कश्मीर फिर पटरी से उतरता नजर आ रहा है। पिछले डेढ़-दो साल में वहां जो शांति का माहौल बना था, वह उग्रवादियों को रास नहीं आ रहा है। हत्याओं और आतंक का दौर फिर से शुरु हो गया है। वहां 40 घंटों में पांच हत्याएं कर दी गईं। इन हत्याओं में प्रसिद्ध कश्मीरी पंडित और केमिस्ट माखनलाल बिंद्रू, प्राचार्या सतिंदर कौर और अध्यापक दीपकचंद के नामों पर विशेष ध्यान जाता है। ये लोग ऐसे थे, जिन पर हर कश्मीरी को गर्व हो सकता है। बिंद्रू से दसियों साल पहले कई पंडितों ने आग्रह किया कि वे कश्मीर छोड़ दें, उनके साथ चलें और भारत में कहीं और बस जाएं लेकिन उन्होंने कहा कि मुझे अपनी जगह से प्यार है। मैं यहीं जिऊंगा और यहीं मरूंगा। उन्हें आतंकवादियों ने उनकी दुकान में घुसकर मार डाला। उनकी बेटी को, जो प्रोफेसर हैं, इतना साहसिक बयान दिया है कि किसी भी आतंकवादी के लिएह डुबाकर मार देनेवाला है। बिंद्रू परिवार की बहादुरी और धैर्य अनुकरणीय है।
आतंकवादियों ने जो दूसरा हमला किया, वह एक स्कूल में घुसकर किया। उस स्कूल की सिख प्राचार्या और हिंदू अध्यापक को उन्होंने अलग किया और गोलियों से भून दिया। उन्हें पता नहीं था कि उस स्कूल के स्टाफ में कौन क्या है? इसीलिए पहले उन्होंने मुसलमानों को अलग किया और पंडितों को अपना निशाना बना लिया। इसका एक अर्थ और भी निकला। वह यह कि उन्हें तो बस दो-चार पंडितों को मारना था, वे चाहे कोई भी हों। क्या उन्हें पता था कि सतिंदर कौर सिख महिला थी? सतिंदर जैसी महिलाएं दुनिया में कितनी हैं? वे ऐसी थीं कि उन पर हिंदू और मुसलमान क्या, हर इंसान गर्व करे। वे अपनी आधी तनख्वाह गरीब बच्चों पर खर्च करती थीं और उन्होंने एक मुस्लिम बच्ची को गोद ले रखा था। इस बच्ची को उन्होंने एक मुस्लिम परिवार को ही सौंप रखा था और उसे वह इस बच्ची की परवरिश के खातिर 15 हजार रुपये महीना दिया करती थीं। ऐसी महिला की हत्या करके इन हत्यारों ने क्या कश्मीरियत और इस्लाम को कलंकित नहीं कर दिया है? यह कौनसा जिहाद है ?
ये हत्यारे अल्लाह के दरबार में मुंह दिखाने लायक रहेंगे क्या ? इन हत्याओं की जिम्मेदारी लश्करे-तय्यबा की एक नई शाखा ने ली है। उसने कहा है कि इन अध्यापकों को इसलिए मारा गया है कि इन्होंने छात्रों पर 15 अगस्त का समारोह मनाने के लिए जोर डाला था। पिछले दिनों हुए इन हमलों का कारण यह भी माना जा रहा है कि कश्मीर से भागे हुए पंडितों की कब्जाई हुई संपत्तियों को वापस दिलाने का जोरदार अभियान चला हुआ है। इस अभियान के फलस्वरूप लगभग एक हजार मकानों और जमीन से कब्जाकारियों को बेदखल किया गया है। ये गुस्साए हुए कश्मीरी मुसलमान अब हिंसा पर उतर आए हैं। कश्मीरी नेताओं को चाहिए कि इन हिंसक घटनाओं की कड़ी भर्त्सना करें और हत्यारों को पकड़वाने में सरकार की मदद करें। ये हत्यारे यदि पकड़े जाएं तो इन्हें तुरंत सजा दी जाए और इतनी कठोर सजा दी जाए कि ऐसा सोचने वालों के भी रोंगटे खड़े हो जाएं। कश्मीर के हिंदुओं, सिखों और शांतिप्रिय मुसलमानों की सुरक्षा की पूरी व्यवस्था भी जरूरी है। गृहमंत्री अमित शाह से उम्मीद की जाती है कि वे इस दिशा में अविलंब कोई ठोस कदम उठाएंगे।
(लेखक सुप्रसिद्ध पत्रकार हैं)