कुछ एनजीओ प्रायोजित होकर खराब कर रहे है देश की छवि: प्रियंकर कानूनगो
श्री कानूनगो के अनुसार देश में एक बड़ा तबका बाल शोषण की तस्वीरों को अतिरंजित ढंग से प्रस्तुत करता है इसके लिए उन्हें विदेशी मदद मिल रही है ताकि भारत की छवि वैश्विक स्तर पर खराब की जा सके।
लखनऊ: कोरोना की चपेट आकर अनाथ हुए देश भर के बच्चों के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा घोषित पुनर्वास योजना दुनिया भर के लिए उदाहरण है। यह राज्य के अभिभावक होने के नैतिक दायित्व का प्रमाणिक और अभिनंदनीय अहसास कराने का काम करेगी। राष्ट्रीय बाल अधिकार एवं सरंक्षण आयोग के अध्यक्ष प्रियंक कानूनगो ने रविवार को चाइल्ड कंजर्वेशन फाउंडेशन के 48वें ई-प्रशिक्षण सह संगोष्ठी को संबोधित करते हुए यह बात कही।
उन्होंने कहा कि 23 साल की उम्र में ही कोई बालक सही मायनों में अपने पैरों पर खड़ा होकर जबाबदेह नागरिक बन पाता है इसलिए प्रधानमंत्री की यह योजना असंदिग्ध रूप से एक संवेदनशील अभिभावक की भूमिका को पूरा करेगी।श्री कानूनगो ने सीसीएफ़ के इस डिजिटल प्लेटफार्म पर 20 राज्यों एवं 4 केन्द्र शासित प्रदेशों से जुड़े तीन सौ से ज्यादा बाल अधिकार कार्यकर्ताओं के सवालों के जबाब दिए। एक सवाल के जबाब में उन्होंने बताया कि कोई भी बाल गृह 18 साल से कम आयु वर्ग के बच्चों को संवैधानिक रूप से धर्म सबंधी आग्रह नही थोप सकता है अगर ऐसा किसी भी स्थान पर होता है तो बाल कल्याण समितियों को तत्काल पुलिस प्राथमिकी दर्ज कराने की पहल करनी चाहिए।
श्री कानूनगो के अनुसार देश में एक बड़ा तबका बाल शोषण की तस्वीरों को अतिरंजित ढंग से प्रस्तुत करता है इसके लिए उन्हें विदेशी मदद मिल रही है ताकि भारत की छवि वैश्विक स्तर पर खराब की जा सके। श्री कानूनगो के अनुसार चाइल्ड वेलफेयर के नाम पर सक्रिय प्रतिष्ठित संगठन भी इस तरह की गतिविधियों में शामिल है उन्होंने बताया कि पिछले साल लॉकडाउन के दौरान एक जिम्मेदार संस्थान ने जानकारी मीडिया को साझा की थी जिसमें 11 दिनों के अंदर प्राप्त तीन लाख शिकायत में से 92 हजार बच्चों के यौन शोषण का दावा किया गया लेकिन आयोग ने जब इन शिकायतों के परीक्षण के लिए उस एनजीओ को समन जारी किया तो उनमें से महज 171 शिकायत ही प्रमाणिक पाई गई।
श्री कानूनगो ने इस डिजिटल संवाद के जरिये ऐसे एनजीओ को चेतावनी देते हुए कहा कि इस तरह के देश विरोधी कृत्यों से वे स्वयं को अलग कर लें। राष्ट्रीय अध्यक्ष ने बताया कि देश में विदेशी धन की मदद से एक बहुत ही सुगठित तंत्र बच्चों के नाम से सक्रिय है।महाराष्ट्र सहित दक्षिण के पांच राज्यों में 4100 से अधिक बाल देखरेख संस्थान काम कर रहे है जबकि देश मे इनकी कुल संख्या 7100 है। लाखों बच्चे अपने माँ पिता के होते हुए भी इन ग्रहों में रह रहे है जिन्हें परिवारों में भेजने का काम आयोग द्वारा पिछले तीन बर्षों से जारी है।
उन्होंने बताया कि 645 बाल गृह ऐसे है जिन्हें विदेशों से 954 करोड की राशि एक साल में मिली। आंध्र प्रदेश के 143 एनजीओ ऐसे हैं जहां प्रति बालक पर 6लाख 7 हजार की राशि विदेशों से मिलती है। इसी प्रकार केरल में 2 लाख 2 हजार, तमिलनाड़ु में 2 लाख 4 हजार की राशि एफसीआरए के जरिये मिल रही है। इतनी राशि तमाम संदेह को जन्म देती है जबकि ऐसे सभी बच्चे अनाथ नही है। श्री कानूनगो के अनुसार राष्ट्रीय आयोग ने हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप से 1लाख 41 बच्चों को ऐसे ग्रहों से निकालकर माँ पिता तक पहुँचाया है। सभी सीडब्ल्यूसी सदस्यों से बाल ग्रहों के सतत निरीक्षण का आग्रह करते हुए उन्होंने कहा कि आयोग ने मासी नाम से एक डिजिटल निरीक्षण एप बनाया है जिसके पैरामीटर्स पर निरीक्षण किया जाना चाहिए। इसके अलावा बाल स्वराज नामक पोर्टल भी लांच किया गया है जिसमें हर जिले के सरंक्षण एवं जरूरतमंद श्रेणी के बालक का पूरा डेटा संधारित्र कर उसके युक्तियुक्त पुनर्वास की गारंटी प्रदान की गई है।
ई-प्रशिक्षण को संबोधित करते हुए फाउंडेशन के अध्यक्ष डॉ. राघवेंद्र शर्मा ने प्रधानमंत्री का धन्यवाद ज्ञापित किया। जिन्होंने कोविड बाल कल्याण योजना को देश भर में परिष्कृत रूप से लागू किया है। उन्होंने बताया कि फाउंडेशन का विस्तार देश के 20 राज्यों एवं 4 केंद्र शासित प्रदेशों तक है और आयोग के साथ मिलकर देश व्यापी अभियान में फाउंडेशन सहभागी हो सकता है। श्री शर्मा ने बताया कि सभी स्टेकहोल्डर्स के मध्य समन्वय बनाने के उद्देश्य से हम काम कर रहे है। ई-प्रशिक्षण कार्यक्रम का संचालन करते हुए फाउंडेशन के सचिव डॉ. कृपाशंकर चौबे ने बताया कि चाइल्ड कंजर्वेशन फाउंडेशन बाल सरंक्षण के लिए एक लुब्रिकेंट या उत्प्रेरक के रूप में काम कर रहा है। कार्यक्रम के आरम्भ में विशेषज्ञ अतिथियों का स्वागत आईटी हैड भुवनेश भार्गव ने किया।