एक ऐतिहासिक जनादेश के लिए भारत के परिपक्व होते जा रहे मतदाताओं का हार्दिक अभिनंदन। उत्तरप्रदेश सहित पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव मात्र विधानसभा के चुनाव नहीं थे। उत्तरप्रदेश के परिणाम देश की राजनीति को दिशा देते हैं। पश्चिम में गोवा एवं पूर्व में मणिपुर देश के दो छोरों पर देश के मिजाज को दिखाने वाले थे। उत्तराखंड अपने स्थापना काल से हर बार अपनी पसंद बदलने वाला राज्य बन चुका था। सीमावर्ती पंजाब में घमासान एक नई राजनीति को गढ़ रहे थे। भारतीय जनता पार्टी के लिए यह चुनाव बेहद प्रतिष्ठा से जुड़ा था। पश्चिम बंगाल के चुनावों में करारी हार, किसान आंदोलन, महंगाई, बेरोजगारी सहित ऐसे कई मुद्दे हवाओं में बह रहे थे जो भाजपा के लिए बड़ी चिंता का कारण थे। भाजपा नेतृत्व यह समझ रहा था कि चुनाव में हार न केवल साा से उसे दूर करेगी बल्कि देश में सक्रिय विधर्मी ताकतें भाजपा की हार को भाजपा के वैचारिक अधिष्ठान की हार प्रमाणित करेंगे जो देश के भविष्य के लिए बेहद खतरनाक होने वाला था। सिमटते जनाधार एवं खिसकती राजनीतिक जमीन के चलते उत्तरप्रदेश में कांग्रेस नए नारे के इस बार प्रियंका के सहारे मैदान में उतरी, पर जादू चढऩे से पहले ही उतर गया। कारण जनता समझ गई थी कि लडक़ी हूँ लड़ सकती हूँ का नारा देने वाली प्रियंका यह भी कह रहीं हैं कि अखिलेश को सीटें कम पड़ी तो कांग्रेस मदद करेगी जनता ने उन्हें मदद लायक सीट भी नहीं दीं।
इधर उाराखण्ड में बार-बार मुख्यमंत्री का परिवर्तन, गोवा में मनोहर पर्रिकर के अवसान के बाद मचे घमासान ने चुनौती बढ़ा ही दी थी। पंजाब भाजपा के लिए दूर हो ही चुका था। मणिपुर एक नया क्षेत्र था। जाहिर है भाजपा के लिए पांच राज्यों के चुनाव केन्द्र सरकार के भविष्य को भी एक दिशा देने वाले थे। टुकड़ों में बटा विपक्ष भी यह समझ रहा था कि भाजपा को हराने के मुद्दे पर उन्हें एक हो जाना चाहिए। यही वजह थी कि पश्चिम बंगाल से ममता बनर्जी और महाराष्ट्र से उद्धव ठाकरे ने भी राजनीतिक पर्यटन किया, पर परिणाम सामने है। उत्तरप्रदेश में योगी आदित्यनाथ 37 साल बाद ऐसे पहले मुख्यमंत्री हैं जिन्होंने लगातार दूसरी बार उत्तरप्रदेश में शानदार वापसी की है। इससे पहले 1985 में कांग्रेस ने 269 सीटों के साथ साा में वापसी की थी। 1980 में कांग्रेस को 309 सीट मिली थी। 2017 एवं 2022 के नतीजे आंकड़ों के थोड़े से हेरफेर के साथ अंक गणित के लिहाज से एक समान दिखाई देते हैं। पर 2022, 1985 नहीं है। 2022 आते-आते भाजपा का देश की राजनीति में जो शिखर है, वह कांग्रेस के शिखर से हटकर है। देश एक नई राजनीतिक दिशा की ओर अग्रसर है। इसकी शुरुआत 2014 से ही हो चुकी है, जिसके बीज दरअसल अटलजी की सरकार के पराभव के बाद कांग्रेस ने 2004 में बो दिए थे। यह बीज था राष्ट्रीय विचार को पूरी बेदर्दी के साथ कुचलने का। पर 2014 में मोदी के उदय ने देश में एक नई चेतना का जागरण किया, जिसे 2017 में योगी ने और प्रखरता से जाग्रत किया।
भारतीय जनता पार्टी ने एक साथ दो मुद्दों पर कार्य किया, जहां राम मंदिर, तीन तलाक, अयोध्या-काशी-मथुरा एवं प्रयागराज से सांस्कृतिक जयघोष किया। वहीं सबका साथ सबका विकास का नारा देकर वंचित वर्ग के आर्थिक सबलीकरण का भी अभियान लिया। यही नहीं कानून व्यवस्था को भी सर्वोच्च प्राथमिकता पर रख कर एक सत्ता प्रशासन का संदेश दिया। चुनावी परिणाम बता रहे हैं देश के मतदाताओं ने तमाम भ्रम षड्यंत्र के बावजूद बेहद गंभीरता के साथ अपने मत का प्रयोग किया। मतदाताओं ने यह भी संदेश दिया कि वह अंध भक्त भी नहीं है। पंजाब जैसे सीमावर्ती राज्य में वह अगर विकल्प को पाता है तो उसे भी चुनने से परहेज नहीं करता। गंभीर सवाल अपने स्थान पर है इनके उार तलाशने ही होंगे पर दिल्ली के बाद पंजाब में अब आप की शानदार जीत को समझने की आवश्यकता है। कांग्रेस को जनता ने यहां बिल्कुल खारिज किया है वहीं भाजपा को अकाली दल के पापों का भुगतान करना पड़ रहा है। जाहिर है भाजपा नेतृत्व को पंजाब के जनादेश के प्रकाश में आप के राजनीतिक मॉडल को भी जमीनी स्तर पर समझना होगा। भाजपा ऐसा करती है तो यह न केवल उसके अपने राजनीतिक स्वास्थ्य के लिए और बेहतर होगा, देश के भविष्य के लिए भी सुखद होगा। बहरहाल उार प्रदेश की शानदार जीत भाजपा की वैचारिक जीत है। भाजपा के सुशासन पर एक मुहर है। भाजपा की जीत परिवारवाद की राजनीति पर प्रहार है। भाजपा की जीत जातिवादी राजनीति के खिलाफ एक संदेश है। भाजपा की जीत अवसरवादिता भ्रष्टाचार के खिलाफ संदेश है।
जनता ने उार प्रदेश में एम वाय के समीकरण को मान्यता दी है पर नए अर्थों में मुस्लिम यादव नापाक गठबंधन को नकार कर मोदी-योगी के पवित्र गठबंधन पर अपना विश्वास जताया है। देश की जनता ने स्पष्ट संदेश दिया है कि वह मोदी-योगी जैसे चेहरे पर विश्वास करना भी जानती है और पंजाब के दिग्गज चेहरों को धूल चटाना भी। उसके लिए कोई माने नहीं है कि उाराखंड में कितने मुख्यमंत्री बदले वह गोवा के राजनीतिक घमासान का भी राष्ट्रीय हितों पर अधिमान नहीं देती बल्कि पूर्वांचल में मणिपुर में भी भाजपा पर अटूट विश्वास प्रगट कर यह संदेश देती है कि आइए एक मजबूत भारत का निर्माण करें। और अंत में कांगे्रस के लिए दो शद युवराज राहुल गांधी की लगातार असफलता के बाद प्रियंका का भी असफल होना कांगे्रस की राजनीतिक यात्रा को पूर्ण विराम देता दिखाई दे रहा है। क्या महात्मा गांधी का सपना यूं पूरा होगा, ऐसे परिवेश में क्या भाजपा को ही देश हित में विचार करना होगा कि सकारात्मक विपक्ष का स्वरूप क्या होगा? कारण आम आदमी पार्टी को यह दायित्व देना शुभ लक्षण तो नहीं है।