अब प्रताड़ित शरणार्थी बनेंगे भारतीय

Update: 2019-12-14 12:03 GMT

संसद में लम्बी बहस के बाद नागरिकता संशोधन विधेयक बहुमत से पारित हो गया और राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद इसने कानून का रूप ले लिया है। इस कानून के बन जाने के बाद पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में धार्मिक आधार पर प्रताड़ित किए जाने वाले व्यक्ति या परिवारों को भारत की नागरिकता मिल सकेगी। हम जानते हैं कि पाकिस्तान जन्मजात भारत विरोधी रहा है, उसके जन्म का आधार ही नफरत भरा दृष्टिकोण था। 72 साल बाद भी पड़ोसी देशों में अल्पसंख्यकों को वैसे अधिकार नहीं मिले जो भारत में मिले हैं। इसी कारण आज पाकिस्तान में इनकी संख्या में बड़ी कमी आई है। इन्होंने अपने देश को छोड़ दिया। फिर से प्रताड़ना के शिकार न हों इसलिए वे वापस भी जाना नहीं चाहते। जहां तक इसके विरोध का सवाल है तो यह साफ है कि इसके राजनीतिक कारण हैं। इसी राजनीति के कारण हमारे देश में कभी बांग्लादेशी घुसपैठियों को खुलेआम समर्थन मिलता है तो कभी रोहिंग्या मुसलमानों को बसाने की देश घातक राजनीति की जाती है। अवैध घुसपैठ को अघोषित राजनीतिक समर्थन मिलने का कारण यह भी है कि इन्हें वोट बैंक के रूप में देखा जाता है। यह सोच अत्यंत ही घातक है।

भारत के पड़ोसी पाकिस्तान और बांग्लादेश में अन्य धर्मों के नागरिकों को इसलिए प्रताड़ना दी जाती रही है कि वे अपने धर्म के अनुसार जीवन जीना चाहते थे और यह उनका संवैधानिक अधिकार भी है, लेकिन इन दोनों देशों में सांप्रदायिक कट्टरता इतनी ज्यादा है कि वहां के नागरिकों को अन्य धर्म या सम्प्रदायों की इस प्रकार की स्वतंत्रता पसंद नहीं आती। इसलिए वहां अल्पसंख्यकों पर बहुसंख्यक वर्ग अत्याचार की सीमाएं पार करता दिखता रहा है। पाकिस्तान में इस प्रकार की घटनाएं आम होती जा रही हैं। धार्मिक आधार पर प्रताड़ित किए जा रहे हिन्दू और सिख नागरिक भारत सरकार से अपेक्षा कर रहे थे कि उन्हें भारत की नागरिकता मिल जाए तो वह अपने धर्म के अनुसार जीवन जी सकते हैं। अभी भारत में जो नागरिकता संशोधन विधेयक ने कानून का रूप लिया है, उसके आधार पर यह रास्ता तैयार हो चुका है कि पाकिस्तान और बांग्लादेश से प्रताड़ित होने वाले परिवारों को भारतीय नागरिकता मिल जाएगी।

इन दोनों देशों से जो नागरिक प्रताड़ित होकर आए हैं, वे विस्थापित शिविरों में कठिनाई युक्त जीवन यापन कर रहे हैं। इस कानून के बन जाने से विस्थापितों के चेहरे पर प्रसन्नता दिखाई दे रही है, जबकि उन लोगों को बुरा लग रहा है जो घुसपैठ करके आए हैं क्योंकि इन्हीं लोगों की नागरिकता पर खतरा उत्पन्न हो रहा है। खास बात यह है कि जो गैर मुस्लिम विस्थापित होकर आए हैं, वे शांतिपूर्वक जीवन-यापन कर रहे हैं। जहां घुसपैठियों की संख्या ज्यादा है, वहां अशांति भी देखने को मिल रही है। कश्मीर के नागरिकों ने इसे भोगा है और अब असम के नागरिक इसे भोग रहे हैं। ऐसे लोगों को भारत में रहने का कोई अधिकार नहीं है। ऐसे लोगों को भारत से बाहर करना देशहित का ही कदम माना जा रहा है।

जहां बांग्लादेशी घुसपैठ का प्रभाव ज्यादा है, वहां इसका विरोध भी ज्यादा है। असम में कुछ जिलों में इनकी संख्या बहुत ज्यादा है लेकिन यह भी बड़ा सच है कि असम के 33 में से केवल पांच जिलों में यह विरोध दिख रहा है, पूरे देश में इसकी खुशियां मनाई जा रही हैं। इसलिए यह भी कहा जा रहा है कि जो विरोध हो रहा है, उसमें भारत के मूल नागरिकों का कोई भी योगदान नहीं है, यह केवल राजनीतिक विरोध है। मुस्लिम घुसपैठियों को कुछ राजनीतिक दल इसलिए संरक्षण देते हैं कि वे इनके वोटबैंक कहे जाते हैं। कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस के बारे में यह जगजाहिर है कि यह मुस्लिम तुष्टिकरण की ही राजनीति करने को ही अपना प्राथमिक कर्तव्य मानते हैं और इसी वजह से राजनीतिक दल खुलकर विदेशी घुसपैठ का विरोध करने का साहस नहीं कर पाते। आज देश के कई स्थानों पर घुसपैठिए रह रहे हैं। इनके कारण उन स्थानों पर अपराधों की संख्या भी बढ़ रही है। कांग्रेस के नेता इनको भी नागरिकता देने की वकालत कर रहे हैं, जबकि केन्द्र सरकार केवल प्रताड़ित किए गए समाज को ही नागरिकता देने के पक्ष में है, जो बहुत ही न्यायकारी कदम है।

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