याद है वह स्नेहिल स्पर्श

याद है वह स्नेहिल स्पर्श
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याद है वह स्नेहिल स्पर्श


मेरे जीवन की एक घटना है, जिसने मुझे व्यक्तिगत रूप से भी पटवाजी के अंदर कितना संवेदनशील हृदय है यह समझने का अवसर दिया। बात उन दिनों की है, जब प्रदेश में कांग्रेस की सरकार थी और श्री दिग्विजय सिंह मुख्यमंत्री। श्री सिंह राघौगढ़ से विधायक का उप चुनाव लड़ रहे थे। भाजपा ने स्व. रामप्रसाद शिवहरे को टिकिट दिया था। मैं उन दिनों मध्य स्वदेश गुना में स्थानीय संपादक था।

स्वदेश में एक खबर प्रकाशित हुई थी ‘मिलिए रामप्रसाद शिवहरे से’ यह खबर हमारे सहयोगी योगेश ने कवर की थी।

पत्रकारिता के मानदंड पर खबर अच्छी थी, पर कतिपय भाजपा नेताओं को वह खबर ठीक नहीं लगी। पटवाजी उन्हीं दिनों में राजगढ़ संसदीय क्षेत्र जिसमें राघौगढ़ भी आता है एक संघर्ष यात्रा निकाल रहे थे। श्री दिग्विजय सिंह के अनुज जो राघौगढ़ से तत्कालीन विधायक थे, सद्भावना यात्रा पर थे। जाहिर है राजनीतिक लिहाज से मध्यप्रदेश विशेषकर गुना जिला राष्ट्रीय राजनीति के नक्शे पर प्रमुखता लिए हुए था। ऐसे संवेदनशील समय में भाजपा नेताओं ने पटवाजी से क्या कहा, यह तो वे ही जानें पर पटवाजी बताते हैं बेहद नाराज हो गए। उन्होंने अपनी नाराजगी तत्काल हमारे प्रधान संपादक स्व. मामाजी से भी प्रकट की। मामाजी ने फोन पर मुझसे बात की और वस्तु स्थिति की जानकारी ली। स्वदेश चूंकि स्वतंत्र पत्रकारिता का हमेशा से पक्षधर रहा है अत: मामाजी ने कहा कि परेशानी की कोई बात नहीं है, संघर्ष यात्रा के दौरान पटवा जी से भेंट अवश्य कर लेना।

मामाजी के निर्देश पर मैं मधुसूदनगढ़ (राघौगढ़ विधानसभा) के डाक बंगले में पटवा जी से मिलने गया। भाजपा के वे नेता जो यह समझ रहे थे कि शायद मेरी क्लास लगेगी काफी खुश थे। पत्रकारिता का मेरा भी वह प्रारंभिक काल था। अंदर से एक डर भी और कहीं कहीं आक्रोश भी कि सही खबर लिखने पर भी स्पष्टीकरण की परम्परा ठीक तो नहीं? खैर! पटवा जी को सूचना दी गई। मैं अंदर गया। पटवा जी ने मेरी तरफ देखा और बैठने का संकेत किया। अत्यंत सहजता से उन्होंने मुझसे बातचीत की और इस बातचीत में स्वदेश की खबर को लेकर कोई प्रश्न ही नहीं किया। मैंने इस बीच स्वदेश उन्हें दिया। उन्होंने खबर पढ़ी। मुस्कुराए और मेरी कंधे पर हाथ रखा और कहा अच्छा है खूब मेहनत करो। पटवा जी यह कहकर निकल गए पर वह स्नेहिल स्पर्श आज भी याद है।

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