गोरखपुर: कोरोना की वजह से वर्चुअल हो रहे हैं कर्मकांड, पुरोहितों को ऑनलाइन दिया जा रहा दक्षिणा
दुर्गाबाड़ी क्षेत्र के रहने वाले कोरोना संक्रमित जयप्रकाश की मौत के बाद घरवालों ने कोविड प्रोटोकाल के तहत अंतिम संस्कार कराया। संक्रमण फैलने के डर से पुरोहित घाट पर भी नहीं आए। आर्य समाज विधि से कर्मकांड कराने का निर्णय लिया। वर्चुअल माध्यम से परिवार के सदस्यों ने मृतक की आत्मा की शांति के लिए तीन दिनों तक हवन किया।
गोरखपुर: समय और परिस्थिति के अनुसार मनुष्य खुद को बदल लेता है। कोरोना संक्रमण के इस लहर में लोग खुद को बदल रहे हैं। संक्रमण का असर कम करने के लिए लोगों ने रीति रिवाज और परंपरा का नया रास्ता खोज लिया हैं। कोरोना संक्रमण से मौत होने पर परिजन की आत्मा की शांति के लिए अब पुरोहित को घर न बुलाकर वीडिया काल या वर्चुअल माध्यम से मंत्रोच्चार करा रहे हैं। मंत्रोच्चार में परिवार के सदस्य जहां हैं, वहीं से मृतक की आत्मा की शांति के लिए हवन में आहूति डाल रहा है। इससे पुरोहित को कोरोना संक्रमण का खतरा भी नहीं हो रहा और आत्मा की शांति के लिए हवन कर परिजन खुद संतुष्ट हो रहे हैं। पुरोहित को दान दक्षिणा पैसे के रूप ऑनलाइन पेमेंट के जरिए दिया जा रहा है।
बेतियाहाता क्षेत्र के रहने वाले सर्वेश त्रिपाठी की दो दिन पहले कोरोना के संक्रमण से मौत हो गई। परिवार में 4 लोग अब भी संक्रमित हैं। कोविड प्रोटोकाल के तहत अंतिम संस्कार के बाद सबसे बड़ी समस्या कर्मकांड की थी। संक्रमण फैलने की डर से पुरोहित ने कर्मकांड के लिए घर आने से मना कर दिया। परिवार के एक सदस्य वर्चुअल मंत्रोच्चार के जरिये आर्य समाज विधि से कर्मकांड पूरा करवाने का सलाह दिया। परिवार में सहमति बन गई। पुरोहित से वर्चुअल मंत्रोच्चारण के जरिए हवन करवाने अनुरोध किया गया। पुरोहित ने सहमति दी और मृतक की आत्मा की शांति के लिए 3 दिन हवन हुआ। पुरोहित मोबाइल पर लाइव होते थे। दूसरी ओर यजमान भी मोबाइल या लैपटॉप पर लाइव होकर हवन करवा रहे थे।
दुर्गाबाड़ी क्षेत्र के रहने वाले कोरोना संक्रमित जयप्रकाश की मौत के बाद घरवालों ने कोविड प्रोटोकाल के तहत अंतिम संस्कार कराया। संक्रमण फैलने के डर से पुरोहित घाट पर भी नहीं आए। आर्य समाज विधि से कर्मकांड कराने का निर्णय लिया। वर्चुअल माध्यम से परिवार के सदस्यों ने मृतक की आत्मा की शांति के लिए तीन दिनों तक हवन किया ।
किसी की मृत्यु के बाद सनातन धर्म में विधि पूर्वक नदी तट पर अंतिम संस्कार करने की मान्यता है। अंतिम संस्कार के बाद घंट बांधा जाता है। 10 दिनों तक कर्मकांड के बाद ब्रह्मभोज होता है। कोरोना से मौत के मामले में अंतिम संस्कार के लिए शवों को कोविड प्रोटोकाल के तहत भेजा जाता है इसलिए कर्मकांड नहीं हो पाता है।
आर्य समाज कर्मकांड विधि
मौत के बाद आर्य समाज विधि में तीन दिनों तक हवन की मान्यता है। हवन से मृतक की आत्मा को शांति मिलती है। तीसरे दिन जरूरतमंदों में भोजन व सामर्थ्य के अनुसार दान के बाद परिवार के सदस्य सामान्य जीवन में आ सकते हैं। इस बदलाव को लोग स्वीकार कर रहे हैं। आर्य समाज मंदिर लालडिग्गी के आर्य पुरोहित ने बताया कि कोरोना के कारण लोग बदलाव को स्वीकार कर रहे हैं। खुद और पुरोहित को कोरोना संक्रमण से बचाने के लिए वर्चुअल मंत्रोच्चार के बीच हवन पूजन हो रहा हैं। मृतक की आत्मा की शांति के लिए हवन पाठ जरूरी होता है। आर्य समाज की विधि में कर्मकांड तीन दिनों में पूरा होने के बाद कुछ लोग अपने परंपरा के अनुसार 12वें,13वें या 16 वें दिन जरूरतमंदों में भोजन, वस्त्र आदि का भी वितरण करते हैं।