पालकी व चंद्रप्रभा पर आरूढ़ हो दिए दर्शन
वृन्दावन। उत्तर भारत के प्रसिद्ध श्रीरंगनाथ मंदिर में चल रहे दस दिवसीय श्रीब्रह्मोत्सव में रविवार को प्रात: प्रणय कलह लीला का आयोजन किया गया, जिसमें भगवान रंगनाथ ने देवी गोदाजी के साथ गेंदबच्ची का खेल खेलकर उन्हें मनाया और यमुना तक की सैर की। सायंकाल श्रीगोदारंगमन्नार ने चंद्रप्रभा पर आरूढ़ हो भक्तों को दर्शन दिए और आतिशबाजी का आनंद लिया।
ब्रह्मोत्सव के नवें दिन आयोजित प्रणय कलह लीला के बारे में बताया जाता है कि भगवान जब शिकार से वापस आते हैं तो उनके वस्त्र, केश आदि बिखरे हुए होते हैं, जिस पर माता गोदा उन पर शक करते हुए झगड़ा करती हैं और द्वार को बंद कर देती हैं। भगवान के बार-बार आग्रह विनय के बाद वह दरवाजा खोलती हैं और नाराजगी व्यक्त करती हैं। इसके बाद भगवान रंगनाथ देवी गोदाजी को मनाने के लिए फूलों की गेंद बनाते हैं और उन पर फेंकते हैं। इस गेंदबच्ची खेल लीला से गोदाजी मान जाती हैं और भगवान के साथ यमुनाजी के लिए प्रस्थान करती हैं। स्वर्ण पालकी में विराजमान भगवान गोदारंगमन्नार यमुनाजी के पुलिन तट पर पहुंचे, जहां ठाकुर और यमुना मैया की आरती की गई। तत्पश्चात मंदिर पहुंचने पर ठाकुरजी ने पुष्करणी में स्नान किया।
वहीं सायं 8 बजे बैंडबाजे व दक्षिण शैली के वाद्य यंत्रों की स्वर लहरियों के मध्य शुरू हुई सवारी में भगवान श्रीगोदारंगमन्नार चांदी के चंद्रप्रभा पर विराजमान होकर बगीचा पहुंचे। जहां अल्प विश्राम के पश्चात ठाकुरजी के बगीचा से बाहर मैदान पर आते ही आतिशबाजी का प्रदर्शन किया गया, जिसमें ठाकुरजी ने आतिशबाजी का आनंद लिया। वहीं आतिशबाजी का लुत्फ उठाने आए स्थानीय एवं आसपास के ग्रामीण व शहरीर क्षेत्रों के श्रद्धालु भक्त अपने आराध्य के दर्शन और रंग-बिरंगी रोशनी व तेज आवाज के साथ हो रही आतिशबाजी को देख आनंदित होकर जयघोष करने लगे, जिससे संपूर्ण वातावरण भगवान गोदारंगमन्नार के जयकारों से गुंजायमान हो उठा। हालांकि आतिशबाजी का आयोजन ब्रह्मोत्सव के आठवें दिन होता है, लेकिन तेज आंधी व बरसात के कारण सफल न होने के कारण रविवार को पुन: आतिशबाजी का प्रदर्शन किया गया।
इस अवसर पर अनघा श्रीनिवासन, माल्दा गोवर्धन, रम्या रंगाचार्य, स्वामी राजू, चक्रपाणि मिश्र, विजय मिश्र, विजय अग्रवाल, राजेश दुबे, विश्वास, हरस्वरूप, कन्हैया, बुद्धसेन, शशांक शर्मा, प्रशांत शर्मा मिंटू, पंकज शर्मा, जय शर्मा, तिरुपति, आनंद, स्वामी रघुनाथ आदि प्रमुख रूप से उपस्थित रहे।