समर्थन वापसी या सम्पर्क फॉर समर्थन !

प्रसंगवश - अतुल तारे

Update: 2018-06-20 11:21 GMT

शायद इसी का नाम नरेंद्र मोदी है। वह हरदम आपको चौंकाते हैं। इस बात की परवाह किये बगैर कि उनके फैसलों की आलोचना होगी या प्रशंसा। जम्मू कश्मीर भारतीय जनता पार्टी के लिए जनसंघ के प्रारंभिक काल से एक नाजुक एवं संवेदनशील विषय है। इस बात को जानते हुए प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने आतंक की पैरोकार मानी जाने वाली पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी को अपने समर्थन की बैसाखी दी और न केवल देश भर में अपितु अपने कार्यकर्ताओं की,विस्तारित विचार परिवार की खुली नाराजगी ली। वैचारिक स्तर पर घोर विरोधी ध्रुव पर खड़ी इस राजनीतिक लिव इन को देश ने बर्दाश्त किया। इस उम्मीद में शायद कुछ ठीक हो। तीन साल में घाटी में कितनी शांति आई, आतंकी कितने टूटे यह देश के सामने है। पर यह सच है कि सीमा पर पहली बार सेना का मनोबल ऊंचा है। यह देश ने देखा। कुछ हद तक ही सही दशकों से उपेक्षित जम्मू एवं लद्दाख वासियों की चिंताओं को उनके दुख दर्द को समझा गया। पर यह काफी नही था। आतंकी फिर भी अनियंत्रित हो ही रहे थे।


रमजान की शांति भी उन्हें रास नहीं आ रही थी।भाजपा के सामने ऐसे में दो ही विकल्प थे कि या तो वह महबूबा के आगे नतमस्तक रहती या अलग रास्ता अपनाती। भाजपा ने यह जानते हुए कि इस फैसले की भी आलोचना होगी कि समर्थन दिया ही क्यों था और आज जो घाटी के हालात हैं उसके लिए भी वही जवाबदेह हैं। उसने समर्थन वापसी का फैसला लिया। यह एक ऐसा फैसला है जिससे मूलत: भाजपा का कार्यकर्ता प्रसन्न हैं क्योंकि वह कभी इस गठबंधन में सहज रहा ही नही। केंद्र की या भाजपा नेतृत्व की इस लिव इन के पीछे क्या मजबूरियां थी और देश ने इससे क्या पाया यह निश्चित रूप से देश जानना चाहेगा पर यह समर्थन वापसी कर भाजपा ने देश में अपने लिए सम्पर्क फॉर समर्थन अवश्य किया है।

उम्मीद है केंद्र के आक्रामक तेवर अब घाटी में ,पड़ौस में देखने को मिलेंगे। ऐसा होता है, जिसकी उम्मीद है तो इस नाजायज राजनीतिक रिश्ते के पापों से भी भाजपा अपने को दूर करने में सफल होगी। यह श्री मोदी का अपने तरीके का देश के लिए संपर्क फॉर समर्थन है। प्रतिक्रिया सुखद भी है, परिणाम की प्रतीक्षा है।

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