में बच्चों का प्यार उन्हें ताकत देता है।
घर में बेटा एवं पति के साथ घर की जिम्मेदारियों को बखूबी निभाती आ रही हूं। बेटा एवं पति हर काम में मेरा सहयोग करते हैं। दोनों की मदद से घर के सारे काम मैं खुद करती हूं। सीमा ने कहा कि मेरी प्रेरणा स्रोत अरुणिमा सिन्हा हैं जिनसे बहुत कुछ सीखा। उनके कई वीडियो देखा।
उनके एक पैर नही, दूसरे में रॉड पड़ी हो और वे दुनिया की सबसे ऊंची चोटी एवरेस्ट पर चढ़ गईं।