चुनाव तो लड़ना नहीं फिर हेमा जी मथुरा क्यों आएंगी?

-नहीं आईं तो क्या, हत्या, लूटपाट, डकैती, काले तेल का कारोबार और जमीनों पर कब्जे भी तो नहीं कराये

Update: 2020-07-22 02:48 GMT


विजय कुमार गुप्ता

मथुरा। सांसद हेमा मालिनी ने अब मथुरा से लगभग मुंह मोड़ सा रखा है। वे लम्बे समय से अपने संसदीय क्षेत्र में नहीं आई है। जो भी उद्घाटन या अन्य कार्यक्रम हो रहे हैं, वे आॅनलाइन ही चल रहे हैं। पूरा लाॅकडाउन गुजर गया उनके दर्शन नहीं हुए। इसी प्रकार जवाहर बाग कांड के दौरान भी वे नदारद रहीं।

लोगों में इस बात को लेकर रोष है कि अपने संसदीय क्षेत्र के प्रति उनकी उदासीनता आखिर क्यों? उनके दुख सुख की खैर खबर क्या वे मुंबई में बैठे-बैठे ही लेती रहेंगी? लोगों का कथन है कि जिस भरोसे से यहां की जनता ने उन्हें दोनों बार प्रचंड बहुमत से जिताया था, उसी प्रकार हेमा मालिनी को भी उनके दुख दर्द में यहां रहकर शामिल होना चाहिए था, किन्तु उन्होंने अपने मतदाताओं का भरोसा तोड़ा जो अनुचित है।

अब इसी बात को दूसरे नजरिए से भी देखना होगा। पिछले चुनाव के दौरान हेमा मालिनी ने स्पष्ट कहा था कि यह चुनाव उनका अंतिम है। इसके बाद अब वे लोकसभा का चुनाव नहीं लड़ेंगी। यह बात वे चुनावी सभाओं में अक्सर कहती रहतीं थीं। जब वे अगला चुनाव लड़ेंगी ही नहीं तो फिर क्यों खामखां में मथुरा आने जाने की परेड करें। उनका यह पैंतरा अपनी जगह सही हो सकता होगा किन्तु नैतिकता के आधार पर सही नहीं ठहराया जा सकता।

हालांकि नैतिकता और राजनीति का तो कोई रिश्ता है ही नहीं। यदि रिश्ता है तो वह है सांप और नेवले का। अब राजनीति में नैतिकता तलाशना ही मूर्खता होगी। दूसरी ओर हमें यह भी देखना होगा कि हेमा मालिनी एक संस्कारवान धार्मिक एवं आध्यात्मिक महिला हैं। उन्होंने अपने कार्यकाल में ब्रज के उत्थान हेतु अनेक प्रयास किए हैं और उसमें उन्हें सफलता भी मिली है। जिसमें मुख्यमंत्री द्वारा गठित बृज तीर्थ विकास परिषद की भूमिका ने भी सोने में सुगंध का काम किया है यानी कि बृज तीर्थ विकास परिषद द्वारा केन्द्र से संबन्धित प्रस्तावों को बनाकर हेमा मालिनी को दिया जाता था और हेमा मालिनी उन योजनाओं को केन्द्रीय मंत्रियों से मिलकर स्वीकृत कराती रहीं हैं।

यही कारण है कि हेमा मालिनी बृज तीर्थ विकास परिषद के उपाध्यक्ष गृहस्थ के संत शैलजाकांत मिश्र से बहुत प्रभावित हैं। चूंकि मिश्रा जी एक दम ईमानदार, कर्मठ एवं तपे हुए व्यक्तित्व के धनी हैं। वे बड़ी लगन के साथ बृज की सेवा में लगे हुए हैं। हेमा मालिनी उनकी कितनी मुरीद हैं इस बात का अंदाजा हेमा द्वारा समय-समय पर कही इस बात से पता चलता है कि मुझे ऐसे ही व्यक्ति की तलाश थी जो मुझे मिल गए। इसीलिए वे उन्हें विशेष स्नेह व सम्मान देती हैं। कभी-कभी तो ऐसा लगता है कि धर्मेन्द्र जी, ईशा और आहना आदि परिजनों की भांति मिश्रा जी भी उसी स्नेह व अपनत्व की श्रेणी में आ चुके हैं। हेमा जी की परख को दाद देनी पड़ेगी और दाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी की परख को भी देनी पड़ेगी जो उन्होंने भी एक अनमोल हीरे को छांटकर मथुरा भेजा।

हेमा मालिनी के बारे में एक और सकारात्मक पहलू यह भी है कि वह अन्य जन प्रतिनिधियों से एकदम भिन्न है। वह उनकी तरह लूटपाट में नहीं लगी हुई हैं। न उनका भाई, न उनका भतीजा, न उनका भांजा, ना बेटा और ना ही अन्य रिश्तेदार दोनों हाथों से लूटपाट में लगे हैं। चाहे ट्रांसफर कराना हो अथवा किसी संगीन मामले में फंसे होने पर बचवाना हो या निरपराधी को फंसवाना हो। तरह-तरह के काम अन्य जनप्रतिनिधियों द्वारा कराए जा रहे हैं। जैसे काम वैसे दाम। और तो और जघन्य हत्याएं, लूटपाट, डकैती, काले तेल का कारोबार, अपहरण तथा जमीनों पर कब्जे आदि संगीन अपराधों में लिप्त विकास दुबे जैसे लोग इन जनप्रतिनिधियों का संरक्षण प्राप्त किए हुए हैं।

ऐसा नहीं कि किसी को इन सभी बातों का पता न हो। सब जानते हैं कि कौन क्या कर रहा है, लेकिन किसी की मजाल नहीं जो मुंह खोल जाय, यानीं कि बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधे। दूसरी बात यह भी है कि किसी के मुंह खोलने से कुछ होना जाना भी नहीं। यह भी नहीं कि यह सब काम अब इसी समय हो रहे हैं। यह सब तो मैं पिछले कई दशकों से देखता चला आ रहा हूं। किन्तु दुख इस बात का है कि मोदी जी और योगी जी के होते हुए भी ऐसे लोगों पर नकेल नहीं कसी जा रही, उल्टे यह लोग फल फूल रहे हैं।

इसमें दोष केवल मोदी जी और योगी जी का ही नहीं दोष तो हम सभी का भी है। कहावत है कि एक अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता। यही कहावत मोदी जी और योगी जी पर सटीक बैठती है। क्योंकि हम सभी लोग सिर्फ अपना उल्लू सीधा करने तक ही सीमित रहते हैं। अगर पड़ोसी के घर में आग लगी है और हम उसे बुझाने नहीं दौड़ेंगे तो फिर अगला नम्बर हमारे घर का ही है।

चली बात पर एक और महत्वपूर्ण बात यह भी है कि कुछ लोग ऐसे भी हैं जिनके ऊपर यह कहावत सटीक बैठती है कि 'जहां पै देखी भरी परात वहां पै जागे सारी रात' यानीं कि जो दल सत्ता में आता दिखाई दे उसी में घुस जाते हैं और धनबल के आधार पर पहले टिकिट की जुगाड़ और फिर जीतने के बाद मंत्री पद तक की उछाल मारकर विकास दुबे जैसे लोगों के संरक्षक बन मौज मारते रहते हैं। यह बात भी मैं कई दशकों से देखता चला आ रहा हूं।

इन लोगों का न कोई चरित्र है, न संस्कार हैं और ना कोई आचार विचार। इनका तो केवल एक ही धर्म है कि मारो, लूटो, खाओ और मौज उड़ाओ। पार्टी के तपे तपाऐ संस्कारवान और समर्पित लोग एक किनारे पड़े रहते हैं तथा ये गैर संस्कारी और अय्याश लुटेरे शीर्ष पर बैठे उच्च लोगों की कृपा से ऊपर से थोप दिए जाते हैं और उसका खामियाजा जनता भुगतती रहती है।

ऐसा नहीं कि ये सब बातें ऊपर पता नहीं। सूबेदार तक सभी बातें पहुंच रही हैं किन्तु ऊपर बैठे शहंशाहों का वरदहस्त प्राप्त होने के कारण सूबेदार बेबस हैं और जनता ऐसे पिस रही है जैसे चने के साथ घुन। लोग इन सब बातों को देखकर ठीक उसी प्रकार आंखें मूंदे बैठे हैं जैसे बिल्ली के झपट्टा मारने पर कबूतर आंखें बंद कर लेता है और सोचता है कि कुछ हो ही नहीं रहा और फिर एक झटके में बिल्ली का निवाला बन जाता है। 

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