विजय कुमार गुप्ता
मथुरा। कोरोना और विभिन्न प्रकार की शारीरिक और मानसिक बीमारियों से बचाव, घर की सुख शांति एवं न सिर्फ इस जन्म अपितु अगले जन्म तक को सार्थक बनाने के लिए यह गारंटी शुदा उपाय बताऐ जा रहे हैं जिन्हें अपनाने पर आपका जीवन खुशहाल रहेगा और परिवार में सुख शांति भी कायम रहेगी।
कभी किसी प्राणी को अकारण न सताऐं। किसी की हत्या न करें प्रत्येक प्राणी में ईश्वर का वास होता है। यदि आज हम किसी प्राणी की हत्या करेंगे तो फिर उसी प्रकार वह भी अगले जन्म में हमारी हत्या करेगा, यह प्रकृति का नियम है, यानी जैसा बोओगे वैसा काटोगे। किसी गरीब का हक न मारे (गरीब क्या अमीर हो तो उसका भी न मारे) जहां तक हो सके खुद कसर खा लें दूसरे को कसर ना दें।
ठगै सो ठाकुर और ठगावे सो ठग वाली कहावत को अपने जीवन में उतार लें। किसी दूसरे व्यक्ति को ठगने से ज्यादा लाभकारी खुद अपने को ठगाना होता है। हमारे पिताजी का यह प्रिय मुहावरा था कभी किसी के साथ धोखेबाजी या बेईमानी न करें। जहां तक हो सके अपनी सामथ्र्य के अनुसार गरीबों और असहायों की मदद करें। निरीह पशु-पक्षियों जीव जंतुओं में दया के भाव रखें यथासंभव उनकी अधिकाधिक सेवा करें हो सके तो पक्षियों को दाना और चीटियों को बूरा चीनी आदि कुछ न कुछ जरूर डालें। श्रीमद् भागवत में कहा गया है कि कीड़े मकोड़ों तक में पुत्रवत भाव रखना चाहिए। कहते हैं कि कर भला होगा भला कर बुरा होगा बुरा।
भगवान और अपने पित्रों को कभी न भूलें, यथासंभव भजन करें। इस कलयुग में भजन की महत्ता बहुत ज्यादा है हालांकि मैं स्वयं खुद कोई खास भजन नहीं कर पाता हूं। अगर हम भजन ना भी कर पाऐं तो कोई बात नहीं किंन्तु परमार्थ न छोड़ें क्योंकि सभी वेद पुराण धर्म शास्त्रों में कहा गया है सेवा परमो धर्म।
अपने पूर्वजों के निमित्त यथाशक्ति कुछ न कुछ अवश्य करें। अमावस्या पर किसी सात्विक ब्राह्मण को पित्रों के निमित्त भोजन करावें, यमुना जी व पीपल पर थोड़ा सा दूध चढ़ावें। प्रतिदिन पहली रोटी उसके साथ कुछ मिष्ठान और फल गाय को खिलाऐं, इसे गौ ग्रास कहते हैं। यह हमारी प्राचीन परंम्परा है। गाय को दिया गया ग्रास सभी तैंतीस करोड़ देवी देवताओं के अलावा पित्रों को भी प्राप्त होता है। प्रतिदिन पूर्वजों के निमित्त थोड़ा सा जल अवश्य अर्पित करें। यदि पित्र प्रसन्न रहेंगे तो हम और हमारा पूरा परिवार प्रसन्न रहेगा।
धन उपार्जन में नैतिकता का ध्यान रखें और अत्यधिक धन संचय से बचें। उतनी ही लालसा रखें जितनी जरूरत हो। यानी मैं भी भूखा ना रहूं और साधु भी भूखा ना जाए। क्योंकि अनैतिक तरीकों से उपार्जित किया गया धन दुख देकर जाता है और ऊपर से टेंशन और देता है। धन के संचय के बजाय उसे थोड़ा-थोड़ा सद कार्यों में निकालते रहना ही श्रेय कर है। वर्ना वही गति होगी जो नाव में ज्यादा पानी भरने पर हो जाती है। हमारे पिताजी एक दोहा अक्सर कहा करते थे वह पूरा तो याद नहीं किंन्तु उसके अंत में यह आता था कि दोनों हाथ उलीचिये यही सयानो काम अर्थात इस दोहे में नाव की मिसाल देते हुए कहा गया कि नाव में भरे पानी की तरह धन को भी दोनों हाथों से उलीचते रहिए। जरूरत से ज्यादा दौलत छोड़कर जो लोग मर जाते हैं। वह अगले जन्म में सांप बनकर अपनी दौलत, जमीन, सोना धन आदि के इर्द-गिर्द मंडराते रहते हैं। अक्सर जमीन में गड़े धन के पास नाग दिखाई देते हैं।
हमेशा सत्य बोलें, अंतिम यात्रा के समय जब चार लोग कंधे पर रखकर ले जाते हैं तब राम नाम सत्य है के साथ सत्य बोलो गत्य है की आवाज सुनाई देती है। अर्थात गति तभी मिलती है जब हम सत्य आचरण करते हैं और सच्चाई के मार्ग पर चलते हैं। बात-बात पर झूठ से आत्मा में स्वयं ही अंदर ही अंदर ग्लानि सी होती है। हर बात में चालाकी चलना अपने आप को ही छलने जैसा होता है। सीधा सरल व्यवहार अल्प समय के लिए थोड़ा कष्टकारी हो सकता है किंन्तु दीर्घकाल के लिए बड़ा लाभकारी है।
चैरासी लाख योनियों के बाद में अब यह मनुष्य जीवन हमें प्राप्त हुआ है। इसे भी हम नष्ट कर लें, यह कौन सी समझदारी होगी। धोखाधड़ी से हमेशा बचते रहना चाहिए खासकर उन लोगों के साथ तो विशेष ध्यान रखना चाहिए जिन्होंने हमारे ऊपर एहसान किए हैं। उनके साथ धोखा करने का क्या परिणाम होता है जो इस कहावत में स्पष्ट है। गुरु से कपट मित्र से चोरी, कै होए अंधा कै होय कोड़ी। हम सभी को कृतज्ञ संस्कृति अपनानी चाहिए कृतघ्न संस्कृति नहीं। कृतघ्न संस्कृति ऐसी संस्कृति है जो न सिर्फ अपने लिए घातक है अपितु अपने बच्चों को भी कृतघ्नता के संस्कार देती है। आडंबर दिखावटी पन और फिजूलखर्ची से हमें बचना चाहिए।
ईश्वर ने हमें कपड़े तन ढकने और भोजन पेट भरने के लिए दिया है। ना कि फैशन और चोचले बाजी के लिए। सादगी से रहकर जीवन व्यतीत करना सुखदाई होता है। रूखी सूखी खाय के ठंडा पानी पी, देख पराई चीपरी मत ललचावै जी वाले सिद्धांत के लोग कभी दुखी नहीं रहते। इसीलिए कहा गया है कि संतोषी सदा सुखी जिनको कुछ नहीं चाहिए वह हैं शहंशाह। जो संसार के नंबरी अमीर होते हुए भी भाईचारे को ताक पर रख कुत्ते बिल्लियों की तरह लड़ते हैं, वह संसार के सबसे बड़े कंगाल हैं। पानी में मीन प्यासी मोहे देखत आवे हांसी यानी पानी के अंदर भी मछली प्यासी है अर्थात चैरासी लाख योनियों के बाद प्राप्त हुई मनुष्य योनी पाकर भी हम दुखी हो रहे हैं। हमें इस भाव से रहना चाहिए कि पूरी पृथ्वी अपनी है और इस पर वास करने वाले सभी जलचर, नभचर और पृथ्वीवासी यानी चैरासी लाख योनियों के समस्त प्राणी मात्र अपने हैं। प्रभु सभी का कल्याण करें इससे मन को बड़ा संतोष मिलेगा।
एक और महत्वपूर्ण बात यह है कि बीमारियां तथा तरह-तरह की आपदाऐं अचानक नहीं आतीं। यह सब पूर्व निर्धारित होती हैं। सभी को अपने-अपने कर्मों के अनुसार फल मिलता है। कर्मों के अनुसार ही योनियों में जन्म मिलते हैं। कर्मों के अनुसार ही माता-पिता और बुरे भले की सौहबत का निर्धारण होता है। भगवान श्री कृष्ण गीता में कहते हैं कि नीच कर्म करने वालों को मैं बारंम्बार शूकर कूकर आदि नींच योनियों में गिराता हूं।
यह जो दुर्घटनाएं वगैरा होती हैं। वह सभी पूर्व निर्धारित हैं। ईश्वर या यूं कहिए ऊपर की अदालत के बगैर पत्ता भी नहीं हिलता। ग्रह दशाओं का निर्माण भी हस्त रेखाओं और जन्म कुंडलियों में पूरे जीवन का विवरण लिखा होता है। वह कर्मों के अनुसार होता है। उदाहरण के लिए एक और बात बताना चाहता हूं कि जब कोई मौत होती है तो अक्सर देखा गया है कि घर के आसपास के कुत्ते कई दिन पहले से रोना शुरू कर देते हैं। पानी के जहाजों में पहले बिल्लियों को पाला जाता था। ऐसा हम बचपन से सुनते आए हैं क्योंकि कोई दुर्घटना होने से पहले बिल्लियां रोना और उछल कूद करना शुरू कर देती हैं। फलस्वरूप जहाज के चालक दल और उसमें सवार लोग अपने को बचाने की सावधानी बरतने लग जाते थे। टाइटैनिक जहाज जब दुर्घटनाग्रस्त हुआ था तब कुछ देर पूर्व ही उसमें सवार बिल्लियां जोर-जोर से रोने लगी थीं। उनकी उछल कूद और व्यवहार असामान्य हो गया था। कभी-कभी स्वप्न में भी होने वाली घटनाओं का पूर्वाभास मिल जाता है।
कोरोना का कहर अचानक नहीं उपजा, यह भी पूर्व निर्धारित है जो पृथ्वीवासियों के दुष्कर्मो से उपजा है। अतः हम सभी अपने-अपने कर्मों को सुधारें और परमपिता परमात्मा से प्रार्थना करें कि हे प्रभु जब जो कुछ हुआ सो हुआ, हमें क्षमा कर दो, अब हम सभी नीच कर्मों को त्याग कर सदकर्मों को करेंगे। शायद प्रभु हमारी प्रार्थना पर गौर करें, यदि और कोई करें या न करें हम खुद अपने आप को सुधार लें तो हमारी जिंदगी खुशियों से भर जाएगी और तमाम आपदाएं खुद ब खुद निपटने लगेंगी तथा जिंदगी में एक अनूठा रस भर जाएगा और फिर पृथ्वी पर बचने वालों में शायद हम भी हों।