ब्रज की रासलीला को संरक्षण देने के लिए योगी सरकार ने कसी कमर

भातखंडे यूनिवर्सिटी से ब्रज तीर्थ विकास परिषद ने किया एमओयू, एक साल का होगा कोर्स

Update: 2023-07-13 21:13 GMT

मथुरा। रास लीला कला को जीवंत रखने के लिए योगी सरकार ने पहल शुरू की है। रासलीला में भगवान के विभिन्न स्वरूप बनने की इच्छा रखने वाले कलाकारों के लिए 1 वर्ष का कोर्स कराया जाएगा। द्वापर युग में भगवान श्री कृष्ण ने ब्रज में जिन लीलाओं को किया। उन्हीं लीलाओं का मंचन सदियों से ब्रज भूमि के साथ-साथ देश-विदेश में होता रहा है। लेकिन आज के समय में रासलीला कला विलुप्त होने के कगार पर पहुंच गई है। इस कला को जीवंत रखने के लिए यूपी की योगी सरकार ने पहल शुरू की है।

रासलीला में भगवान के विभिन्न स्वरूप बनने की इच्छा रखने वाले कलाकारों के लिए 1 वर्ष का कोर्स कराया जाएगा। ब्रज तीर्थ विकास परिषद ने इसके लिए भातखंडे यूनिवर्सिटी लखनऊ के साथ मिलकर एमओयू साइन किया है। इसके तहत रासलीला अकादमी में एक साल का सर्टिफिकेट कोर्स कराएगा। फॉर्म भरने की आखिरी तारीख 31 जुलाई है। फॉर्म वृंदावन की रासलीला एकेडमी से प्राप्त की जा सकती है।

3 दशक पहले तक इस कला से ब्रज में जुड़े थे 30 हजार युवा

ब्रज में रासलीला को भगवान की सेवा का एक अभिन्न अंग माना जाता रहा है। रासलीला करने के लिए 3 दशक पहले तक ब्रज में 25 से 30 हजार युवा जुड़े थे। ब्रज के वृंदावन, मथुरा, बरसाना, नंदगांव आदि जगहों पर सैंकड़ों मंडलियां होती थी। इन मंडलियों में लीला का मंचन करने वाले युवा लंबे समय तक अभ्यास करते थे। इसके बाद वह भगवान की लीलाओं का मंचन किया करते थे।

आधुनिकता के दौर में लीला करने वाले युवाओं में आई कमी

30 साल पहले तक रासलीला करने के लिए युवा उत्साहित नजर आते थे। वह अब धीरे-धीरे कम होते जा रहे हैं। रासलीला पर आधुनिकता हावी होती जा रही है। आज के समय रासलीला सीखने वाले कम युवा रहे गए हैं। मंडलियों की संख्या में भी कमी है। स्वामी घनश्याम बताते हैं, युवाओं की संख्या में आई कमी की सबसे बड़ी वजह मोबाइल और इस काम में मेहनत के अनुरूप राशि न मिलना है। अब रासलीला से जुड़े अधिकांश लोग अब या तो भागवत कथा कर रहे हैं या फिर पांडित्य कार्य।

रासलीला अकादमी बच्चों को जोड़ेगी रास कला से

विलुप्त होती रासलीला को बचाने के लिए अब उत्तर प्रदेश की योगी सरकार के निर्देश पर ब्रज तीर्थ विकास परिषद ने पहल की है। ब्रज तीर्थ विकास परिषद ने वृंदावन में स्थित गीता शोध संस्थान एवं रासलीला अकादमी में एक वर्षीय सर्टिफिकेट पाठ्यक्रम शुरू किया है। जिसके तहत एक वर्ष तक बच्चों को रासलीला का प्रशिक्षण दिया जाएगा।

10 से 18 वर्ष के बच्चों को मिलेगा प्रशिक्षण

रासलीला अकादमी में प्रशिक्षण 10 वर्ष से 18 वर्ष तक के बच्चों को दिया जाएगा। इसके लिए न्यूनतम योग्यता 8 वीं पास रखी गई है। इस प्रशिक्षण के लिए कक्षाएं दोपहर 3 बजे से शाम 7 बजे तक चलेंगी। इसके लिए रासलीला अकादमी में दो स्टूडियो बनाए गए हैं। जहां इन बच्चों को रासलीला का प्रशिक्षण दिया जाएगा।

5 शिक्षक देंगे प्रशिक्षण

रासलीला का प्रशिक्षण हफ्ते में 6 दिन चलेगा। इसके लिए 5 शिक्षकों की नियुक्ति की जायेगी। जिसमें एक मुखिया यानी की रास के पदों का गायन करने वाले,इनके अलावा तबला, ढोलक, बांसुरी वादक और कत्थक सिखाने वाले अध्यापक होंगे। इस प्रशिक्षण के लिए कम से कम 20 और ज्यादा से ज्यादा 40 बच्चों को एक सत्र में प्रशिक्षित किया जायेगा। रासलीला सर्टिफिकेट पाठ्यक्रम के लिए आवेदन पत्र लेने की अंतिम तारीख 31 जुलाई रखी गई है।

भातखंडे यूनिवर्सिटी से हुआ करार

रासलीला सर्टिफिकेट पाठ्यक्रम को भातखंडे संस्कृति यूनिवर्सिटी ने मान्यता दे दी है। रासलीला का प्रशिक्षण लेने वाले बच्चों को भातखंडे संस्कृति यूनिवर्सिटी लखनऊ द्वारा सर्टिफिकेट प्रदान किए जाएंगे। इस प्रशिक्षण कार्यक्रम के दौरान थ्योरी और प्रैक्टिकल यानि थ्योरी में रास के बारे में और प्रैक्टिकल में रास का मंचन कराया जाएगा। सेमेस्टर वाइज पेपर भी कराए जाएंगे।

अकादमी में चल रहा एक महीने का प्रशिक्षण कार्यक्रम

रासलीला अकादमी में 15 जून से 15 जुलाई तक 1 महीने का रासलीला प्रशिक्षण कार्यक्रम चल रहा है। इसमें 15 बालक-बालिकाओं को रास का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। प्रशिक्षण दे रहे स्वामी घनश्याम ने बताया कि रासलीला केवल मंचन नहीं यह भगवान रास बिहारी की निकुंज लीला है। यह विलुप्त कभी नहीं हो सकती। हां, वर्तमान में आधुनिकता इस पर हावी है जिसकी वजह से इसका मंचन कम हो गया है। अकादमी के कॉर्डिनेटर चंद्र प्रताप सिकरवार ने बताया जा रासलीला सीखने का कोर्स शुरू किया गया है उसको भातखंडे संस्कृति यूनिवर्सिटी ने मान्यता दी है।

निधिवन एवं सेवाकुंज में आज भी भगवान करते हैं रास

रासलीला का ब्रज में कितना महत्व है इसका पता चलता है भगवान बांके बिहारी जी की प्राकट्य स्थली निधिवन और राधा जी की स्थली सेवाकुंज से। मान्यता है कि आज भी भगवान इन दोनों स्थानों पर रास करने के लिए रात्रि में आते हैं। इन दोनों ही जगहों पर शयन आरती के बाद रात में कोई नहीं रुकता। यहां तक कि इन दोनों वनों में रहने वाले बंदर, पक्षी शयन आरती होने के साथ ही वन को छोड़ देते हैं।

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