प्रसिद्ध इस्लामिक शिक्षण संस्थान दारुल उलूम देवबंद द्वारा दिए गए हालिया फरमान को पढ़कर कई प्रश्न उठ खड़े हुए हैं। क्या देशभक्ति से ऊपर धर्म या पंथ भक्ति होनी चाहिए ? यह कैसा विरोधाभास है कि एक तरफ तो देशभक्ति के कसीदे गढ़ते हुए इस्लामिक स्कॉलर्स यह समझाने का प्रयास करते हैं कि हमारे यहां भी वतन को माता के समान मानकर उसे सम्मान दिया जाता है और कई जगह 'मादरे वतन' का जिक्र हमारी पान्थिक पुस्तकों में हुआ है तो दूसरी ओर प्रत्यक्ष नकारात्मक नजारा होता है।
देश में जब कहीं भी सर्वधर्म-सर्वपंथ सद्भाव आधारित राष्ट्रीय सम्मेलन में भाग लेने इस्लामिक विद्वान पहुँचते हैं तो प्राय: यही सुनाई देता है, जैसा कि जमायत-ए-उलेमा-ए हिन्द के अध्यक्ष अरशद मदनी अक्सर कहते हैं कि हिंदुस्तान जिंदाबाद, मादरे वतन और भारत माता की जय में कोई अंतर नहीं है, लोगों को इसपर विवाद नहीं करना चाहिए। भारत माता की जय हिंदी शब्द है, वहीं मादरे वतन फारसी का शब्द है, उसका भी अर्थ भारत माता की जय ही है। तब इसके उलट जब ये इस्लामिक विद्वान अपने लोगों के बीच होते हैं तो ज्यादातर ' भारतमाता की जय और वन्देमातरम्' का विरोध करते दिखाई देते हैं।
ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन के नेता असदुद्दीन ओवैसी, उनके भाई और उन जैसे तमाम इस्लामिक नेता और धर्मगुरु कई बार इस बात को प्रमुखता से खुलकर आक्रामक तरीके से कहते सुनाई देते हैं कि कभी भारत माता की जय नहीं बोलेंगे। अगर कोई उनकी गर्दन पर छूरी रखकर भी भारत माता की जय बुलवाएगा तो भी वो भारत माता की जय नहीं बोलेंगे। इसी तरह से वंदेमातरम के साथ दारुल उलूम 'भारत माता की जय' के नारे को भी इस्लाम के खिलाफ बता रहा है। यहां से हर साल जैसा कि इस बार भी 26 जनवरी गणतंत्र दिवस के पूर्व संस्था के मुफ्ती-ए-कराम द्वारा फतवा जारी करते हुए कहा गया कि मुसलमान अल्लाह के सिवा किसी की भी इबादत नहीं कर सकते हैं, इसलिए यह 'भारत माता की जय' नहीं बोलेंगे।
इनकी हां में हां मिलाते हुए मदरसा जामिया हुसैनिया के मुफ्ती तारिक कासमी जैसे तमाम इस्लामिक विद्वान नजर आते हैं और कहते हैं कि इस्लाम में अल्लाह के सिवाए किसी और की इबादत नहीं की जा सकती है। यही वजह है कि मुसलमान भारत माता की जय या वंदे मातरम् नहीं बोल सकते। वे चाहे मदरसे के पढ़ने वाले छात्र हों या कोई भी अन्य मुस्लिम। मुफ्ती-ए-आजम मौलाना मुफ्ती हबीबुर्रहमान, मुफ्ती महमूदुल हसन बुलंदशहरी और मुफ्ती वकार समेत अन्य मुफ्ती-ए-कराम भी यही कहते नजर आ रहे हैं कि 'वंदेमातरम' और 'भारत माता की जय' के मुस्लिम बच्चों को नारे लगाने के लिए कहा जा रहा है, तो मुसलमानों को इस नारे से स्वयं को अलग कर लेना चाहिए।
इसके लिए वह जो आज तर्क दे रहे हैं, वह भी वस्तुत: समझ के परे हैं। मुफ्ती-ए-कराम का कहना है कि भारत हमारा वतन है और हमारे पूर्वज यहीं पैदा हुए हैं। मगर वतन को अपना देवी-देवता नहीं मान सकते। यानी कि मुल्क की पूजा नहीं कर सकते। उन्होंने फतवे में साफ कहा कि मुसलमान एक खुदा में यकीन रखने वाला और खुदा के सिवा किसी दूसरे की इबादत नहीं कर सकता है। जबकि इस नारे में हिन्दुस्तान को देवी के समान समझा गया है। भारत माता की जय कहने का मतलब वतन की पूजा करना है। इसलिए किसी मुसलमान के लिए ऐसा नारा लगाना जायज नहीं। अब, ऐसे में भारत में समूचे इस्लाम का सत्य क्या है, यहां समझना मुश्किल है। क्या 'मादरेवतन' कहनेवाले सही हैं या बहुसंख्यक मुस्लिमों का प्रतिनिधित्व कर रहीं देवबंद जैसी संस्थाएं, मुफ्ती-ए-कराम, मुफ्ती तारिक कासमी, मुफ्ती-ए-आजम मौलाना मुफ्ती हबीबुर्रहमान, मुफ्ती महमूदुल हसन बुलंदशहरी और मुफ्ती वकार और ओवैसी जैसे इस्लामिक नेता या धर्मगुरु ? आज का बड़ा प्रश्न यह है कि भरोसा किया जाए तो किस पर ?
वस्तुत: इस पर किसी का कोई विवाद नहीं और न ही कोई दो मत है कि अपने पंथ, धर्म और संप्रदाय के लिए सभी को यथा-योग्य कार्य करना चाहिए। यदि दारुल उलूम देवबंद इस्लामी तालीम के लिए 1866 से देश-दुनिया में परचम बुलंद कर रहा है तो उसका स्वागत है। लेकिन उसके लिए या किसी अन्य के लिए देश और उसके स्वरूप की आराधना से ऊपर कुछ और नहीं हो सकता । कोई भी पंथ क्यों न हो, आखिर वह बढ़ता तो देश के माध्यम से ही आगे है। यदि देश में अनुकूल प्रतिस्थिति न हों, लोग सहयोग न करें तो क्या कोई धर्म परस्पर आगे बढ़ सकता है ? उत्तर निश्चित ही नहीं में है। आज जो मुसलमान या धर्मगुरु भारतमाता की जय एवं वन्देमातरम् का विरोध यह कहकर कर रहे हैं कि उनके लिए इससे ऊपर उनका पंथ-धर्म है तो उन्हें यह समझ लेना चाहिए कि भारत कोई जमीन का टुकड़ा नहीं है, यह मेरी माता की माता एवं पीछे पीढि़यों में कई माताओं की माता है, जिसके कारण ही आज हमारा अस्तित्व है। इसलिए कह सकते हैं कि जननी समान धरती, जिस पर जन्म लिया है, निज अन्न वायु जल से जिसने बड़ा किया है। पावन पुनीत माँ का मन्दिर सहज सुहाना, जागृत सुतों का बल ही माँ का सदा सहारा, जीवन वो कैसा जीवन इस पर अगर न वारा । अत: वह कोई भी पांथिक क्यों न हो सभी के लिए यही सत्य है कि भारत हमारी माँ है। भारत माता की जय का नारा सिर्फ एक नारा नहीं, यह देश के प्रति अपनी भक्ति और प्रतिबद्धता प्रकट करने का एक माध्यम है, जिसे लेकर किसी में कोई विवाद नहीं होना चाहिए।