इसे लोकतंत्र की विडंबना ही कहेंगे कि राजनीतिक दलों में ऐसे लोगों की भीड़ बढ़ रही है, जो राजनीति को धन बटोरने का सरल माध्यम मानते हैं। इसी दृष्टि से पद, प्रतिष्ठा और अधिकार प्राप्त करना चाहते हैं। जब घोटाला की गंदगी में राजनेता लथपथ दिखाई देते हैं तो आम लोगों में यह धारणा बन गई है कि राजनीति में लोग धन बटोरने ही जाते हैं। आजादी के संघर्ष का जो नेतृत्व कर रहे थे, उनमें विचारों की भिन्नता होने के बाद भी सबका एक ही उद्देश्य था भारत माता को अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त करना। 1857 के संघर्ष से लेकर लोकमान्य तिलक, वीर सावरकर, सुभाषचंद्र बोस, गांधीजी, डॉ. हेडगेवार आदि ने देश के लिए अपना जीवन खपा दिया। इन देशभक्तों ने देश के लिए त्याग बलिदान की पराकाष्ठा कर दी। आजादी के संघर्ष से निकले नेताओं के हाथों में शासन की बागडोर आई। पं. नेहरू के नेतृत्व में पहला मंत्रिमंडल बना। चाहे पं. नेहरू की कश्मीर नीति, सुरक्षा नीति की कमजोरी के कारण ऐसी समस्याएं पैदा हुई, जिनके परिणाम देश आज भी भुगत रहा है। फिर भी सबकी दृष्टि में देश सर्वोपरि था। विचारों के प्रति निष्ठा थी। पहले मंत्रिमंडल में डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी थे, जो पंडित नेहरू की नीतियों के प्रखर विरोधी थे। वैचारिक भिन्नता होने के बाद भी पक्ष-विपक्ष के नेताओं की राजनीति देश के लिए थी। दुर्भाग्य से राष्ट्र केन्द्रित राजनीति का दौर अधिक समय तक नहीं रहा। घोटाले पर घोटाले होने लगे। जीप खरीदी में घोटाले से लेकर बोफोर्स, स्पेक्ट्रम, टेलिफोन, कोयला खदान आदि ऐसे घोटाले हुए जिनमें राजनेता लिप्त दिखाई दिए। सत्ता के अधिकार का दुरुपयोग अपनी स्वार्थपूर्ति के लिए किया जाने लगा। कांग्रेस करीब पचास वर्ष सत्ता में रही। कमोवेश हर सरकार में भ्रष्टाचार की गंदगी से कई के चेहरों पर कीचड़ दिखाई दिया। मनमोहन सरकार के दूसरे कार्यकाल के अंतिम दो वर्ष 2012-13 तो घोटालों का वर्ष रहा। हालत रही कि बेनामी संपत्ति, कालेधन के खिलाफ कानून बनाने के प्रस्ताव थे, लेकिन मूर्तरूप नहीं ले सके। इस कारण बेनामी संपत्ति के महल खड़े हो गए, कालाधन बटोरने के रास्ते खुले गए। राजनीति इन अपराधों के लिए रक्षा कवच बन गई। जो राजनीति सेवा का माध्यम थी, वह धंधेबाजी का माध्यम बन गई। हालत यह हुई कि बिहार के मुख्यमंत्री रहे लालू यादव चारा घोटाले में दोषी पाए जाने पर जेल में बंद हैं।
उत्तर प्रदेश में दलितों के वोट बैंक और गरीबों के धन से अपना महल खड़ा करने वाली मायावती के भाई और बसपा के उपाध्यक्ष आनंद कुमार और उनकी पत्नी की 400 करोड़ बेनामी आयकर विभाग ने जब्त कर ली है। आयकर विभाग के रडार पर आनंद कुमार की 1350 करोड़ की संपत्ति है। राजनीति कितनी जल्दी कंगाल से अरबपति बना देती है, इसका उदाहरण आनंद कुमार हैं। आनंद कुमार नोएडा प्राधिकरण में केवल 200 रुपये की ग्रेड पर जूनियर असिस्टेंट के पद पर नियुक्त हुआ था। कुल 700 रुपये प्रति माह की नौकरी वाला आनंद कुमार 23 साल में करीब 1400 करोड़ का मालिक बन गया। अब मायावती भाई के बचाव में कह रही हैं कि राजनीतिक द्वेष से दलित को परेशान किया जा रहा है। सोनिया-राहुल पर भी नेशनल हेराल्ड अखबार के नाम पर करोड़ों की बेनामी संपत्ति अर्जित करने का आरोप है। प्रियंका के पति और सोनिया के दामाद रॉबर्ट वाड्रा के खिलाफ हरियाणा से लेकर राजस्थान तक करोड़ों, अरबों की संपत्ति पर काबिज होने के आरोप है। गिरफ्तारी से बचने के लिए वाड्रा रास्ते की तलाश कर रहे हैं। सोनिया-राहुल भी नेशनल हेराल्ड मामले में जमानत पर हैं। यूपी के ताकतवर मंत्री रहे सपा सांसद आजम खान के खिलाफ रामपुर के 26 किसानों ने जिलाधिकारी को शपथ पत्र देकर कहा कि 15 साल पहले आजम ने जबरन उनकी करोड़ों की जमीन पर कब्जा कर अपने निजी जौहर विश्वविद्यालय में उपयोग कर लिया। मामले की जांच कराकर यूपी की योगी आदित्यनाथ सरकार ने जब आजम को भू-माफिया घोषित किया तो आजम ने संसद में रोना रोते हुए कहा कि हमारे पूर्वजों ने गलती कि जो हम इस देश में रुके रहे। उनके कहने का आशय था कि अपने देश में अल्पसंख्यकों को परेशान किया जा रहा है। तो क्या भू-माफिया और भ्रष्टाचारियों को लूट की खुली छूट दे दी जानी चाहिए?
वैसे तो भू-माफिया की स्पष्ट परिभाषा नहीं है, लेकिन जिन्होंने लोगों की जमीन पर जबरन कब्जा किया है, उसे भू-माफिया की श्रेणी में ही रखा जाता है। राजनीति के प्रभाव से जमीन हड़पने वालों के खिलाफ कार्रवाई की गई तो मोदी सरकार डर पैदा कर रही है, का हौव्वा पैदा किया गया। सच्चाई यह है कि जिन राजनेताओं ने बेनामी संपत्ति हड़पी है वे डरे हुए हैं। ऐसे मामले खुल गए तो उनकी राजनीति चौपट होने का डर है। 2019 की पराजय के बाद विपक्ष इसलिए खड़ा नहीं हो पा रहा है कि उसमें नैतिक बल नहीं है। कालेधन की गंदगी राजनीति से कैसे-कैसे साफ की जाए, यह जटिल समस्या है। उधर, देश में असहिष्णुता गिरोह फिर से सक्रिय हो गया है।
1988 से प्रस्तावित बेनामी संपत्ति कानून को 28 वर्ष बाद मोदी सरकार ने लागू कर कार्यवाही प्रारंभ कर दी है। यह कानून बेनामी संपत्ति को जब्त करने का अधिकार देता है। भ्रष्टाचार की गंदगी को साफ करने का अभियान मोदी सरकार ने प्रारंभ कर दिया है। अपने पहले कार्यकाल में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा था कि 'मैं न खाऊंगा और न खाने दूंगा।' पहली बार लोगों को यह आभास हुआ कि मोदी सरकार के पहले दौर में किसी पर भ्रष्टाचार का दाग नहीं लगा है। पहली बार ऐसी सरकार केन्द्र में है, जो न भ्रष्टाचार को बर्दाश्त करती है और न देशद्रोहियों को।
-लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।