अमृत प्राचीन प्यास है। कोई मरना नहीं चाहता लेकिन सभी जीव मरते हैं। मृत्यु को शाश्वत सत्य कहा गया है। जीव मृत्यु बंधु हैं। मृत और अमृत परस्पर विरोधी जान पड़ते हैं पर हैं दोनो साथ-साथ। पूर्वज बता गए हैं कि शरीर नाशवान है। क्षरणशील है। क्षर है। लेकिन जीवन में क्षर के साथ अक्षर भी उपस्थित रहता है। अक्षर अविनाशी है। सदा से है। अक्षर विश्वचेतना है। यह चेतना हम सब के भीतर रहती है। मनुष्य में इकाई बनती है लेकिन अनंत बनी रहती है। अविनाशी अक्षर का बोध उपनिषद् काल का ध्येय था। गीता का संदेश है कि यह अविनाशी सदा रहता है। वैदिक ऋषि जानते थे कि "मनुष्य मृत्यु बंधु है और देवता अमृत बंधु।" वे यथार्थवादी थे। सो पूर्वज ऋषियों की कामना में दीर्घजीवन था। वे संसार को आनंदमगन देखना चाहते थे। उनका जीवन प्राकृतिक था तो भी उन्हें पता था कि एक दिन मृत्यु को आना ही है। उन्होंने 100 शरद् जीवन की अभिलाषा की। 'जीवेम शरदं शतं' की स्तुति में दीर्घजीवन की ही कामना है। लेकिन अमृत नाम का अज्ञात द्रव्य सबकी जिज्ञासा था। क्या अमृत वास्तव में कोई द्रव्य था या विचार था। क्या कल्पना ही था? वह प्रकृति में सहज सुलभ कोई पदार्थ नहीं था। क्या देवों को इसका रहस्य ज्ञात था? ऐसे अनेक प्रश्न भारतीय मनीषा की चुनौती हैं। लेकिन मृत्यु के समय शरीर छोड़ देने वाला कोई अविनाशी अमृत तत्व सबकी जिज्ञासा था।
'अमृत' के रासायनिक संगठन की जानकारी न पहले थी और न आज तक ही ज्ञात है लेकिन हमारे पूर्वजों की रुचि अमृत में थी। आश्चर्य है कि जिसे हम नहीं जानते उसे ही खोज रहे थे। विज्ञान और दर्शन के विकास जिज्ञासा से ही हुए हैं। सागर मंथन की कथा सुंदर है। पौराणिक कथाओं के अनुसार 'सागर मंथन' से विष और अमृत दोनो ही निकले थे। यहां सागर का एक अर्थ संसार भी हो सकता है। संसार सागर है भी। संसार में अमृत और विष दोनो हैं। लोकमंगल के देवाधिदेव महादेव विष पी गए। वे संसार का कल्याण चाहते थे। बचा अमृत। अमृत कुम्भ पर युद्ध हो गया। एक विचार है कि जयंत अमृत कुम्भ लेकर भाग निकले। दूसरा विचार है कि गरुण अमृत कुम्भ लेकर उड़ चले। जो भी हो, भागम भाग में अमृत कुम्भ छलका और चार स्थानों पर अमृत गिरा। स्कंध पुराण के अनुसार "हरिद्वारे, प्रयागे, च धारा गोदावरी तीरे - हरिद्वार, प्रयाग, धारानगरी, उज्जैन व नासिक में गोदावरी तीरे - हरिद्वार, प्रयाग, धारानगरी, उज्जैन व नासिक में गोदावरी तट पर यह अमृत गिरा। कथा प्राचीन है, पौराणिक है। संभव है कि इस घटना को लोक ने देखा भी हो। तब सब भागे होंगे - चारों स्थानों की ओर। यह बात दीगर है कि अमृत मिला कि नहीं मिला लेकिन अमृत की प्यास हजारों वर्ष से बढ़ती जा रही है।
मनुष्य मरणशील है लेकिन आधुनिक काल में अमृत की प्यास और भी बढ़ी है। वैज्ञानिक शरीर की मृतधर्मा कोशिकाओं को अमृत बनाने के लिए जुटे हुए हैं। भारतीय संस्कृति और दर्शन आत्मा को अजर अमर अमृत मानते हैं। प्रयाग में इन दिनों सारी दुनिया के अमृत अभीप्सु संगमन कर रहे हैं। गंगा, यमुना और सरस्वती यहां हजारों वर्ष पहले से ही मिल रही हैं। इस समय दिक्काल भी प्रयाग संगम में है। शीत दुलार दे रहा है। सूर्य देव मुस्कराते हुए ऊष्ण कर रहे हैं। प्रीति अमृत है। अमृत की प्यास अमृत है। काल अमृत प्यास का क्या बिगाड़ लेगा। सूर्य उगते हैं, अस्त होते हैं। मास, वर्ष युग बीतते हैं। मरूद्गण बहते रहते हैं। वे हैं। जीवन को गति देते हैं। ऋतुए आती हैं। प्रीति अजर अमर रहती है। अमृत अभिलाषा चिरंतन है। भारतवासियों की इस अमृत अभिलाषा में धन, संपन्नता तरुणाई आदि परिवर्तनशील समृद्धि तत्वों की भी प्यास है। कुम्भ में द्वैतवादी है तो वेदांती भी आए हैं। तमाम तरह की उपासनाओं वाले साधु संतो का समागम है। माताएं- बहने अपने पुत्रों- अभिभावकों के साथ आ रही है। सबकी अभिलाषा स्थायी आनंद है। अमृत की प्यास। सुख, स्वस्ति, आनंद का अमृत तत्व। प्रयाग में यह होना ही चाहिए। प्रयाग तीर्थ राज जो हैं।
सारे मार्ग प्रयाग की ओर मुड़ गए हैं। जो पहुंच गए हैं, वे मुद, मोद, प्रमोद में हैं, जो रास्ते में हैं उनकी मस्ती भी कम नहीं। जो किसी परिस्थितिवश नहीं जा पा रहे हैं, उनका मन भी प्रयाग में है। मैं अनुभव कर रहा हूं कि सारे वैदिक देव इन्द्र- वरूण- अग्नि, सविता, विष्णु और गरुण भी प्रयाग के मेले में हैं। ऋषि पूर्वज भी सूक्ष्म शरीर से यहां भ्रमण कर रहे हैं। तुसलीदास तो निश्चित ही इस समागम में होंगे। उनके लिए प्रयाग 'अगम' रहा है। 33 कोटि देव संप्रति यहीं हैं। अमृत कुम्भ की अनुभूति कोई छोटी बात नहीं। सोचता हूं कि ऋग्वेद के मंत्र-ऋचाएं भी यहां टहल रहे होंगे। ऋग्वेद में ऋचा मंत्रों के स्वभाव का वर्णन है - ऋचाएं परम आकाश में रहती हैं और जागृत बोध वाले लोगों के पास आने की कामना करती हैं। कुम्भ समागम भारत का प्रतिष्ठित जागरण है। अमृत अभिलाषा का यह संगमन दुनिया का सबसे बड़ा मेला है। मेले भारतीय पूर्वजों के ही आयोजन हैं, बाजार नहीं। मिले तो मेला, खरीदें बेंचे तो बाजार। अमृत के प्यासें मिलें तो कुम्भ पर्व। कुम्भ मेला प्राचीन है लेकिन इस बार के मेले की बात ही दूसरी है। पहले की सरकारें मेले की व्यवस्था करती थीं। इस दफा उत्तर प्रदेश की सरकार निमंत्रणदाता है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ स्वागतकर्ता की भूमिका में हैं। वे सभी व्यवस्थाओं का जायजा ले रहे हैं।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की तरफ से दुनिया के 200 देशों को भारत सरकार ने कुम्भ का न्योता भेजा गया है। प्रधानमंत्री द्वारा देश के 600,000 गांवों को भी निमंत्रण दिया गया है। सारी दुनिया में कुम्भ की धूम है। संगम पर जल आचमन और स्नान अमृत की यात्रा है। जल हम सबका आदि देवता है। चार्ल्स डारविन ने सृष्टि का विकास जल से बताया था। उसके भी बहुत पहले (ईसा पूर्व 600 वर्ष) प्राचीन यूनानी दार्शनिक थेल्स ने जल को आदि तत्व बताया था। ऋग्वेद में भी जल को सभी जीवों की जननी बताया गया है। मनुष्य शरीर जल से भरा कुम्भ है। यह संसार सागर का भाग है। मनुष्य कुम्भ सागर में तैर रहा है। कुम्भ के भीतर जल और बाहर भी जल। कबीर ने गाया है कि कुम्भ फूटता है, इसका जल संसार के जल से मिल जाता है - "जल में कुम्भ, कुम्भ में जल है भीतर बाहर पानी/ फूटा कुम्भ जल जलहि समाना यह तत कथ्यों ज्ञानी।" सृष्टि का आदि भूत जल है। मनुष्य शरीर मिट्टी है। जल भरे कुम्भ जैसी है मानव काया। कुम्भ ज्योर्तिविज्ञान की 12 राशियों में एक राशि भी है। यह भारत के लोकमंगल का सांस्कृतिक प्रतीक है। प्रत्येक मंगल अवसर पर भारत में कलश की स्थापना पूजा होती है। कुम्भ संगमन सबको खींच रहा है। सम्प्रति प्रयाग में लघु भारत समवेत हो रहा है।
जगत गतिशील है। इस सृष्टि का प्रत्येक अंश गतिशील है। गति ही प्रगति बनती है। अपनी सम्पूर्णता में यही सद्गति है। ग्रह गतिशील है। पृथ्वी गतिशील है। हम पृथ्वी पुत्र गतिशील हैं। बैठे होते हैं तब भी हमारा रक्त गतिशील है। हमारे भीतर- बाहर वायु गतिशील है। मन गतिशील है ही। सोचता हूं कि ब्रह्माण्ड के प्रत्येक अणु परमाणु की गतिशीलता का कोई ईंधन पेट्रोल भी होना चाहिए। अपने संरक्षक सूर्य करोड़ों वर्ष से तप रहे हैं, इनका ईंधन क्या अनंत हैं? मेरे जैसे विद्यार्थी के लिए 'अनंत' बड़ी चुनौती है। दुख अंतहीन है। सुख अंतहीन है। आकाश अंतहीन है ही। जल राशि अनंत है। अग्निताप अनंत है। सिर्फ मनुष्य जीवन अनंत नहीं है। इसका अंत अवश्यमभावी है। शेष सब अनंत। अंतहीन, विराट, अज्ञेय लेकिन मनुष्य सहित सभी जीवों का अंत होता है। संभवतः इसी कमी को पूरा करने के लिए हमारी अभिलाषाएं कामनाएं अनंत हैं। मिर्जा गालिब ने सही फरमाया है - हजारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर ख्वाहिश में दम निकले/बहुत निकले मेरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले।" भारतीय संस्कृति दर्शन में इसीलिए 'अमृत' की अभिलाषा है। भारत और विश्व को अमृत मधुमयता से भरने वाले लोग प्रयाग में संगमन कर रहे हैं। उन्हें, उनके परिजन व प्रयाग को प्रणाम।