लोहिया जी बोले मित्र जी नहीं हैं तो मेरा मथुरा आना बेकार रहा

बाबा जयगुरुदेव के अंतरंग मित्र थे नरेन्द्र मित्र;

Update: 2020-06-15 01:57 GMT

विजय कुमार गुप्ता

मथुरा। एक बार डाॅ. राम मनोहर लोहिया मथुरा आऐ और यहां के सोशलिस्ट नेताओं से कहा के अरे भाई मित्र जी नहीं दिखाई दे रहे हैं वह कहां हैं? लोगों ने उन्हें बताया कि वे तो बाहर गये हुऐ हैं। इस पर लोहिया जी उदास हो गए और बोले कि मित्र जी नहीं है तो फिर मेरा मथुरा आना बेकार रहा।

मित्र जी यानी नरेन्द्र मित्र पत्रकार। स्व. नरेन्द्र मित्र जी पत्रकार होने के साथ-साथ समाजवादी विचारक थे तथा डाॅक्टर लोहिया के अत्यंत घनिष्ठों में उनकी गिनती थी। मुलायम सिंह यादव, स्व. नारायण दत्त तिवारी जैसे दिग्गज उनसे जूनियर थे। मथुरा में वह सैनिक अखबार को चलाते थे। सैनिक की स्थापना उत्तर प्रदेश के गृह मंत्री रहे स्व. कृष्ण दत्त पालीवाल ने की थी। उन दिनों सैनिक अखबार ठीक उसी प्रकार नम्बर वन था जैसे आज अमर उजाला है। मित्र जी ने पत्रकारिता काकोरी कांड के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी पंडित शिवचरण लाल शर्मा से सीखी। पंडित शिवचरण लाल शर्मा मथुरा में एकमात्र ऐसे पत्रकार थे जो सभी राष्ट्रीय समाचार पत्रों का प्रतिनिधित्व करते थे।

मित्र जी मथुरा की ऐसी दुर्लभ विभूति थे जिसके बारे में शायद आज की पीढ़ी को कुछ पता नहीं होगा। स्वर्गीय गणेश शंकर विद्यार्थी उनके आदर्श थे। मेरी पत्रकारिता की शुरुआत उन्हीं के चरणों में बैठकर हुई। उनकी ईमानदारी, निर्भीकता, स्वाभिमान और हर किसी की मदद को तत्पर रहने का स्वभाव लाजवाब था। वे गजब के वक्ता भी थे, यदि वे तिकड़मी होते तो केन्द्रीय मंत्री के स्तर तक पहुंच गए होते।

देश की एक से बढ़कर एक हस्तियां उन्हें मान देती थीं। बाबा जयगुरुदेव उनके अत्यंत अंतरंग मित्र थे। बाबा अक्सर मित्र जी के जनरल गंज स्थित कार्यालय पर आ जाते और ऊपर ही घर था तथा झटपट चढ़कर घर में आ जाते तथा कभी-कभी तो खाली मिर्च से ही रोटी खा लेते, वह भी बड़े चाव से।

एक बार मित्र जी के नाती हरीश के पैरों में काफी तकलीफ हो गई तो बाबा अपनी गाड़ी से दिल्ली ले गए तथा खुद गाड़ी चला कर दिल्ली के तमाम अस्पतालों में हरीश को दिखाया। मैंने स्वयं अपनी आंखों से मित्र जी के रंग रूतवे देखे। मैं स्वयं भी अक्सर मित्र जी के साथ बाबा के यहां जाता था। बाबा से मित्र जी की अंतरंगता का पता इसी बात से लगाया जा सकता है कि जब देश की बड़ी-बड़ी नामी-गिरामी हस्तियां बाबा जयगुरुदेव के शरणागत हुईं थी, तब मित्र जी के सलाह मशविरे के बाद ही बाबा नेताओं से बातचीत करते थे। कभी-कभी बातचीत में मित्र जी भी शामिल रहते। यह मेरा सौभाग्य है कि उन दिनों अक्सर में भी मित्र जी के साथ रहता था।

जो हस्तियां बाबा से मिलने आती थीं उनमें इंदिरा गांधी, अटल बिहारी बाजपेई, संजय गांधी, चंद्रशेखर, नानाजी देशमुख, लाल कृष्ण आडवानी तथा जगजीवन राम आदि सैकड़ों राष्ट्रीय नेता थे। बाबा जयगुरुदेव मित्र जी को मित्तर जी कहते थे। बाबा के अन्दर खाने तक मित्र जी का प्रवेश था। मैंने बाबा को बगैर टोपी के खुले सिर मित्र जी से खूब हंसी ठठ्ठा करते देखा था। बाबा के परम शिष्य बाबूराम जी भी उस समय मौजूद थे, जो आज भी बाबा के आश्रम में सत्संग करते हैं।

इसी प्रकार आचार्य श्री राम शर्मा भी उनके गहरे मित्रों में से रहे हैं। आचार्य जी के यहां भी मित्र जी की अत्यंत अंतरंगता थी। पंडित श्रीराम शर्मा मित्र जी को बहुत मानते थे। जब भी कोई बड़ा सोशलिस्ट नेता मथुरा आता तो मित्र जी से मिलने जरूर आता, मैंने छोटे लोहिया के रूप में पहचान रखने वाले जनेश्वर मिश्र और इंदिरा गांधी को हराने वाले राजनारायण को भी उनके घर आते जाते देखा। मित्र जी की मित्र मंडली में तत्कालीन चेयरमैन डाॅ. केसी पाठक, गणेश प्रसाद चतुर्वेदी, एडवोकेट लक्ष्मण प्रसाद गुप्ता तथा सतीश चंद्र मिश्र एडवोकेट आदि थे।

मित्र जी के बारे में यदि लिखा जाए तो एक पुस्तक भी कम पड़ेगी। वह शांत स्वभाव के अत्यंत स्वाभिमानी व्यक्ति थे। अक्सर वह कविताएं भी लिखा करते थे। अमर उजाला के संस्थापक स्व. डोरी लाल अग्रवाल और स्व. मुरारीलाल माहेश्वरी भी उनके अच्छे मित्रों में थे। वे अलीगढ़ जनपद के सासनी कस्बे के मूल निवासी थे। अनगिनत पत्रकारों ने उनसे बहुत सीखा। मुझ जैसे अनपढ़ व्यक्ति को भी उन्होंने पत्रकार बना दिया। उनका मेरे ऊपर अपार स्नेह था। वह मुझसे अक्सर कहते थे कि विजय बाबू तुम तो मेरे हनुमान हो। पूर्व विधायक हुकम चंद तिवारी तथा पदम श्री मोहन स्वरूप भाटिया भी उनके यहां सीखने वाले शिष्यों में रहे हैं। प्रारम्भिक दिनों में मित्र जी साइकिल पर चलते थे और मोहन स्वरूप भाटिया आगे लगे डंडे पर बैठते थे।

मित्र जी से मेरा संपर्क लगभग 45 वर्ष पूर्व उस समय हुआ जब मैं अपने घर के पास बने रेलवे के पुल पर पैदल चलने के लिए रास्ता (गैलरी) बनवाने के लिए नेताओं तथा अखबार वालों के पास चक्कर लगाया करता था। क्योंकि पैदल रास्ते के अभाव में अक्सर रेल से कटकर लोग मर जाते थे। करीब 20-25 वर्षों में अनगिनत लोग कटकर मर गए या जीवन भर के लिए विकलांग हो गए। मृतकों में ज्यादातर तीर्थ यात्री होते थे तथा जालौन के सांसद भैया लाल की पत्नी भी उसी पुल की भेंट चढ़ गई। इस कार्य में उन्होंने मुझे भरपूर सहयोग और आशीर्वाद दिया तथा हर समय मेरे लिए कवच की तरह बने रहते थे। उन्हीं के आशीर्वाद और कृपा से इस यज्ञ में मुझे सफलता मिली जिसमें लगभग चार-पांच वर्ष लगे और लोगों का कटना मरना बंद हुआ। ऐसे महापुरुष के चरणों में मेरा शत शत नमन।  

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