राजनैतिक पार्टियों के जिलाध्यक्षों का इस चुनाव में नहीं दिख रहा कोई रुझान
संगठन में बैठे पदाधिकारियों से पार्टी से नहीं व्यक्ति के आधार पर करेंगे चुनाव
बांदा। विधानसभा चुनावों को लेकर चुनाव आयोग की घोषणा के साथ मतदान हेतु तिथियां तय होने के बाद जहां चुनाव और मतदान की तिथियां सरपट दौड़ लगाकर अपने नियत समय पर आने की तैयारी में है वहीं जनपद बांदा की चारो विधानसभाओं में फिलहाल किसी भी राजनीतिक दल और निर्दलीय का न चुनाव का कोई चित्र दिख रहा न ही चुनाव प्रचार।
सबसे बुरा हाल जिलास्तरीय राजनीतिक दलों के सांगठनिक ढांचों के लचर-पचर स्थिति में रहने के साथ संगठन में बैठे जिम्मेदार पदाधिकारियों के कारण विधानसभा चुनाव की रूपरेखा को वह बल नहीं मिल रहा जिस बल के जरिए पार्टी को जीरो ग्राउंड से उठाकर आगे चलाने की गतिविधियां अपनायी जाती हैं। भाजपा से लेकर सपा, बसपा व कांग्रेस, आम आदमी पार्टी सहित अन्य छोटे दल और सामाजिक सेवाओं का दंभ भरने वाली संस्थाओं में जुड़े लोग चुनाव को लेकर अपनी जागरूकता नहीं दिखा पा रहे। न ही मतदाताओं को जागरूक कर उनको उचित दशा और दिशा का बोध करा पा रहे हैं। यह चर्चा इन दिनों होने वाले विधानसभा चुनावों को लेकर जिले की चारो विधानसभाओं में आम मतदाता की जुबानी है। जरूर प्रशासनिक स्तर पर मतदाताओं के जागरुकता अभियान चलाकर उन्हें जागरूक करने के लिए तरह-तरह के फंडे अपनाए जा रहे हैं। जिलाधिकारी ने मतदाताओं की जागरुकता के लिए ब्रांड अंबेस्डर आदि नियुक्त किए है।
मुख्य तौर पर जिले में पांच राजनीतिक पार्टियों द्वारा विधानसभा चुनाव के समर में उतरने की तैयारी की चर्चा आम हो गई है। कहीं पर अपने आपको राजनीतिक धुरंधर मानने वाले लोग पार्टी छोड़कर पाला बदलने में लगे हैं। तो कहीं मतदाता भी असमंजस का शिकार है। जिले की चारो विधानसभा बांदा, नरैनी, बबेरू व तिंदवारी में जहां अभी तक किसी भी राजनीतिक दल द्वारा अधिकृत प्रत्याशी की घोषणा नहीं हुयी है जरूर कहीं पार्टी के कुछ दिग्गजों द्वारा सांकेतिक तौर पर की जाने वाली दावेदारियों पर बिना स्याही की जुबानी मोहर लगा दी है उसके चलते कई दावेदार अपने-आपको पुख्ता प्रत्याशी मानकर तैयारी में जुट गए हैं।
मुख्य तौर पर बहुजन समाज पार्टी के दावेदार प्रत्याशी की तर्ज पर अपना चुनाव प्रचार करने में घर से बाहर कदम निकाले हैं। लेकिन बसपा की पुरानी राग और रंगत को जानने वाले लोगों का यह कहना है कि दावेदारों का नाम कभी भी बदल सकता है। और तो और सदर विधानसभा की चुनावी तस्वीर में अभी ऐसा भी कुछ नहीं दिख रहा। जहां मंडल/जिला मुख्यालय है और सभी राजनीतिक दलों के सांगठनिक ढांचे के जिला कार्यालय मुख्यालय में स्थित है। जनता के बीच से आ रही चर्चाओं को माने तो जिले में राजनीतिक दल भाजपा, सपा, बसपा व कांग्रेस के जिला स्तरीय सांगठनिक ढांचों में बैठे जिलाध्यक्ष सहित अन्य जिम्मेदार पदाधिकारियों द्वारा अभी तक अपनी-अपनी पार्टी को मजबूत बनाने के साथ जनता की अदालत में पहुंचना उचित नहीं समझा गया। न ही ऐसा कोई जन संपर्क अभियान जारी किया गया जिसकी छोटी से छोटी कोई तस्वीर दर्शकों की आंखों में चुभकर बैठ जाए।
आम जनता का कुछ ऐसी जुबानी प्रकाश में आने लगी है। राजनीतिक सांगठनिक ढांचों को लेकर आम आदमी का कथन है कि जिले में राजनीतिक दल भाजपा हो या सपा, कांग्रेस हो या बसपा आम जनता के बीच जाकर उनसे जनसंपर्क करने में जहां अपनी पहुंच बनाने में कामयाब नहीं रहे वहीं जनसमस्याओं के निस्तारण में भी राजनीतिक दलों के संगठनों सहित कथित समाजसेवियों का कोई बेहतर रोल नजर नहीं आया। अब चुनाव आगमन को लेकर जनता के बीच तमाम ऐसी चर्चाएं और आरोप-प्रत्यारोपों का दौर जारी है जिसके कारण राजनीतिक दल से जनता जुड़ने का मन नहीं बना पा रही या फिर अभी राजनीतिक दलों द्वारा जनता को अपने साथ जोड़ने के लिए लुभावनी गोटें तैयार की जा रही है।