कैसे दें महाराज का साथ! याद आता है हिरणवन कोठी काण्ड

कैसे दें महाराज का साथ! याद आता है हिरणवन कोठी काण्ड

महाराज यानि ज्योति बाबू। इनका साथ देने में अब उनके ही समर्थक दाएं-बाएं हो रहे हैं। उनके खास सिपहसालार अभी तक उस हिरणवन कोठी काण्ड को नहीं भूले हैं जो 1983 में घटित हुआ था। 34 साल बीत गए। केस अभी भी चल रहा है। तारीख पर तारीख करते लोग आज भी हैरान हैं। कुछ तो स्वर्ग सिधार गए। पर मामला आज भी जिंदा है।

प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और भाजपा के राष्टÑीय उपाध्यक्ष प्रभात झा के ज्योति बाबू की जमीन संबंधी बयान देने के बाद कांग्रेस में हलचल मच गई है। लेकिन ज्योति बाबू के समर्थक अब महाराज के अपमान की इस लड़ाई को नहीं लड़ना चाहते। उनके सामने 34 वर्ष पूर्व 1983 का हिरणवन कोठी काण्ड हिलोरें लेने लगता है। कांग्रेस के इक्के दुक्के उनके समर्थक जरूर उनके समर्थन में बयान बाजी कर रहे हैं। लेकिन जो नेता ज्योति बाबू के वफादार माने जाते हैं और लाभ भी लेते हैं और अपने-अपने क्षेत्रों में कांग्रेस के क्षत्रप हैं वे इस बयान बाजी से दूर हैं। हां इस बार सिंधिया के विरोधी माने जाने वाले अजय सिंह, डॉ. गोविन्द सिंह और भगवान सिंह यादव जैसे नेता जरूर महाराज के समर्थन में खुलकर आए। लेकिन महेन्द्र सिंह कालूखेड़ा, इंदौर के तुलसी सिलावट, सागर के गोविन्द राजपूत, श्योपुर के बृजराज सिंह चौहान, राम निवास रावत, लाखन सिंह गुर्जर, इमरती देवी, रामवरन गुर्जर, मोहन सिंह राठौर, साहब सिंह और गुना के जिलाध्यक्ष योगेन्द्र लुम्बा, अशोक नगर के जिलाध्यक्ष सरनाम सिंह यादव एवं कार्यकारी अध्यक्ष गजराम यादव, भिण्ड के जिलाध्यक्ष रमेश दुबे आज कहां हैं? वे क्यों महाराज के पक्ष में खुलकर नहीं बोलते। अशोक नगर के अध्यक्ष व कार्यकारी अध्यक्ष के बीच में कोई ताल-मेल नहीं है। यह सिंधिया का क्या साथ दे पाएंगे।

न महाराज बोले और न उनके वकील

"ग्वालियर महाराज ज्योतिरादित्य सिंधिया पर लगातार भूमि घोटाले के आरोप लगाए जा रहे हैं। लेकिन वे चुप हैं। अभी तक इन आरोपों का खुलकर जवाब न तो सिंधिया ने दिया और न ही उनके वकील ने। हां, बयानबाजी करने कुछ नहले-दहले जरूर सामने आए। वे भी सिर्फ अखबारों में छपने तक सीमित रहे। कायदा तो यही है कि जिस पर आरोप हों, वह सामने आकर अपनी बात रखें या फिर उनका वकील। ताकि सत्य सामने आए। फिर भी जो सामने आए भी उन्होंने महाराज की जमीन के सबूत पेश न कर भाजपा के राष्टÑीय उपाध्यक्ष प्रभात झा पर ही आरोप लगाए। आरोप प्रत्यारोप के चलते यह पता ही नहीं चल रहा कि सात सौ एकड़ भूमि का मामला आखिर है क्या?"

महाराज प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष और प्रदेश के मुख्यमंत्री तो बनना चाहते हैं किंतु आज ग्वालियर-चंबल संभाग में ही उनके समर्थक उनका साथ खुलकर नहीं दे रहे हैं। जाहिर है कि कांग्रेस अभी बंटी हुई है। कांग्रेस की अंदरुनी राजनीति का विश्लेषण करने के लिए कुछ कांग्रेसी नेताओं का मन टटोलने का प्रयास किया तो बोले कि कैसे दें? महाराज का साथ। हम तो उन्हें देख रहे हैं जो 1983 से लगातार तारीखें कर रहे हैं।

उक्त मामले में सत्रह कांग्रेसियों के विरूद्ध मुकदमा दर्ज हुआ था। जिसमें श्रीमंत माधवराव सिंधिया, शरद शुक्ला, एमपी सिंह, चन्द्रकांत माण्डरे एवं नरेन्द्र सिंह जाट का स्वर्गवास हो गया। शेष बचे लोग कोर्ट में तारीख बढ़वाने जाते हैं और तारीख पर हजार पांच पांच सौ रुपए खर्च ही होते हैं। घटना के समय शहर के प्रसिद्ध वकील श्री मोदी ने इस मामले में पैरवी की। वे श्री सिंधिया के वकील भी थे। लेकिन जब से वे हाईकोर्ट के जज बने हैं तब से उक्त घटना के शेष आरोपी परेशान हैं। ऐसी स्थिति देख एक सिंधिया समर्थक ने कहा कि पैसा खर्च करें, झण्डा उठाएं, स्टेशन पर अगवानी कर जय-जय कार करें। हमें मिल क्या रहा है। आर्थिक मामलों में महाराज तंगदिल हैं।

जब ज्योति बाबू की ग्वालियर में ही यह हालत है तो प्रदेश भर मेें उन्हें कैसे समर्थन मिलेगा? उन्हीं के समर्थक कहते हैं कि महाराज में यही कमी है कि वे साथ नहीं देते। हम भाजपा से लड़ तो लें पर हमारा हिमायती ही कमजोर है। माधव महाराज की बात और थी। विचार योग्य प्रश्न है कि जब महाराज स्वयं को कांग्रेस का सिपाही बताते हैं तो तारीखें झेल रहे ये किसके सिपाही हैं।
महाराज की नजर में तीन प्रकार के कांग्रेसी हैं। एक नम्बर पर गुना-शिवपुरी वाले, दूसरे नम्बर पर मालवा वाले और तीसरे नम्बर पर ग्वालियर वाले। महाराज का प्रदेश नेतृत्व का सपना जरूर अच्छा है। किंतु ये साकार कैसे होगा? स्व. अर्जुन सिंह ने जिन लोगों की मदद की और उनके सुख-दु:ख में शामिल हुए। इसलिए आज भी उनके समर्थक मौजूद हैं और उसका लाभ आज उनके पुत्र अजय सिंह राहुल को मिल रहा है। इसी तरह दिग्विजय सिंह में भी लाख कमियां रहीं। लेकिन उनके समर्थक आज भी कट्टर हैं। कांग्रेस में सबके अपने-अपने पठ्ठे हैं। जब तक स्वयं के प्रति समर्पित कार्यकर्ता नहीं अपितु कांग्रेस के प्रति समर्पित कार्यकर्ता का भाव नेताओं में नहीं जागेगा तब तक न तो उनके सपने साकार होंगे और ना ही कांग्रेस के लिए सत्ता की राह आसान होगी। इसलिए कांग्रेस के क्षत्रप ध्यान कर लें कि-


शोहरत और बुलंदी, पलभर का तमाशा है।
जिस शाख पर बैठे हो, वह टूट भी सकती है।।


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