अगर हम जैन उसूलों से चलते तो कोरोना हमारे पास भी नहीं फटकता

Update: 2020-08-12 07:11 GMT

विजय कुमार गुप्ता

मथुरा। अगर हम जैन समाज द्वारा निर्धारित कायदे कानूनों के अनुसार चलते तो कोरोना महामारी हमारे पास भी नहीं फटकती। यह बात भले ही पढ़ने और सुनने में अजीब लगती हो किंतु एकदम सौ टके की पक्की बात है। भले ही कोई माने या न माने, बल्कि यों कहा जाना चाहिए कि यह बात वैज्ञानिक आधार की कसौटी पर भी एकदम खरी उतरती है।

वैज्ञानिक आधार पर यह बात सटीक इसलिए भी बैठती है कि जैन लोगों की एक बात बहुत अच्छी है। वह यह कि जैनियों में मुंह पर कपड़ा ढकने का नियम सदियों पुराना है जिसे आजकल मास्क कहा जाता है। भले ही जैन समाज के लोग आजकल इसे न लगाते हों किंतु जैन मुनि तो इस परंपरा को कायम रखते हुए सदियों से लगाते आ रहे हैं।

जिस मास्क को लगाने की हाय तौबा अब हो रही है, उसको यदि शुरू से ही हम सब लगा रहे होते तो फिर कोरोना से स्वतः ही कितना बड़ा बचाव होता इस बात को हमें मानना ही होगा। जैन मत के अनुसार मुंह पर कपड़ा इसलिए ढका जाता है कि कोई भी जीवाणु मुंह के द्वारा शरीर के अंदर प्रवेश न कर सके क्योंकि जैन मत में जीव जंतुओं के प्रति दया व शाकाहार की भावना सर्वोपरि है।

इसी दया व शाकाहारी भावना के चलते जैन लोग पानी को भी छानकर पीते हैं। यह सिलसिला में बचपन से देखता आया हूं और सदियों से चला आ रहा है। पहले नलों की टोंटियों से ही लगभग सभी घरों में म्युनिसिपालिटी का पानी आता था। जैन लोग टोंटियों के मुंह पर ही कपड़ा बांध कर रखते चले आऐ हैं ताकि पानी के साथ कोई भी कीड़ा मकोड़ा न आ जाये। इसके पीछे भी मुंह पर कपड़ा (मास्क) ढकने वाली वही भावना है।

एक और महत्वपूर्ण बात यह है चूंकि जैन समाज कट्टर शाकाहारी होता है और कोरोना की यह महामारी मांसाहार से उत्पन्न हुई है यदि सभी लोग शाकाहारी होते तो न होता बांस और न बजती बांसुरी वाली बात स्वतः ही होती। सभी लोग शाकाहार वाली स्वस्थ और सुख शांति की जिंदगी जीते।

जो लोग मांसाहार के समर्थन में कुतर्क करते हैं उन अकल के पैदल लोगों को यह समझ होनी चाहिए कि एक चूहे या अन्य किसी मरे हुए जानवर को एक डिब्बे में बंद करके रख दो और दूसरी ओर किसी फल सब्जी या रोटी को दूसरे डिब्बे में बंद करके रख दो तथा एक दो दिन बाद खोल कर देखो तो सही स्थिति पता चल जाएगी। यानीं कि मरे जानवर वाले डिब्बे में इतनी भयंकर सड़न होगी कि डिब्बे का ढक्कन खुलते ही वहां कोई खड़ा नहीं रह सकेगा, तथा फल सब्जी या रोटी वाले डिब्बे में सिर्फ फफूंदन या हल्का सा बासीपन ही होगा। मतलब साफ है कि सारी बीमारियों की जड़ मांसाहार ही है।

इसका एक पहलू यह भी हमें गौर करना होगा कि शरीर के अंदर जो खाना जाता है वह ऐसा नहीं कि सुबह का खाना शाम या दूसरे दिन पूरा का पूरा मल के द्वारा निकल जाय। वह खाना तो छोटे-छोटे कणों के रूप में आंतों व अन्य हिस्सों में कई कई दिनों तक बना रहता है। जब डिब्बे में एक दो दिन बाद ही मरे जानवर से भयंकर सड़क हो जाएगी तो फिर शरीर के अंदर क्यों नहीं होगी? वहां क्या मांस के छोटे-छोटे टुकड़े खुशबू छोड़ेंगे? सीधा सीधा वही मतलब है कि बीमारियों की जड़ मांसाहार ही है।

एक जो बात अब कहना चाहता हूं वह सबसे बड़ी है। वह यह है कि निरीह प्राणियों का वध होते समय उनका जो करुण क्रंदन और चीत्कार होता है वह मनुष्य जाति के लिए बड़ा घातक है। उससे भी अधिक घातक मौन चीत्कार होता है यानीं कि कुछ नर पिशाच लोग पशुओं के मुंह को रस्सी से बांधकर कत्ल करते हैं। उस समय उनके मुंह से आवाज भी नहीं निकलती। यह मौन चीत्कार तो ऐसा भयानक होता है कि सब कुछ तहस-नहस और मटिया मेट करके ही मानता है। जो वर्तमान में प्रत्यक्ष दिखाई भी दे रहा है।

इसीलिए यदि हम दुनियां वाले जैन मत के अनुसार परमार्थ और दयालुता से चलते तो यह महामारी हमारे पास भी नहीं फटकती बल्कि अन्य तमाम बीमारियों से भी बचाव में बने रहने की गुंजाइश रहती। जैन मत में अहिंसा और जीव जंतुओं में दया वाली भावना को कोटि-कोटि नमन।


राजधानीं मिल के मालिक दूधौं नहाऐं, पूतों फलें

आजकल देखने में आता है कि अक्सर विभिन्न कंपनियों व अन्य प्रतिष्ठानों के मालिक लोग अपने कर्मचारियों का शोषण अधिक करते हैं और पोषण कम। बुरे समय में तो एकदम मुंह मोड़ लेते हैं।

ठीक इसके विपरीत राजधानी फ्लोर मिल के मालिकों का व्यवहार ऐसा है जिस पर हर कोई विश्वास नहीं कर सकता क्योंकि यह मालिक लोग जैन हैं। चूंकि राजधानी फ्लोर मिल से मेरा संपर्क है और उसके मालिकों को अच्छी तरह से जानता हूं व वहां के कर्मचारियों व अधिकारियों से भी मेरा परिचय है। इसलिए कुछ बातें अंदर की पता चलती रहती हैं जिन्हें शेयर करना चाहता हूं। राजधानी फ्लोर मिल के मालिक हैं एसके जैन। बुजुर्ग होने के कारण उनके एकमात्र पुत्र चेतन्य जैन ही सारे कारोबार को संभालते हैं। वे बड़े ही दयालु और जीव जंतुओं के प्रति समर्पित भाव रखते हैं।

राजधानी फ्लोर मिल के एक अधिकारी भुवनेश गौड़ जो यूपी के सेल्स मैनेजर हैं की पुत्री असाध्य रूप से बीमार हो गई तथा कई वर्षों तक इलाज चला। इलाज में दसियों लाख रुपए खर्च हो गए किंतु चेतन्य जी ने भुवनेश जी को हर समय हिम्मत दी तथा उनके पास आर्थिक परेशानी को फटकने तक नहीं दिया। हालांकि बेचारी पुत्री बच नहीं सकी। भुवनेश जी चेतन्य जी की तारीफ करते-करते कभी-कभी भावुक हो जाते हैं। यह तो एक किस्सा हुआ। इसके अलावा प्लांट मैनेजर थे गोयल साहब। वह भी असाध्य रूप से बीमार हो गऐ तथा लंबे समय तक घर पर ही रहे किंतु चेतन्य जी ने पूरे समय तक उनकी पूरी तनख्वाह घर बैठे ही पहुंचवाई ही नहीं बल्कि हर प्रकार से उनकी मदद की। बाद में वे भी स्वर्गवासी हो गऐ।

ऐसे एक नहीं अनेक किस्से राजधानी परिवार के लोगों से मुझे पता चलते हैं कि वह अपने कर्मचारियों के दुख सुख में हर प्रकार से शामिल रहते हैं तथा पक्षी अस्पतालों में भी उनकी ओर से मोटी रकम सेवार्थ जाती रहती है। भले ही चेतन्य जी एक एक पैसे को दांतों से पकड़ते हैं किंतु अपने कर्मचारियों और पशु पक्षियों व जीव जंतुओं के लिए अपना दिल खोल कर रखते हैं। धन्य है चेतन्य जी और उससे भी ज्यादा धन्य उनके माता-पिता हैं जिन्होंने उन्हें ऐसे संस्कार दिये। वह दूधौं नहाऐं और पूतों फलें। ईश्वर उन्हें शतायु करें।


जैन समाज का पक्षी अस्पताल बेमिसाल

जैन समाज द्वारा चांदनी चैक दिल्ली में एक ऐसा पक्षी अस्पताल बना रखा है जिसमें सैकड़ों किस्म के हजारों घायल पक्षी हैं जिनकी सेवा अनुकरणीय तरीके से की जाती है जो अपने आप में बेमिसाल है।

लाल किले के निकट स्थित इस पक्षी अस्पताल में कोई भी किसी भी तरह के पक्षी का निःशुल्क उपचार करा सकता है तथा जो लोग कहीं भी किसी भी पक्षी को घायल अवस्था में पड़ा हुआ देखते हैं तो वे उन्हें वहां छोड़ जाते हैं। उन पक्षियों की सेवा किस प्रकार होती है यह शब्दों में बयां नहीं की जा सकती। शायद देश में इस तरह का यह पहला अस्पताल होगा।

तमाम डाॅक्टर वहां मुस्तैद रहते हैं। जब वह पक्षी उड़ने लायक हो जाते हैं तब उन्हें आसमान में स्वच्छंद विचरण के लिए छोड़ दिया जाता है और जो पक्षी कभी पूरी तरह ठीक नहीं हो पाते यानीं उड़ने के लायक नहीं हो पाते उन्हें ताजिंदगी वहीं सुख-सुविधाओं में रखा जाता है। मेरे पास भी जो घायल पक्षी आते रहे हैं उन्हें मैं भी वहीं भेजता आया हूं। जो सज्जन उन पक्षियों को वहां छोड़ कर आते रहे हैं। वे बताते हैं कि वहां गर्मियों में कूलर पंखे तथा स्वच्छंद विचरण के लिए कवर्ड खुले मैदान तक की व्यवस्था है।

जैन समाज के लोग इस अस्पताल के लिए दिल खोलकर सहायता प्रदान करते हैं। जो पक्षी स्वयं चैंच से दाना नहीं उठा सकते उन्हें एक-एक दाना हाथ से चैंच में डालकर चुगाया जाता है। पक्षियों के मेजर आॅपरेशन तक करके उनके प्राणों की रक्षा हर संभव तरीके से की जाती है। कई वर्षों से मेरे द्वारा घायल पक्षियों को वहां भेजने की व्यवस्था सुचारू थी किंतु इस कलमुंहे लाॅकडाउन के कारण फिलहाल अब वह बंद है। इस लाॅकडाउन ने इंसान ही नहीं पशु पक्षियों तक को बुरी तरह प्रभावित किया है। शायद कोरोना ने इंसानों और पशु पक्षियों को इतना नहीं सताया होगा उससे कहीं ज्यादा लाॅकडाउन ने सताया है। मेरे जीव जंतु पशु पक्षी प्रेम की वजह से कुछ लोग कभी-कभी पूछ बैठते हैं कि क्या आप जैन हो? मैं कहता हूं की मैं जैन तो नहीं हूं किंतु भावना जैनियों जैसी है।  

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