अंतरराष्ट्रीय न्यायालय के एक स्वागत योग्य निर्णय में पाकिस्तान को एक बार फिर मुंह की खानी पड़ी है। भारतीय नागरिक कुलभूषण जाधव को पाकिस्तान सरकार ने जासूस बताने का भरपूर प्रयास किया। लेकिन अंतरराष्ट्रीय न्यायालय के 16 जजों की पीठ ने 15-1 के बहुमत से पाकिस्तान द्वारा कुलभूषण को दी गई फांसी की सजा पर रोक लगाकर पड़ोसी देश को तगड़ा झटका दिया है। अंतरराष्ट्रीय न्यायालय के इस कदम को भारत सरकार की बड़ी कूटनीतिक जीत के रुप में देखा जा रहा है। भारत सरकार की सक्रियता के चलते ही कुलभूषण जाधव की फांसी पर रोक लगाई जा सकी है। पाकिस्तान के बारे में यह भी प्रमाणित हो चुका है कि कुलभूषण के मामले में उसने नियमानुसार कार्रवाई नहीं की। कई अवसरों पर पाकिस्तान की यह मानसिकता दुनिया के सामने आ चुकी है। इसके बाद भी पाकिस्तान सुधरने का नाम नहीं ले रहा है। अंतरराष्ट्रीय न्यायालय द्वारा फांसी पर रोक लगाने के निर्णय को अब पाकिस्तान अपनी जीत के रुप में निरुपित कर रहा है। उसने कहा है कि अंतरराष्ट्रीय न्यायालय ने यह बिलकुल नहीं कहा है कि जाधव को छोड़ दिया जाए। इसलिए पाकिस्तान कानून के अंतर्गत अपनी कार्रवाई करेगा।
पाकिस्तान की मंशा पर उठ रहे सवालों के बाद भी पाकिस्तान चतुराई करने से बाज नहीं आ रहा। आगे भी इस बात की गुंजाइश नहीं है कि पाकिस्तान सुधार के रास्ते पर कदम बढ़ाए, क्योंकि यह हमेशा ही देखा गया है कि पाकिस्तान की कथनी और करनी में जमीन-आसमान का अंतर रहा है। कई बार ऐसा भी देखने में आया है कि वह अपने गुनाहों पर परदा डालने के लिए अपने द्वारा किये कृत्यों का दोष दूसरों पर मढ़ता रहा है। भारत के पूर्व नौसेना अधिकारी कुलभूषण जाधव के मामले में पाकिस्तान एक बार फिर से अपनी मानसिक कुटिलता को उजागर कर रहा है।
पाकिस्तानी न्यायालय द्वारा जाधव को दी गई फांसी की सजा पर अंतरराष्ट्रीय न्यायालय ने रोक लगा दी है। इस मामले में खास बात यह है कि 16 जजों में से 15 जज भारत के पक्ष में खड़े दिखाई दिए। जो एक जज पाकिस्तान के पक्ष में था, वह पाकिस्तान का ही है। इसलिए उसने अपने देश के साथ खड़े रहने में प्रतिबद्धता जाहिर की।
पाकिस्तान प्रारंभ से ही कुलभूषण जाधव के मामले में सवालों के घेरे में है। उसको ईरान से अपहृत कर 3 मार्च 2016 को ब्लूचिस्तान से गिरफ्तार करने की बात कही जा रही थी। पाकिस्तान ने कुलभूषण जाधव को भारतीय जासूस बताया था, जबकि सत्यता यह है कि जाधव उस समय न तो भारतीय नौसेना के अधिकारी थे और न ही भारतीय जासूस। वह व्यापार के सिलसिले में ईरान गए थे। लेकिन पाकिस्तान ने जाधव को आतंकवादी और जासूस तक कह दिया था। वो तो भला हो भारत सरकार की ओर से सक्रियता पूर्वक उठाए गए कदमों का, जिसके कारण ही पाकिस्तान द्वारा दी गई फांसी की सजा अंतरराष्ट्रीय न्यायालय ने रोक दी है। अब आगे भी भारत को इसी प्रकार के कदम उठाने होंगे। तभी कुलभूषण जाधव को बचाने का रास्ता तैयार किया जा सकता है।
झूठी कहानियां गढ़ना पाकिस्तान की फितरत है। पाकिस्तान को समझना चाहिए कि झूठ का कोई आधार नहीं होता। लेकिन पाकिस्तान झूठ को ही आधार बनाने का काम करता रहा है। कहते हैं किसी का गुनाह बताने के लिए जब उसकी तरफ अंगुली की जाती है तो हाथ की बाकी अंगुलियां उसकी स्वयं की तरफ होती हैं। यानी अंगुली करने वाले का दोष सामने वाले से चार गुना ज्यादा होता है। लेकिन जब किसी निरपराध की तरफ इस प्रकार की कार्यवाही की जाती है तो स्पष्ट तौर पर यह स्वयं के दोष को छिपाने का षड्यंत्र ही कहा जाएगा। पाकिस्तान का चरित्र एक बार फिर दुनिया के सामने है। हालांकि इस बार उसका दोष पिछली बार की अपेक्षा कहीं ज्यादा है। क्योंकि, जिस कुलभूषण जाधव को पाकिस्तान जासूस बता रहा है, उसके बारे में ईरान सरकार की जांच में कोई भी ऐसा प्रमाण नहीं मिला जो उसे जासूस सिद्ध करता हो। इतना ही नहीं कुलभूषण जाधव के दस्तावेजों से भी यह प्रमाणित नहीं हुआ कि वह जासूस है। इस बात को पाकिस्तान भी अच्छी तरह से जानता है कि कुलभूषण जासूस नहीं, व्यापारी है। पाकिस्तान की नजर में कुलभूषण का दोष केवल इतना ही है कि वह भारतीय है।
हाफिज पर पाकिस्तान का ढोंग!
अंतरराष्ट्रीय दबाव के सामने झुककर पाकिस्तान ने भले ही आतंकी सरगना हाफिज सईद को गिरफ्तार कर लिया है। लेकिन इसे पाकिस्तान के ढोंग के रुप में ही देखा जा रहा है। ऐसा इसलिए कि पाकिस्तान ने पहले भी आतंकियों के विरोध में की जाने वाली दिखावे की कार्यवाही में बड़े आकाओं पर हाथ नहीं डाला था। पाकिस्तान की ओर से की गई यह गिरफ्तारी भी अमेरिका को गुमराह करने के रुप में ही देखा जा रहा है। यह सभी जानते हैं कि हाफिज सईद 2008 में हुए मुंबई हमले का आरोपी है। इसलिए पाकिस्तान को हाफिज सईद को भारत को सौंपने का मार्ग प्रशस्त करना चाहिए। ऐसा लगता है कि हाफिज की गिरफ्तारी मात्र ढकोसला ही है। हाफिज सईद को बुधवार को लाहौर से गिरफ्तार कर न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया है। इस कार्यवाही के पीछे यही समझा जा रहा है कि यह मात्र अमेरिका को दिखाने के लिए ही की गई है। अगले ही हफ्ते पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान अमेरिका दौरे पर जाने वाले हैं। इसलिए पाकिस्तान हाफिज को पकड़कर शांति का मसीहा बनना चाहता है।