मेरे पत्रकारिता जीवन की मुझे एक खास उपलब्धि बतानी हो तो मैं यह तुरंत कहूंगा कि मुझे निष्काम कर्मयोगी, श्रद्धेय श्री माधव गोविंद वैद्य के भाष्य (आलेख) का मराठी से हिन्दी अनुवाद का सतत सौभाग्य मिला है। मेरे लिए यह एक ऐसा सुअवसर था, जिसके चलते मेरा श्रद्धेय बाबूराव जी से संवाद भी होता था। तरुण भारत नागपुर में आपका एक नियमित स्तंभ था 'भाष्य' श्री वैद्य अपने इस स्तंभ में देश, काल परिस्थिति पर समाज को एक दृष्टि देने वाला आलेख लिखते थे। यह लेख मराठी में मूलत: होते थे। स्वदेश में हम इनका हिन्दी अनुवाद प्रकाशित करते थे।
आज वह स्मृतियां एकाएक जीवित हों उठीं, जैसे ही विश्व संवाद केन्द्र नागपुर के फेसबुक पेज पर समाचार देखा कि श्री मा.गो. वैद्य नहीं रहे। यह कैसे हो सकता है? वह अस्वस्थ थे, पर वे हैं यह हम सबके लिए एक ऐसी आश्वस्ति थी कि मन में कहीं कोई उलझाव हो, भटकाव हो तो बाबूराव जी ने क्या लिखा है, उसे एक बार पलट लें स्मरण कर लें। इस बीच एक लंबे अंतराल से उनसे प्रत्यक्ष संवाद नहीं हुआ था। पर हमें स्मरण है कि स्वदेश ग्वालियर समूह के प्रतिष्ठित राजमाता पत्रकारिता स मान से उन्हें विभूषित कर स्वदेश का सौभाग्यशाली होने का अवसर मिला तो उन्होंने डॉ. भगवत सहाय सभागार में कहा था कि वह अपने यशस्वी जीवन के 100 वर्ष पूर्ण करेंगे, फिर यह देह परिवर्तन क्यों? वे मनीषी थे। वे दृष्टा थे। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जब ठीक 5 वर्ष बाद अपने 100 वर्ष पूर्ण कर रहा है, तब वह हम सबके बीच वह एकमात्र मनीषी थे, जिन्होंने संघ के आद्य सरसंघचालक परमपूज्य डॉ. हेडगेवार सहित समस्त सरसंघचालकों के साथ प्रत्यक्ष कार्य किया था। संघ का दर्शन व्यक्ति पूजक नहीें है। वह तत्व की पूजा करता है यह सत्य है। इसीलिए संघ ने गुरु के स्थान पर परम पवित्र भगवा ध्वज को मान दिया है। पर भारतीय संस्कृति निर्गुण को भी मानती है, सगुण को भी। संघ को एक आकार के रूप में सहज ही समझना हो, साकार रूप में देखना हो तो हमारी पीढ़ी के लिए यह एक सुअवसर था कि बाबूजी के दर्शन लाभ ले लिए जाएं, उनसे आशीर्वाद प्राप्त कर लिया जाए। संघ समाज के अंदर कोई संगठन नहीं है। संघ स पूर्ण समाज का समग्र संगठन है। RSS is not a organization within a society. It is a organization of the society. श्रद्धेय श्री वैद्य जी के एक भाष्य की ही यह पंक्तियां है, जो आज भी संघ को समझने के लिए हम जैसे कार्यकर्ताओं को एक दृष्टि देती है।
स्मरण आ रहे हैं आज श्रद्धेय श्रीकांत जी जोशी। शिमला प्रवास के दौरान उन्होंने कहा था कि संघ को अगर समग्र रूप से समझना हो तो अकेले परम पूज्य डॉ. हेडगेवारजी को समझने से कुछ नहीं होगा, न ही परम पूज्य श्री गुरुजी को और न ही पूज्य देवरसजी को। इन तीनों को एक साथ समझना होगा। तब संघ समझ में आ रहा है। ऐसा कहने के हम अधिकारी होंगे। प्रथम दो सरसंघचालक को जिस पीढ़ी ने देखा है, वह धीरे-धीरे हमसे लगभग विदा ही ले रही है। ऐसे शून्य में आज बाबूराव जी का सशरीर हमारे बीच होना एक सुखद आश्वासन था। वह अपने भाष्य में अपने अंदर खासकर राजनीति के माध्यम से समाज में परिवर्तन का संकल्प लेकर कार्यरत भारतीय जनता पार्टी पर तीखे कटाक्ष करते थे। उनकी दृष्टि और कलम की धार इतनी पैनी रहती थी, जिसका किसी के पास कोई उत्तर नहीं रहता था। वह संघ के पहले अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख थे। यही कारण रहा कि उनकी टिप्पणी को हमेशा संघ का अधिकृत मत है, यह मान्यता एवं प्रतिष्ठा मिली।
आज वह हमें छोड़ कर उस अनंत यात्रा पर निकल गए हैं, जहां से कौन कब लौटता है, यह हम इन भौतिक आंखों से देख नहीं पाते। पर बाबूरावजी 100 साल पूर्ण करूंगा, यह कह कर 97 साल की उम्र में चले गए। यह समझ में नहीं आ रहा। मुझे लगता है वह यह सोच रहे होंगे कि जब संघ 100 साल का होगा तो वह 102 वर्ष के होंगे, इससे अच्छा यह है कि वह आज विदा लें और 5 वर्ष की आयू में एक शिशु स्वयंसेवक के रूप में पूर्ण ऊर्जा के साथ ध्वज प्रणाम करें तो यह अधिक श्रेयस्कर होगा।
बाबूरावजी ने यह योजना अपने मन में ही रखी होगी और योजना परिवर्तन किसी को संभवत: बताया नहीं होगा। पर वह आएंगे, यह सुनिश्चित है। हमें प्रतीक्षा रहेगी।
सादर नमन।
ऊं शांति