उत्तर प्रदेश में रामपुर एवं आजमगढ़ संसदीय क्षेत्र के चुनावी नतीजे भारतीय जनता पार्टी के पक्ष में जाना क्या सिर्फ भाजपा के सांसदों की संख्या में मात्र दो की गिनती और बढऩा ही है क्या? क्या यह मात्र संख्या का खेल ही माना जाए कि महाराष्ट्र की शिवसेना के विधायक अब्दुल सत्तर यह दम ठोक कर गुवाहाटी में कह रहे हैं कि वह हिन्दुत्व की रक्षा के लिए ठाकरे के खिलाफ हैं। क्या यह सिर्फ एक संसदीय सीट पर 'आप' की पंजाब में हार है। जहां चंद दिनों पहले 'आप' ने इकतरफा जीत हासिल की और अब मुख्यमंत्री भगवंत मान संगरूर में ही अपनी इज्जत नहीं बचा पाए। ये नतीजे या यह घटनाक्रम मात्र चुनावी हार जीत नहीं है, न ही यह सिर्फ संख्या का खेल है। कौन नहीं जानता उत्तरप्रदेश के रामपुर एवं आजमगढ़ संसदीय क्षेत्र को?
रामपुर, गंगा को 'चुडै़ल', और भारत माता को 'डायन' कहने वाले, एक महिला के अन्र्त वस्त्र का रंग बताने वाले सपा के 'माननीय' आजम खान की घोषित, अघोषित रियासत रही है। 2022 के विधानसभा चुनाव में योगी लहर यहां नहीं चल पाई थी। यही हाल आजमगढ़ का है। यह सीट मुलायम कुनबे की घर की सीट मानी जाती है। 2019 में अखिलेश यादव यहीं से सांसद चुने गए थे। इसके पहले मुलायम सिंह। इस बार उपचुनाव में मुलायम सिंह के भतीजे धर्मेन्द्र यादव मैदान में थे। भाजपा ने फिर एक बार 2019 में अपने हारे प्रत्याशी दिनेश लाल यादव 'निरहुआ' पर दांव चला और सफल रहा। रामपुर में भाजपा ने धनश्याम लोधी को प्रत्याशी बनाया, जिन्होंने आजम खान के खासमखास आसिम राजा को पटकनी दे दी। या यह मात्र दो सीट पर भाजपा की विजय है? अंक गणित तो यही कहता है पर राजनीति सिर्फ अंक गणित भर नहीं है। यह बदलते भारत का स्वर है। यह स्वर मुझे हाल ही में लखनऊ में सुनाई दिया। मुख्यमंत्री निवास 06 कालीदास मार्ग लखनऊ के प्रतीक्षा कक्ष में मेरे साथ सभल के एक महंत जी थे। संभल प्रदेश का वह क्षेत्र है, जहां हिंदू अल्पसंख्यक हैं और लगभग 20 प्रतिशत है। बातचीत का क्रम शुरू हुआ तो मैने प्रश्न किया कि आपको परेशानियां आती होंगी? एक डर रहता होगा? उन्होंने कहा ऐसा पहले था।
आज शांतिपूर्ण मुस्लिम तो शांति से हैं ही शेष उत्पाती तत्व अब बिलों में हैं और हम 20 प्रतिशत 80 प्रतिशत के आत्म विश्वास के साथ रह रहे हैं, योगी जी के कारण। एक और घटना, लखनऊ का मुय बाजार हजरतगंज रात की रोशनी में नहा रहा था। लाखों की चमचमाती कारें, इधर से उधर दौड़ रहीं थीं। शोरूम खचाखच भरे थे। एक रिशे वाला अपना पसीना पोंछ रहा था। आंखों-आंखों में संवाद हुआ, और वह मुस्कराया। पूछा कैसे हो? कहा-मजे में। मुख्यमंत्री निवास में योगी आदित्यनाथ से मिल कर हम निकले ही थे, प्रश्न आरोप की शल में इरादतन किया। यह योगी सरकार आप लोगों के लिए क्यों कुछ नहीं कर पा रही ? वह तमतमा गया। बोला बाबूजी, लखनऊ पहली बार आए हैं क्या? सम्मान से रोटी मिल रही है। गुंडई खत्म है, यह हंै योगी, आप कह रहे हैं कुछ नहीं कर रही योगी सरकार। मैं मुस्कुराया पीठ पर हाथ रखा, नाम पूछा तो दीपक बताया।
उत्तरप्रदेश में कहा जाता था 'एम वाय' समीकरण हारजीत तय करता है। 'एम' याने मुस्लिम 'वाय' याने यादव। समीकरण का नाम आज भी यही है, मायने बदल गए हैं, एम याने मोदी, वाय याने 'योगी'। यह बदलाव अकेले उत्तरप्रदेश में नहीं है। महाराष्ट्र की राजनीति का घटनाक्रम सिर्फ संख्या का खेल भर नहीं है। बेशक पर्दे के पीछे भाजपा का दबाव होगा। पर शिवसेना में मचा विद्रोह, विद्रोह न होकर नई शिवसेना का जन्म है। यह मूल शिवसेना का प्रगटीकरण है और उद्धव ठाकरे के विश्वासघात और हिन्दुत्व से विमुख होने का उत्तर भी है। देश की राजनीति में यह पहली बार हो रहा है कि हिन्दुत्व के नाम पर उसकी रक्षा के लिए एक अवसरवादी गठबंधन पर खतरा खड़ा हुआ है।
1977 की जनता सरकार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की दोहरी सदस्यता का आधार बनाकर सरकार गिराई गई थी। 2022 में हम हिन्दुत्व के पक्षधर हैं, सरकार जाए तो जाए। आज यह तस्वीर है। देश बदल रहा है। और आखिर में चर्चा पंजाब की । 'आपÓ को देश का भविष्य बताने वाले पंजाब की संगरूर सीट के नतीजे के संदेश को ध्यान से पढ़ लें। पंजाब, दिल्ली नहीं है। दिल्ली में अपनी खाल बचाकर राज करने वाली आप पहली ही परीक्षा में विफल हो गई। मुयमंत्री भगवंत मान अपने घर में ही हार गए। जाहिर है यह चुनावी नतीजे यह घटनाक्रम मात्र नतीजे नहीं, न ही मात्र संख्या का खेल। देश जाग रहा है और इसलिए उसने 'आजमगढ' को 'आर्यमगढ़' बनाने के योगी की घोषणा पर न केवल भरोसा किया, अपनी मोहर भी लगाई। अत: आप 'आजमगढ़' नहीं 'आर्यमगढ़' कहिए। तैयार हैं न......?