चीन और भारत का सीमा विवाद कोई नया नहीं है। 1962 में चीन-भारत के बीच हुए युद्ध में जिस तरह से चीन ने भारतीय जमीन पर कब्जा जमाया था, उसे लगता है कि वह इससे आगे होकर 21वीं सदी के उभरते और वैश्विक हुए भारत की जमीन भी अपने कब्जे में कर लेगा । वस्तुत: यही वजह है कि एक तरफ रुस में भारत और चीन के विदेश मंत्रियों की मुलाकात हुई और वे सीमा पर शांतिवार्ता की चर्चा कर रहे थे, ठीक उसी समय में चीन का सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स धमकी दे रहा था कि अगर युद्ध हुआ तो भारत हार जाएगा।
विरोधाभास तो देखिए, रूस के मॉस्को में चल रही विदेश मंत्रियों की बैठक में चीन सीमा पर तनाव घटाने को लेकर सहमत दिखाई देता है, चीन के विदेश मंत्री वांग यी यह कहते हैं कि दो पड़ोसी देश होने के नाते सीमा पर चीन और भारत में कुछ मुद्दों पर असहमति है लेकिन उन असहमतियों को सही परिपेक्ष्य में देखा जाना चाहिए । फिर वे भारत-चीन के बीच पांच सूत्रीय बिंदुओं पर बनी सहमति का जिक्र करते हैं, जिसमें कहा गया कि आगे आपसी मतभेदों को विवाद नहीं बनने दिया जाएगा, दोनों देशों की सेनाएं विवाद वाले क्षेत्रों से पीछे हटेंगी, मौजूदा संधियों और प्रोटोकॉल्स को दोनों देश मानेंगे और ऐसा कोई कदम नहीं उठाएंगे जिससे तनाव बढ़े, लेकिन दूसरी तरफ चीन की सरकार अपने घर में लोगों के बीच तथा अपने मुख्य पत्र ग्लोबल टाइम्स से वैश्विक संदेश दे रही है कि भारत सावधान रहे, चीन उसे छोड़ेगा नहीं। दुनिया की कोई ताकत उसे चीन से नहीं बचा पाएगी । वस्तुत: चीन के सरकारी मीडिया के इस बयान से एक बार फिर शांति का नाटक कर रहे चीन की मंशा ही सभी के सामने आई है ।
इतना ही नहीं, ग्लोबल टाइम्स के एडिटर-इन-चीफ हू शिजिन लिखता है, "1962 के युद्ध से पहले भारत चीन के क्षेत्र में अतिक्रमण करने और पीएलए को चुनौती देने से नहीं डरता था और अंतत: भारत को इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ी, मौजूदा हालात 1962 की लड़ाई के बेहद करीब हैं ।...पीएलए पहले गोली नहीं चलाती, लेकिन अगर भारतीय सेना पीएलए पर पहली गोली चलाती है, तो इसका परिणाम मौके पर भारतीय सेना का सफाया होगा । यदि भारतीय सैनिकों ने संघर्ष को बढ़ाने की हिम्मत की, तो और अधिक भारतीय सैनिकों का सफाया हो जाएगा। भारतीय सेना ने हाल ही में शारीरिक संघर्ष में अपने 20 सैनिकों को खो दिया है, उनके पास पीएलए का मुकाबला करने का कोई मैच नहीं है। " वास्तव में आज यह सोचनेवाली बात है कि वह दुनिया से कितना बड़ा जूठ बोल रहा है।
आश्चर्य है, चीन की सत्तारूढ़ चीनी कम्युनिस्ट पार्टी और वामपंथी सरकार किसे धोखा दे रही है, अपने आप को या अपनी जनता को ? जबकि आज के समय में दुनिया जानती है भारत की ताकत क्या है। यही कारण है कि समय-समय पर भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही नहीं, बल्कि मॉस्को में भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने यह साफ कर दिया कि भारत एलएसी (लाइन ऑफ एक्चुल कंट्रोल) पर जारी तनाव को और नहीं बढ़ाना चाहता, लेकिन ध्यान रहे चीन के प्रति भारत की नीति में किसी तरह का बदलाव नहीं हुआ है, सीमाओं का अतिक्रमण भारत किसी भी सूरत में स्वीकार्य नहीं करेगा ।
वस्तुत: चीन यह भूल जाता है कि भारत अब 1962 वाला भारत नहीं है, दुर्गम बर्फीले इलाकों में जज्बे के बूते थ्री-नाट-थ्री राइफलों और बर्फीली पहाड़ी इलाके के अनुरूप पहनने के लिए जूते तक नहीं होने की स्थिति में भी जंग लड़ने वाली भारतीय फौज आज अत्याधुनिक मिसाइलों से लैस है। वर्तमान भारत परमाणु हथियार सम्पन्न है। भारत की सेना अपनी सीमाओं तक कुछ ही मिनटों में आसानी से पहुंचती है। दुनिया की सर्वोत्तम सेनाओं के साथ अब तक के हुए सभी युद्धाभियासों में भारतीय सेना कई बार यह बता चुकी है कि वह दुश्मन को तोड़ने, उसे झुकाने में पूरी तरह से सक्षम है।
इतिहास का सच यही है कि वर्ष 1962 में चीन ने हिन्दी-चीनी भाई-भाई का नारा दिया और पीठ में छूरा घोंपा। धोखे से भारत पर आक्रमण किया था, फिर भी कई चौकियां ऐसी रहीं, जिन पर भारतीय फौज के साहस को याद कर चीन आज भी थर्रा उठता है। वर्तमान में चीन की सीमा पर तैनात सैनिक माइनस तापमान में तेज ठंड के बीच अपने कदम ठिठकते नहीं देते। यहां भारतीय सेना चौबीसों घंटे अत्याधुनिक हथियारों लैस होकर पैट्रोलिंग कर रही है। चीन को यह देखकर भारत की ताकत का अंदाजा लगा लेना चाहिए कि कैसे कुछ ही दिन पहले पैंगोंग सो झील के दक्षिणी किनारे पर भारतीय क्षेत्र को कब्जा करने की चीनी सेना की नापाक कोशिश को इंडियन आर्मी ने न सिर्फ नाकाम किया बल्कि चीनी सैनिकों को खदेड़कर उन्हें उल्टे पांव भागने को मजबूर कर दिया था। इसके आगे आज भारत फिंगर फोर तक पहुंच गया है, भारतीय सेना ने पैंगोंग-त्सो लेक के दक्षिण में जिन जिन चोटियों (गुरंग हिल, मगर हिल, मुखपरी, रेचिन ला) पर अपना अधिकार जमाया है वहां अपने कैंप के चारों तरफ कटीली तार भी लगा दी है। कहना होगा कि भारत की सेना सभी बड़ी चोटिंयों पर अपनी पकड़ मजबूत बना चुकी है।
वस्तुत: वर्तमान मोदी के नेतृत्व में शक्तिशाली भारत का अंदाजा इससे भी लगाया जा सकता है कि अभी हाल ही में आया अमेरिका के ''हार्वर्ड कैनेडी स्कूल'' का अध्ययन यह बताता है कि यदि भारत-चीन की बीच युद्ध होता है तो कौन कहां एक दूसरे पर भारी पड़ेगा। इस शोध के निष्कर्ष को देखें तो भारत के उत्तरी, मध्य और पूर्वी कमांड्स को मिलाकर तकरीबन सवा दो लाख सैनिक सीमा पर तैनात हैं, जबकि चीन के तिब्ब्त, शिन-जियांग और पूर्वी कमांड्स में कुल 2 लाख से 2 लाख 34 हजार के बीच सैनिक तैनात हैं । निष्कर्ष, दोनों ही देशों ने बराबर की संख्या में अपने सैनिकों की तैनाती यहां कर रखी है।
वायुसेना के स्तर पर चीन की पश्चिमी कमांड्स के पास 157 लड़ाकू विमान हैं, जबकि चीन का सामना करने के लिए भारत ने अपने 270 लड़ाकू विमान तैनात किए हैं । आज भारत के पास राफेल जैसे अत्याधुनिक विमान हैं । एक नजर देखाजाए तो फाइटर जेट के मामले में अकेला राफेल ही चीन के सबसे उन्नत किस्म जेएफ-20 से कहीं ज्यादा विकसित है। पश्चिमी देशों के मुकाबले चीन के लड़ाकू विमान कितने कमजोर हैं, यह बात तो पाकिस्तान जैसा उसका मित्र देश भी कई बार स्वीकार कर चुका है । निष्कर्ष, आज इस पूरे क्षेत्र में भारत की ताकत चीन से कहीं अधिक है और वायुसेना के मामले में चीन से आगे भारत दिखाई देता है ।
इसी तरह दोनों देशों की परमाणु शक्ति और मिसाइलों का अध्ययन देखें तो शोध का निष्कर्ष कहता है कि चीन के पास 104 मिसाइलें हैं, जो भारत में कहीं भी हमला करने में सक्षम हैं। दूसरी ओर भारत के पास 10 अग्नि-3 मिसाइल हैं, जो चीन में कहीं भी हमला कर सकती हैं । 8 अग्नि-2 मिसाइल हैं, जो सेंट्रल चीन को टारगेट कर सकती हैं । इनके अलावा 8 अग्नि-2 मिसाइल ऐसी हैं, जो तिब्बत में चीन को निशाना बनाने के लिए हर दम तैयार रहती हैं। सही मायनों में देखा जाए तो चीन के सामने भारत ने अपनी सैन्य तैयारी पुख्ता तरीके से कर रखी है, इसलिए चीन से सामने भारत की ताकत कहीं से भी कम नजर नहीं आती ।
वस्तुत: चीन को यह याद रखना चाहिए कि 1962 के युद्ध में भारत ने अपनी वायुसेना का इस्तेमाल नहीं किया था, नहीं तो युद्ध का नतीजा कुछ और होता । आज चीन का सरकारी तंत्र एवं कम्युनिष्ट पार्टी यह भूल जा रही हैं कि ये 1962 का भारत नहीं, यह 2020 का भारत है। वस्तु: जो चीन वियतनाम को नहीं हरा सका है, वह आज के भारत से क्या जंग लड़ पाएगा? इसलिए चीन का भोपू मीडिया भारत को हल्के में लेने की गलती ना करे। यदि युद्ध हुआ (वैसे तो इसकी संभावना कम ही है फिर भी ऐसा संभव भी हुआ) तो भारत आज के दौर में चीन को वह सबक सिखाने में सक्षम है, जिसके बारे में चीन की कम्युनिष्ट राष्ट्रपति जिनपिंग की सरकार सपने में भी नहीं सोच सकती है।
लेखक, फिल्म प्रमाणन बोर्ड एडवाइजरी कमेटी के पूर्व सदस्य एवं न्यूज एजेंसी हिन्दुस्थान समाचार से जुड़े हैं ।