इंदिरा गांधी के जीवन की सबसे बड़ी भूल इमरजेंसी हटाना

Update: 2020-06-30 23:56 GMT


विजय कुमार गुप्ता

मथुरा। पिछले दिनों पूरे देश के समाचार पत्रों व टीवी चैनलों ने इमरजेंसी के 45 साल पूरे होने पर न सिर्फ इंदिरा गांधी और संजय गांधी को जी भरके कोसा बल्कि इस दौरान हुए अन्याय और अत्याचारों को श्रंखलाबद्ध तरीके से गिनाया। किन्तु इमरजेंसी के दौरान जो अच्छाइयां हुई उनसे देश को कितना लाभ मिला, इस बात की कहीं कोई चर्चा नहीं हुई। सभी की जुबान पर ताले लगे रहे आखिर क्यों?

यह बात बिल्कुल सही है कि इंदिरा गांधी ने इमरजेंसी को केवल इसलिए लगाया कि वह सत्ता में बनी रहें। और यह बात भी एकदम पक्की है कि इमरजेंसी के दौरान उन्नीस महीनों में इन्दिरा गांधी ने अपने विरोधियों को कैद में पटक दिया। यही नहीं समाचार पत्र, रेडियो और दूरदर्शन सभी पर सेंसरशिप लागू हो गई। कोई इन्दिरा गांधी या सरकार के खिलाफ मुंह नहीं खोल सकता था।

और तो और न्यायपालिका तक को इन्दिरा गांधी ने अपनी मुट्ठी में भींच लिया। कोई अदालत का दरवाजा भी नहीं खटखटा सकता था। पूरी शक्ति केवल इन्दिरा गांधी और उनके बेटे संजय गांधी के हाथ में केंद्रित हो गई। एक प्रकार से संजय गांधी तो उस समय इन्दिरा गांधी से भी ऊपर की ताकत बन गए थे। केंद्रीय मंत्री और मुख्यमंत्री तक सभी उनके सामने कंपकपाते थे।

नौकरशाह और पुलिस को असीमित अधिकार मिल गए। ज्यादती और जुल्म भी सरकार के इन मातहरों ने खूब किए। नसबंदी के शिकार साधु-महात्मा और बुजुर्ग भी खूब हुऐ। शिक्षकों को बच्चों को पढ़ाने से ज्यादा उनके माता-पिताओं की नसबंदी कराने का जिम्मा सौंपा गया। यह भी एक दम सच है कि यह सभी जुल्म ज्यादतियां इमरजेंसी के बाद हुए चुनाव में इंदिरा गांधी की भयंकर पराजय का कारण बनी। न सिर्फ कांग्रेस बल्कि इन्दिरा गांधी और संजय गांधी तक को शर्मनाक हार झेलनी पड़ी लेकिन बाद में जनता ने अगले आम चुनावों में इमरजेंसी की अच्छाइयों पर मुहर भी लगाई और इन्दिरा गांधी को दो तिहाई बहुमत से भी ज्यादा सीटें देकर संसद में पहुंचाया और पूरे विश्व को चैंका दिया।

इमरजेंसी से देश को लाभ भी बहुत हुऐ। यदि लाभ और हानि दोनों की तुलना की जाए तो लाभ का पलड़ा बहुत भारी पड़ेगा। पूरा देश अनुशासित हो गया रेलें समय पर चलती थीं। एक मिनट भी लेट नहीं बल्कि दस पांच मिनट विफोर रहतीं। भ्रष्टाचार ऐसे गायब हो गया जैसे गधे के सर से सींग। किसी की मजाल नहीं जो रिश्वत लेने की सोच भी जाय।

और तो और चोरी, डकैती, लूटपाट, अपहरण, हत्या, बलात्कार, यहां तक कि लुच्चे लफंगों द्वारा बहन बेटियों से छेड़खानी आदि तक का ग्राफ लगभग जीरो पर आ गया। ऐसा लगने लगा कि रामराज आ गया। हां, भय और दहशत का माहौल बहुत था। यह तो होना ही चाहिए क्योंकि जब भय ही नहीं होगा तो फिर कौन गलत काम करने से रुकेगा। कहते हैं 'भय बिन होय न प्रीति'। उस दौरान एक और मजेदार बात देखने को मिली कि आवारा किस्म के लफंगे जो बाल बढ़ा-बढ़ा कर हैप्पी बने फिरते थे, पुलिस द्वारा उन्हें पकड़-पकड़ कर सिर पर उस्तरा फिरवा दिया जाता था और लोग ताली बजा बजाकर हंसते थे कि लो बेटे हैप्पी बनने का मजा लो। फिर तो सभी ने छोटे-छोटे बाल रखने शुरू कर दिये।

संजय गांधी देश के ऐसे ताकतवर नेता बन गए जिनके इशारों पर पूरा देश नाचता था, बल्कि यूं कहा जाए कि इंदिरा गांधी से भी ज्यादा वह पावरफुल हो गऐ। उन्होंने तो ऐसा कमाल किया कि पूछो मत। गद्दार और देशद्रोही एकदम भीगी बिल्ली बन गए। जो लोग भारत माता को डायन कहते, पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगाते और भारतीय तिरंगे की होली जलाकर पाकिस्तानी झंडे को लहराते थे, वे सभी चूहों की तरह बिलों में छुप गए। संजय गांधी ने उस दौरान पूरी सत्ता अपने हाथों में केंद्रित करके बहुत अच्छा काम किया क्योंकि नेतृत्व करने वाला ताकतवर होगा तभी देश ताकतवर बनता है। इसका जीता जागता उदाहरण उत्तरी कोरिया का तानाशाह किम जोंग है जिसने अमेरिका सहित पूरी दुनिया को कंपकपा रखा है। लगभग यही स्थिति चीन की है क्योंकि वहां वोट तंत्र नहीं है और पूरी ताकत वहां के राष्ट्रपति और सत्ता पर काबिज कम्युनिस्ट पार्टी के पास है। वहां देशद्रोहियों को मौत के घाट उतार दिया जाता है और हमारे यहां गद्दारों और जयचंदों की आरती उतारी जाती है।

संजय गांधी का एक किस्सा मुझे याद आ रहा है। उस समय उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी थे तथा संजय गांधी आगरा में एमजी रोड की सड़कों का चौड़ीकरण करना चाहते थे जिसमें बाधाऐं आ रही थीं। संजय गांधी खुद आगरा आये मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी साथ में थे। मौके पर सभी आला अधिकारियों की टीम थी तथा स्वयं संजय गांधी निरीक्षण कर रहे थे, तभी एक बड़ा इंजीनियर संजय गांधी से बार-बार यह कह रहा था कि सर जैसी आप चाह रहे हैं वैसी इतनीं ज्यादा चौड़ी सड़कें नहीं बन सकती क्योंकि यहां यह बिल्डिंग है, वहां उस काॅलेज का हिस्सा है आदि-आदि। संजय गांधी ने आव देखा न ताव, एक झापड़ उसके गाल पर रसीद किया और कहाकि किस बेवकूफ ने तुझे इंजीनियर बना दिया और बोले कि मैं दिखाता हूं कि कैसे सड़क चौड़ी होती है। फिर उस इंजीनियर को तुरन्त नौकरी से बर्खास्त करा दिया। फलस्वरूप पूरी नौकरशाही पर टैरर छा गया। इसके पश्चात तुरन्त जेसीबी मशीनें हरकत में आ गईं और सब कुछ धराशायी हो गया तथा देखते ही देखते पूरा मैदान साफ और कुछ दिनों में ही घौंच पौंच वाली सड़कें दिल्ली बम्बई जैसी हो गईं। आज लोग कहते हैं कि संजय गांधी ने आगरा को चमन करा दिया। यदि इमरजेंसी और लम्बी चलती तो संजय गांधी पूरे देश को चमन करा देते।

जिस प्रकार हमारे देश में आज हिन्दुओं की आबादी दिन प्रतिदिन कम हो रही है और मुसलमानों की आबादी दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ रही है। उसी को नियंत्रित करने के लिए संजय गांधी ने परिवार नियोजन का अभियान चलाया था। वे यह तो कर नहीं सकते थे कि हिन्दुओं को छोड़ दिया जाये और केवल मुसलमानों की नसबंदी कराई जाये। संजय गांधी ने दूरगामी दृष्टि के तहत मुस्लिम आबादी नियंत्रित करने के उद्देश्य से यह अभियान चलाया था।

संजय गांधी और इमरजेंसी का दौर लम्बा चलता तो शायद देश के विभिन्न हिस्सों में बर्बर मुस्लिम शासकों द्वारा मन्दिरों को तोड़कर बनाए गऐ इन कलंको को भी कब का ढहा दिया गया होता। इमरजेंसी के दौरान दिल्ली सहित देश के कई हिस्सों में सड़कें चैड़ी करने के चक्कर में अनेक मस्जिदें नेस्तनाबूद कर दी गईं। संजय गांधी से बड़ा हिंदूवादी मुझे तो कोई दिखाई नहीं देता इसकी छाया आज भी उनके पुत्र वरुण गांधी में परिलक्षित होती है लेकिन दुर्भाग्य कि वे इस समय उसी स्थिति में हैं जैसे घने बादलों की अंधियारी में सूरज ढक जाता है।

रही बात इंदिरा गांधी की भले ही इंदिरा गांधी में लाख अवगुण सही लेकिन इसी इंदिरा गांधी ने पाकिस्तान के दो टुकड़े करके बांग्लादेश बनवा दिया। इसी इंदिरा गांधी ने पंजाब के सिख उग्रवाद को कुचल डाला और उग्रवादियों का अड्डा बने स्वर्ण मंदिर में सेना भेजकर हमेशा-हमेशा के लिये सिख उग्रवाद को जड़ से उखाड़ कर खालिस्तान बनाने का सपना चकनाचूर कर दिया। भले ही उन्हें इसकी कीमत अपनी जान देकर चुकानी पड़ी। आज जो रोना रोया जाता है कि कांग्रेस के शासन में सिखों की हत्या लूटपाट और भयंकर अत्याचार किए गए। असल में इसके दोषी कांग्रेस से ज्यादा वे सिख हैं जो देश विरोधी हो गए थे। और खालिस्तान बनाने की मांग पर डटे हुए थे।

सबसे बड़ी हत्या की जड़ वह बेअंत सिंह नामक गद्दार है जिसने इंदिरा के जीवन का रक्षक होते हुए भी उसी इंदिरा को मौत के घाट उतार दिया। उस दिन इंदिरा गांधी की हत्या नहीं, उस दिन तो विश्वास की हत्या हुई थी। इंदिरा ने बेअंत पर इतना विश्वास किया कि लोगों के कहने पर भी बेअंत को अपनी सुरक्षा से नहीं हटाया और कहा कि यह तो मेरा बहुत विश्वास पात्र है। बेअंत ने समूची सिख कौम को कलंकित ही नहीं किया बल्कि सिखों की हत्याओं व अत्याचारों के दोषी भी बेअंत और उसके वे साथी भी हैं जिन्होंने इंदिरा गांधी की हत्या की योजना में उसके साथ सहभागिता की और वे सिख भी कम दोषी नहीं है जो देश के टुकड़े करके खालिस्तान बनाने की मांग कर रहे थे।

यह वही इंदिरा गांधी हैं जिन्हें संसद में अटल बिहारी वाजपेयी ने दुर्गा भवानी का अवतार कहा था। इंदिरा गांधी और संजय गांधी में देशभक्ति कूट-कूट कर भरी थी। इंदिरा गांधी एक ऐसी बहादुर हिम्मत वाली लौह महिला थी जो देशहित के लिए अपनी जान भी कुर्बान कर गईं। हमें आज इंदिरा और संजय के द्वारा किए गए कार्यों में केवल खामियां ही नहीं देखनी चाहिए, उनके द्वारा की गई अच्छाइयों को भी याद रखना चाहिए।  

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