हां, यह संघम शरणम गच्छामि ही है

अतुल तारे

Update: 2020-08-26 09:37 GMT
श्री ज्योतिरादित्य सिंधिया की नागपुर यात्रा आज सुर्खियों में है।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को न जानने वाले या जान कर भी पूर्वाग्रह और दुराग्रह रखने वाले इसे व्यंग में संघ शरण म गच्छामि की उपमा दे रहे हैं।संघ समाज के अंदर कोई एक अलग संगठन नहीं है अपितु सम्पूर्ण समाज का ,समग्र राष्ट का संगठन हैं और आज जो संघ विचार है उसे देखते हुए सम्पूर्ण दुनिया ही संघम शरण म गच्छामि है यह एक सत्य है यह अलग विषय है संघ न इसका दावा करता है और न ही संघ की ऐसी कोई अभिलाषा है।

बात फिर एक बार श्री ज्योतिरादित्य सिंधिया की।यह श्री सिंधिया ने उचित निर्णय लिया कि वह बिना किसी राजनीतिक शोर शराबे या प्रदर्शन के वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ नागपुर मुख्यालय गए।सरसंघचालक श्री मोहन भागवत एवं सर कार्यवाह श्री सुरेश जोशी भैया जी से भेंट की ओर डॉक्टर संघ संस्थापक डॉक्टर हेडगेवार के निवास पर भी गए और श्रद्धा सुमन अर्पित किए।

श्री सिंधिया ने कहा कि यह एक स्थान मात्र नहीं है प्रेरणा केंद्र है। 

श्री सिंधिया के इन बयानों के राजनीतिक मायने निकालने वाले और उन्हें कोसने वाले भूल रहे हैं कि पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी जिनके कांग्रेसी होने में कांग्रेसियों को भी शक नहीं रहा वह भी डॉक्टर हेडगेवार को देश का सच्चा सपूत बता चुके हैं।श्री मुखर्जी ऐसा करने का साहस इसलिए कर पाए कारण उन्होंने इतिहास के तथ्यों को बिना किसी पूर्वाग्रह के चश्मे के पढ़ा होगा।वह जानते थे कि स्वाधीनता संग्राम के आंदोलन में स्वयं डॉक्टर हेडगेवार की कितनी महत्वपूर्ण भूमिका एक कांग्रेसी कार्यकर्ता के रूप में थी।यही नहीं चुकी कांग्रेस भी उस समय एक दल नहीं विचार था,आंदोलन था,स्वाधीनता प्राप्ति का तो डॉक्टर हेडगेवार ने कांग्रेस में अपनी प्रभावी भूमिका निभाई थी।यह अलग बात है वामियो ने इस तथ्य को दबा कर रखा और संघ विचार स्वयं को स्थापित करने का कभी रहा ही नहीं।

श्री सिंधिया ने निश्चित इस यात्रा से एक प्रेरणा ली होगी।उनकी दादी और भाजपा की वरिष्ठ तम नेत्री कैलाश वासी राजमाता सिंधिया ने संघ विचार के लिए स्वयं को निस्वार्थ भाव से पूर्ण समर्पित किया और बिना किसी अपेक्षा के किया।परिणाम राजमाता आज लोकमता के स्वरूप में विराजित है।सिंधिया के पास यह अवसर है कि वह भाजपा में अपने को महाराज के रूप में नहीं एक कार्यकर्ता के रूप में स्वयं को समर्पित करें ,परिश्रम की पराकाष्ठा करें।वह ऐसा करते हैं तो उनके भाजपा में आने के राजनीतिक निर्णय को देश हित में एक राष्ट्रीय निर्णय की मान्यता स्वतः ही मिलेगी और भाजपा भी उन्हें सहज पलको पर बिठाएगी।पर अगर वह ऐसा करने से चुके और महाराज ही बने रहे तो उनके लिए भी कठिन होगा।

अब तक की उनकी भाजपा की यात्रा मिली जुली संभावना दर्शाती है ।नागपुर की यात्रा इसको एक सकारात्मक दिशा देगी ऐसी उम्मीद की जानी चाहिए। और अंत में थोड़ी सी चर्चा उस विधवा विलाप पर जो जमीन से ,विचार से पूरी तरह कट चुके हैं।उनसे आग्रह है कि वह संघम शरण म गच्छामि के मंत्र को समझे तो उन्हें ध्यान में आएगा यह बुद्ध का मंत्र है।नागपुर धम्म भूमि है ,पुण्य भूमि है।संघ तो अपनी स्थापना काल से ही बुद्ध के विचार को भी मान्यता देता है।संघ है ही ऐसी गंगा जहा राष्ट्रीय विचार की सरिता प्रवाहित हो रही है और आज देश ही नहीं विश्व भी उसी का अनुगमन कर रहा है तो सिंधिया पर यूं फिजूल की अर्थहीन चर्चा क्यों ? अतः विलापी इसे बिल्कुल संघ शरणं म गच्छामि कह कर अपनी रूदाली जार्री रखे।यह युग संघ शक्ति कलियुगे का ही है और उसका अनुशीलन करना राष्ट्रीय कर्तव्य ।संघ स्वयं यह नहीं कहेगा उसे आवश्यकता भी नहीं पर किसी के पेट में मरोड़ है तो बनी रहे।कोरोना का टीका तो समय के साथ आ जाए पर इसका मुश्किल है।

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