विजय कुमार गुप्ता
मथुरा। कोरोना महामारी से बचाव करना है तो सर्वप्रथम मांसाहार त्यागना होगा, किंतु दुर्भाग्य की बात है कि महामारी की शुरुआत में तो लोगों ने मांसाहार से बचने की स्वतः जन जागृति हुई थी किंतु बाद में फिर वही पुराना ढर्रा चालू हो गया।
इससे भी ज्यादा दुर्भाग्य की बात यह है कि न केंद्र सरकार, न राज्य सरकारें और ना ही किसी सामाजिक संगठन या राजनैतिक दलों ने लोगों से मांसाहार त्यागने की अपील की है, जो अत्यंत दुखद है। सारी दुनिया जानती है कि यह महामारी मांसाहार से उत्पन्न हुई है और उसका जनक विश्व का सबसे ज्यादा घृणित मांसाहारी (सांप, बिच्छू, चमगादड़ तथा छिपकली आदि खाने वाला) देश चीन है। यह बड़े शर्म की बात है कि इस सब के बावजूद सरकारें और राजनैतिक पार्टियां इस ओर आंखें बंद करके मौन साधे बैठी हैं। इसके पीछे यह सोच है कि कहीं मांसाहारियों के वोट न छिटक जायें। बस केवल एक ही प्रलाप चलता रहता है कि लाॅकडाउन के नियमों का पालन करें और सोशल डिस्टेंसिंग बनाए रखें।
एक और दुर्भाग्य की बात यह है कि शराब खोरी को और प्रोत्साहित किया जा रहा है। कुछ दिन पहले लाॅकडाउन की सख्ती के दौरान भी शराब की दुकानें खोलने और बाद में घर-घर शराब पहुंचाने की छूट भी दे दी। दी भी क्यों न जाएगी, एमएलए, एमपी, मिनिस्टर और शासन चलाने वाली पूरी नौकरशाही वगैरा सभी में तो पियक्कड़ बैठे हैं। शराब न हुई गंगाजल हो गया। क्या तमाशा बना रखा है, शराबियों के वोटों पर भी तो इनकी नजर है।
तुर्रा यह कि शराब की बिक्री से राजस्व की अधिक प्राप्ति हो रही है। अगर ऐसी बात है तो चोरी, डकैती, लूटपाट, अपहरण तथा बलात्कार और यहां तक कि हत्या तक के लाइसेंस सरकारों को जारी कर देने चाहिए तथा उन पर मोटी रकम की फीस लगा देनी चाहिए यानीं कि जैसा अपराध वैसी ही फीस। फिर तो सरकारों के पास इतना राजस्व आएगा कि केंद्र और सभी राज्य सरकारें मालामाल हो जाएंगी।
लाॅकडाउन के समय तो धरमधीरा था किंतु अब जो छूट मिली है, उसके बाद तो सड़कों पर शराबी उत्पात मचाते और गंदी-गंदी गालियां बकते फिर रहे हैं। कुछ तो नालियों तक में पड़े दिखाई दे जाते हैं। इससे हमारे देश और समाज की कितनी शान बढ़ रही है। वाह रे गांधी के आदर्शों का बखान करने वालों। तुम्हारी कथनी और करनी का कितना बड़ा अंतर है। सबसे ज्यादा शर्मनाक बात यह है कि सप्ताह में दो दिन का लाॅकडाउन रखा है, उसमें बाकी सभी दुकानें बंद रहेंगी किंतु शराब की दुकानें उस अवधि में भी खुली रहेंगी। धन्य हैं ऐसे नियम कानून बनाने वाले और धिक्कार है हम सभी लोगों को जो चुपचाप यह सब सहन कर रहे हैं।
अपराधों की बाढ़ की मुख्य वजह लाॅकडाउन
अपराधों की जो बाढ़ चारों ओर आई हुई है उसकी मुख्य वजह इतने लंबे समय तक लाॅकडाउन लगाकर जनता को जो बेहाल कर दिया था वह है।
अनगिनत लोग आत्महत्या करके मर गए। सैंकड़ों ने परिवार के साथ आत्महत्या कर ली और करोड़ों लोग बेरोजगार और बीमार होकर छटपटाने लगे, कुछ तो पागल भी हो गए। तुर्रा यह कि लोगों की जान बचाने के लिए लाॅकडाउन जरूरी था। अगर ऐसी बात है कि कोरोना के मरीजों की संख्या में दिन दूना रात चैगुना इजाफा हो रहा है, फिर क्यों लाॅकडाउन में छूट दी और सप्ताह में पांच दिन खोलने की अनुमति दे दी।
बिल्कुल ही मत खोलो, सप्ताह के सातों दिन जनता को घरों में कैद कर दो। जिस पर बीतती है, वही जानता है। ये जो नियम कानून बना रहे हैं, वह सभी हर प्रकार की सुख सुविधाओं से संपन्न है। उनके ऊपर थोड़े ही बीती है। जाके पैर न फटी बिवाई, वो क्या जाने पीर पराई। ऐसे लोगों में वे भी हैं जो लंबे लाॅकडाउन की हिमायत करते हैं।
इस समय जिस कदर अपराधों की बाढ़ आई है, उससे लगता है कि यह वर्षा जैसी बाढ़ नहीं। यह तो बादल फटने वाली बाढ़ है। सरकार को सप्ताह के सातों दिन खोलने की छूट दे देनीं चाहिये ताकि दो दिन की बंदी के बाद बाजारों में एक साथ भीड़ न टूटे और लोगों की जिंदगी पटरी पर आए वर्ना हालात और भी विषम होने लगेंगे। आगे ऐसी स्थिति हो जाएगी कि लोग एक दूसरे के घरों में घुसकर रोटियां ले लेकर भागेंगे।