जी ट्वेंटी विश्व का प्रायः सर्वाधिक मजबूत वैश्विक संगठन माना जाता है। वैश्विक मामलों में ऐसे संगठनों की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। इन संगठनों में भी पांच- छह देश अधिक शक्तिशाली हैं। इसी के अनुरूप सम्मेलनों में इन्हें स्थान मिलता था। भारत विकसित देशों में शामिल नहीं है। फिर भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ऐसे सम्मेलनों में भारत की गरिमा को बढ़ाया है। इस बार जी ट्वेंटी के शिखर सम्मेलन में नरेंद्र मोदी के विचारों को सबसे अधिक प्राथमिकता दी गई। संयुक्त घोषणा से यह तथ्य प्रमाणित हुआ। मोदी ने वैश्विक समस्याओं को टालते रहने की नीति को गलत बताया। अब तक जी ट्वेंटी में कुल मिलाकर यही चल रहा था। विकसित देशों के अपने निहित स्वार्थ थे। वह उनसे बाहर नहीं निकलना चाहते थे। भविष्य की चिंता को दरकिनार कर वर्तमान को ही देखा जा रहा था। वैसे यही पश्चिमी देशों की उपभोगवादी सभ्यता है। इसके चलते यह संगठन भविष्य के प्रति लापरवाह रहा है।
चीन एक खलनायक की तरह है। उसका जितना विरोध होना चाहिए , वह नहीं होता। यही कारण है कि वह समुद्री सीमा में विस्तार कर रहा है। आतंकवाद का समर्थन करता है। यह समस्या बढ़ रही है। नरेंद्र मोदी ने इन सबकी तरफ सम्मेलन का ध्यान आकृष्ट किया। उनकी भागीदारी कई हिस्सों में देखा जा सकता है। पहला उन्होंने जी ट्वेंटी शिखर सम्मेलन को संबोधित किया। यहीं पर ब्रिक्स देशों और फिर अमेरिका, जापान के साथ त्रिपक्षीय विचार विमर्श किया। इसके अलावा रूस, चीन, जर्मनी ,ब्रिटेन आदि देशों के साथ उनकी द्विपक्षीय मुलाकात भी सार्थक रही।
मोदी ने साझा मूल्यों पर साथ मिलकर काम जारी रखने पर जोर दिया। जापान का जी,अमेरिका का ए और इंडिया के ई को मिलाकर मोदी ने जय शब्द बनाया। उनके अनुसार जापान ,अमेरिका और इंडिया की यह दोस्ती जीत हासिल करेगी। जी ट्वेंटी शिखर सम्मेलन अर्जेंटीना की राजधानी में ब्यूनर्स आयर्स में आयोजित हुआ।अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे और नरेंद्र मोदी की बैठक को बहुत महत्व मिला। तीनों नेताओं के बीच त्रिपक्षीय मसलों पर काफी देर तक बातचीत हुई। इसमें चीन द्वारा समुद्री क्षेत्र में नियम विरुद्ध किये जा रहे अतिक्रमण पर भी विचार हुआ। दक्षिण चीन सागर से प्रतिवर्ष करीब तीन खरब डॉलर का वैश्विक व्यापार होता है। अमेरिका ने यहां मुक्त परिवहन सुनिश्चित करने की लिए अपने गश्ती दल लगाए हैं। चीन इसका विरोध करता है। अब अमेरिका को भारत व जापान का खुला समर्थन मिलेगा। इसमें कुछ अन्य देश भी शामिल हो सकते है। भारत, जापान और अमेरिका के बीच पहली त्रिपक्षीय वार्ता वाशिंगटन में गत वर्ष के अंत के हुई थी। उसमें तीनों देशों के बीच एशिया प्रशांत क्षेत्र सहित कई मुद्दों चर्चा हुई थी।
चीन पूरे दक्षिण चीन सागर में अपनी गतिविधियां तेज कर रहा है। जबकि वियतनाम, फिलीपींस, मलयेशिया, ब्रुनेई और ताइवान इसके जलमार्गों पर अपना दावा करते हैं। मोदी, ट्रंप और आबे बहुपक्षीय सम्मेलनों में ऐसी बैठक करने पर पहले ही योजना बना चुके थे।
जी ट्वेंटी समिट में भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने काले धन पर भी चर्चा की और उसके खिलाफ दुनियाभर के सभी विकासशील देशों से साझा प्रयास का आह्वान किया। उन खतरों की ओर भी ध्यान दिलाया, जिनका सामना आज पूरी दुनिया कर रही है , इनमें आतंकवाद और वित्तीय अपराध दो सबसे बड़े खतरे हैं।
विकासशील देशों की जरूरतों पर सबसे पहले ध्यान देने की आवश्यकता है। विश्व के सामने आतंकवाद और पर्यावरण संरक्षण सबसे बड़ा मुद्दा है। इसके साथ विकसित देशों को विकासशील देशों की जरूरतों को ध्यान में रखना होगा। सम्मेलन से इतर ब्रिक्स नेताओं की एक अनौपचारिक बैठक में मोदी ने कहा कि इस समूह की अगुवाई विकासशील देश द्वारा की जा रही है। यह एक अच्छा अवसर है, विकासशील देशों की प्राथमिकताओं को भी जी ट्वेंटी के एजेंडा में प्राथमिकता मिलेगी।
वैश्वीकरण और बहुपक्षवाद में सुधार के लिए भारत प्रतिबद्धता है। संयुक्त राष्ट्र के आतंकवादरोधी नेटवर्क को मजबूत बनाने का भी प्रयास होना चाहिए। तभी विश्व में शांति- सौहार्द कायम होगा। भारत और ब्रिक्स के चार अन्य देशों ने नियम आधारित बहुपक्षीय व्यापार प्रणाली का आह्वान किया। बढ़ते संरक्षणवाद के बीच ब्रिक्स के सदस्य देशों ने पारदर्शी, भेदभाव रहित, खुला और संयुक्त अंतरराष्ट्रीय व्यापार सुनिश्चित करने पर जोर दिया। ब्रिक्स देशों की बैठक में प्रधानमंत्री मोदी के अलावा रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन, चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग, दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति सी रामफोसा और ब्राजील के राष्ट्रपति माइकल टेमेर ने भाग लिया। बैठक के बाद संयुक्त बयान जारी किया गया।
मोदी ने रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से मुलाकात की। दोनों ने रूस- भारत- चीन अनौपचारिक शिखर सम्मेलन में भाग लिया। दो हजार छह में सेंट पीटर्सबर्ग में आयोजित पहली आरआईसी शिखर सम्मेलन बैठक के बाद ये बैठक हुई थी।
इस मौके पर नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच मुलाकात हुई। मोदी ने कहा कि हाल के समय में दोनों देशों के बीच कई मुद्दों पर मतभेदों को दरकिनार कर आगे बढ़ रहे हैं। भारत को उम्मीद है कि चीन भी पूर्वाग्रहों को छोड़कर आगे बढ़ेगा। एशिया के दोनों शक्तिशाली मुल्कों को आगे आकर दुनिया को एक नई व्यवस्था देनी है। चीन, रूस और भारत की तेरह वर्षो बाद त्रिपक्षीय बैठक भी महत्वपूर्ण रही। मोदी ने इसमें भी एशिया प्रशांत क्षेत्र और आतंकवाद का मुद्दा उठाया। इस प्रकार उन्होंने चीन को बता दिया कि अच्छे संबंधों में बाधक तत्वों को उसे ही दूर करना होगा। क्योंकि गड़बड़ी भी उसी की तरफ से हो रही है।
जाहिर है कि नरेंद मोदी की अर्जेंटीना यात्रा एक तीर से कई निशाने जैसी साबित हुई। जी ट्वेंटी, ब्रिक्स,और त्रिस्तरीय समीट में नरेंद्र मोदी की बातों को बहुत अहमियत मिली। रूस, चीन, ब्रिटेन, जर्मनी, सऊदी अरब आदि अनेक देशों के साथ भी सहयोग बढ़ाने का निर्णय हुआ।