अब कसौटी पर भाजपा की रणनीति और प्रदर्शन दोनों हैं
(त्वरित टिप्पणी : अतुल तारे)
कर्नाटक के चुनाव परिणाम को एक पंक्ति में कहना कठिन हो तो आप कह सकते हैं जनता दल (एस) चुनाव नतीजों के बाद ‘किंग मेकर’ बनने का सपना देख रहा था। जनता ने ‘मेकर’ को ही घर बिठा दिया। भारतीय जनता पार्टी के लिए यह चुनाव परिणाम भी एक सबक लेकर आए हैं कि सुशाासन और भ्रष्टाचार के मुद्दे पर प्रदेश की जनता कान उमेठ सकती है। कांग्रेस के लिए यह परिणाम अवश्य ही उत्साह जगाते हैं पर उसे भी यह परिणाम उत्तरप्रदेश के स्थानीय निकाय के चुनाव परिणाम के प्रकाश में पढऩा चाहिए, जहां वह फिर एक बार लगभग शून्य पर ही है। कर्नाटक देश का एक सपन्न राज्य है। 38 साल से यह राज्य हर बार सत्ता बदल देता है। भाजपा के लिए यह दक्षिण का दरवाजा था, जो परिणामों ने फिलहाल तो बंद कर दिया है। आंकड़ों का खेल देखिए भाजपा को वोट 35.6 प्रतिशत मिला है, जो 2018 से मात्र 0.62 प्रतिशत कम है। फिर सीटें 39 घट गईं। कांग्रेस के वोट में 5.37 प्रतिशत की शानदार बढ़ोतरी हुई है। पर लगभग इतना ही वोट प्रतिशत 5.06 जनता दल (एस) का कम हुआ है। वोट प्रतिशत का यह हस्तांतरण जहां एक ओर कांग्रेस को 56 सीटों का लाभ दे गया वहीं जनता दल (एस) की 18 सीटें घट गईं। भाजपा को मात्र 0.62 प्रतिशत वोट खो देने से 39 सीटों का नुकसान हो गया और आज सत्ता से बाहर है।
विश्लेषण करें इन आंकड़ों का तो पहला यही है कि कर्नाटक में मुस्लिम समाज ने पूरी सतर्कता से मतदान किया और अपना वोट एक साथ कांग्रेस को दिया। बजरंग दल पर प्रतिबंध एवं आरक्षण का वादा कर कांगेस अपना कार्ड खेल चुकी थी। जिसका उसे लाभ मिला। साथ ही कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे का कर्नाटक से होना, अनुसूचित जाति का होना भी कांग्रेस के पक्ष में रहा। बहुजन समाज पार्टी का कमजोर होना एक बार फिर कांग्रेस को मजबूत कर रहा है। भाजपा के रणनीतिकारों को यह समझना होगा। यही नहीं प्रदेश का लिंगायत समाज का वोट भी इस बार भाजपा से खिसक गया। भाजपा को यह समझना होगा कि प्रदेश के चुनाव प्रदेश की सरकार के प्रदर्शन पर होते हैं। और अगर ऐसे में सरकार की छवि 40 प्रतिशत कमीशन वाली हो गई तो आक्रामक प्रचार अभियान सकारात्मक परिणाम तो दूर नकारात्मक और देगा।
भाजपा जिसे अब इसी साल तीन बड़े राज्यों में 2024 से पहले चुनाव में जाना है। वहां भी यह मुद्दे महत्वपूर्ण होंगे। यद्यपि रास्थान और छत्तीसगढ़ में वह सरकार में नहीं है पर पिछला प्रदर्शन और वर्तमान संगठन कसौटी पर होगा। मध्य प्रदेश में तो सत्ता एवं संगठन दोनों ही होगा। भाजपा का प्रचार अभियान देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर ही केंद्रित होना एक चिंता का विषय है। भाजपा के रणनीतिकारों को यह समझना होगा कि कर्नाटक में 12 मंत्री चुनाव हार गए। जाहिर है, आक्रोश था। इसलिए प्रदेश स्तर पर एक सक्षम नेतृत्व पार्टी को उभारना होगा। अन्यथा राष्ट्रीय स्तर पर बेहतर प्रदर्शन के बावजूद परिणाम सुखद नहीं होगा। कांग्रेस के लिए परिणाम विशेषकर राहुल गांधी के लिए राहत देने वाले हैं। भारत जोड़ो यात्रा कर्नाटक के सात जिलों से गुजरी, जहां राहुल गांधी का स्ट्रइक रेट 66 प्रतिशत है। क्षेत्रीय दल जनता दल (एस) का सिमटना राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा के खिलाफ बनने जा रहे महागठबंधन को प्रभावित करेगा। कांग्रेस का आत्मविश्वास अब सातवें आसमान पर होगा। हालांकि उसे भी यह समझना होगा कि कर्नाटक पूरा देश नहीं है। उत्तरप्रदेश में 17 तहापौर के चुनाव हुए। कांग्रेस शून्य पर रही। नगर पालिका में मात्र चार सीटों पर। भाजपा ने पूरी 17 सीटें जीतीं और नगरीय निकाय में 196 जो सपा से 107 सीटें अधिक हैं। सपा 89 और बसपा 15 पर सिमट गई है। जाहिर है, स्वच्छ प्रशासन कानून व्यवस्था पर आप बेहतर प्रदर्शन करेंगे तो उत्तरप्रदेश जैसे कठिन प्रदेश में भाजपा पर फिर भरोसा जताएंगे और अगर प्रदर्शन में पिछड़ गए तो कर्नाटक के परिणाम सामने आएंगे। तय भाजपा नेतृत्व को करना है। जनमत उसे चाहता है, बेहतर प्रदर्शन करना ही होगा।