गिरते भूजल स्तर के लिए संजीवनी साबित हो रहा है कुंड-तालाबों का कायाकल्प

-6.14 करोड़ की लागत से तैयार हुए है 784 कुंड-तालाब, मनरेगा से ग्रामीणों को मिला रोजगार

Update: 2020-07-27 13:22 GMT

अजय खंडेलवाल

मथुरा। जिला प्रशासन ने 784 पौराणिक कुंड, तालाबों को खोदकर तैयार कर लिया है। प्रशासन की मंशा एक तरफ श्रद्धालुओं को पौराणिक महत्व का अहसास दिलाने की है तो दूसरी ओर जल संरक्षण से गिरते भूजल स्तर और पेयजल संकट को दूर करना है। इस एक योजना से ये दोनों ही कार्य सिद्ध होने जा रहे है।

मथुरा में भगवान श्रीकृष्ण काल के पौराणिक महत्व के कुंड और तालाब है, जो जीर्ण-शीर्ण हालत में थे। इधर ग्रामीण अंचल में पीने का पानी का संकट और गिरत जल स्तर सरकार और प्रशासन की परेशानी बढ़ा रहा था। इसको देखते हुए जिला प्रशासन ने सभी विकास खंडों में 784 तालाब-कुंडों की खुदाई का कार्य करवाकर उन्हें जल से भरवा दिया। इन कुंडों में कमल कुंड, नारद कुंड जैसे पौराणिक महत्व के कुंड भी शामिल है। 6.14 करोड़ रुपये की ये परियोजना पूरी हो चुकी है। जल निगम, आगरा मंडल के एक अध्ययन के अनुसार, इन प्रयासों से महत्वपूर्ण परिणाम सामने आए हैं, क्योंकि कुछ क्षेत्रों में जल स्तर 60 सेंटीमीटर तक बढ़ गया है और टीडीएस स्तर 84 पीपीएम के औसत से नीचे चला गया है।

मुख्य विकास अधिकारी नितिन गौर ने बताया कि दिल्ली से औद्योगिक प्रदूषण और भूजल पर लगातार बढ़ती निर्भरता के कारण खराब पानी की गुणवत्ता के साथ जिले भर में जल तालिका कम हो गई थी। तालाबों को भरने के लिए नदी के पानी को लाया गया, चैनल खोदे गए। कुछ स्थानों पर पंपों का उपयोग किया गया था।

राजस्व रिकाॅर्ड में दर्ज 2,015 तालाबों में से 1,062 की पहचान की गई और इनमें से 784 तालाबों को खोदकर पानी से भर दिया गया है। शेष तालाब या तो ग्रामीणों द्वारा अवैध अतिक्रमण के कारण मुकदमेबाजी के अधीन हैं या उनकी फिजोग्राफी के कारण कायाकल्प के लिए अधिक धन और प्रयासों की आवश्यकता है। लगभग प्रतिशत इस श्रेणी में हैं।

बरसात का जल सहेजने में कारगर साबित होगी योजना

मथुरा। बरसात से ठीक पहले जिला प्रशासन ने तालाब-कुडों को तैयार कर लिया है। विभागों के बीच बेहतर समन्वय की ये एक नजीर है। अब बरसात का पानी नाले-नालियों से होते हुए बहकर नहीं जाएगा बल्कि इन कुंडों में संरक्षित रहेगा। इससे एक ओर भूजल स्तर में तेजी के साथ सुधार होगा तो दूसरी ओर बरसात से गांवों में अनावश्यक जलभराव जैसी समस्याओं से निजात मिल सकेगी। पौराणिक महत्व के कुंडों के पुर्नजीवित होने से श्रद्धालुओं को भी अच्छा अनुभव होगा।  

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