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साइकिल का पहिया गिरने से बदल गई कहानी

साइकिल का पहिया गिरने से बदल गई कहानी
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विशेष प्रतिनिधि

लखनऊ। चुनाव आयोग ने बुधवार को पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों की तिथियां घोषित कर राजनीतिक दलों की धडक़नें बढ़ा दी हैं। सबसे बड़े प्रदेश उत्तर प्रदेश में राजनीतिक सरगर्मियां तेज हो गई है। राज्य की सत्तारूढ़ पार्टी समाजवादी पार्टी की आंतरिक कलह उबाल पर है। सुलह की सभी कोशिशें नाकाम रहने के बाद तय माना जा रहा है कि मुख्यमंत्री अखिलेश यादव अब अलग चुनाव लड़ेंगे। क्या मौजूदा समाजवादी पार्टी ही उनकी असली पार्टी है? या फिर किसी दूसरे विकल्प पर विचार कर रहे हैं? पिता मुलायम सिंह के समक्ष रखी गई शर्तों को एक सिरे से नकार दिए जाने के बाद आखिरकार अखिलेश यादव अंतिम नतीजे पर पहुंचे कि रास्ता उन्हें ही तय करना है। बहरहाल, जिस गति से सपा व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव प्रदेश की सत्ता पर दोबारा काबिज होने के पथ पर आगे बढ़ रहे थे, चुनाव के ठीक पहले जिस तरह साइकिल का एक पहिया गिरा उससे लगता है कि साइकिल भी ठीक उसी तरह ठहर जाएगी जिस तरह महाभारत के बीच युद्ध में कर्ण के रथ का एक पहिया धंस जाने से युद्ध की सारी कहानी ही बदल गई थी। हालांकि उनके एक कद्दावर नेता और काबीना मंत्री सुलह की कोशिशों में लगे हुए हैं। उन्हें अभी भी उम्मीद है कि विभाजित हो चुकी पार्टी एक हो जाएगी।


सपा के मुखिया रहे मुलायम सिंह यादव पिछले दो माह से लगातार बार-बार प्रयोग कर थे। उनके निशाने पर कभी अखिलेश यादव होते थे तो कभी पार्टी महासचिव रामगोपाल। मुलायम सिंह यादव के इस महाप्रयोग को प्रहसन भी करार दिया गया लेकिन लगता नहीं यह प्रहसन है क्योंकि रील जिस तरह घूम रही है उससे सपा लगातार गर्त में जाती प्रतीत हो रही है। प्रदेश का मुसलिम मतदाता मायूस है। खुद पार्टी के कार्यकर्ता तय नहीं कर पा रहे कि आखिर वे किस दिशा में जाएं? हालांकि दोनों गुटों के नेता अपनी-अपनी दलीलें पेश कर रहे हैं। बहुत कुछ चुनाव आयोग के निर्णय पर निर्भर करेगा कि सपा का चुनाव चिन्ह सीज किया जाता है या फिर अलग-अलग चिन्ह दिया जाता है। राजनीति में सत्ता एक ऐसी सीमेंट होती है जिसमें जाने-अनजाने, अपने पराए सब उसी की छाया में आ जाते हैं। इस लिहाज से अखिलेश यादव अपनों के बीच घिरे नजर आ रहे हैं। संकट के इस दौर में मुलायम लगातार अपने छेाटे भाई शिवपाल यादव के साथ खड़े नजर आ रहे हैं।

इन लोगों ने मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को भी सुलह का फार्मूला सुझाया। मगर कोई नतीजा नहीं दिखा। अलबत्ता होटल ताज में प्रवासी सम्मेलन में हिस्सा लेने पहुंचे मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने परिवार में एका व चुनाव पर पूछे गए सवालों पर कहा कि मुझे नेताजी ने मुख्यमंत्री बनाया था, मैं समाजवादी विचारधारा को आगे बढ़ाता रहूंगा। उनके दार्शनिक जवाब का एक अर्थ यह भी निकलता है कि बात अभी बनी नहीं है। सूत्रों का कहना है कि दल के अंदर एका के प्रयासों के बीच देश के एक प्रभावशाली राजनीतिक ने भी दोनों धड़ों का नेतृत्व करने वालों को सुलह का फार्मूला सुझाया है जिसमें विवादित लोगों को बाहर का रास्ता दिखाने व समाजवादी पार्टी को मजबूत रखने का सुझाव दिया है। यह प्रयास रंग ला भी सकता है क्योंकि वह दोनों धड़ों में प्रभाव रखते हैं। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के एक उलेमा पार्टी की मजबूती के नाम पर दूत की भूमिका रहे हैं। हालांकि राजद प्रमुख लालू यादव का एका प्रयास विफल हो चुका है। सपा में दो धड़े होने और दोनों की अलग रणनीति होने के चलते चुनावी अखाड़े में कूदने को तैयार योद्धा खासे परेशान हैं। इनमें से कुछ ने बुधवार को मुलायम सिंह से मुलाकात कर एका का सुझाव दिया। कई नेताओं ने कहा कि अगर दो धड़े बने रहे तो परिणाम खराब आएंगे।

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Updated : 5 Jan 2017 12:00 AM GMT
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