अभिनेत्री कंगना रनोट ने मुंबई में रहने को लेकर एक प्रश्न खड़ा किया था कि अब मुंबई सेफ नहीं है। कंगना के ट्वीट में सवाल किया था कि मुंबई धीरे धीरे 'पाकिस्तान के कब्जे वाला कश्मीर' क्यों लगने लगी है, यह प्रश्न कितना सही है अथवा नहीं, इस पर चर्चा होनी ही चाहिए थी, इससे किसी को कोई परहेज भी नहीं होगा, कई फिल्मी हस्तियों की ओर से कंगना रनौत की आलोचना की गई, यहां तक कि देश भर से कई लोगों ने इस बात के लिए कंगना को घेरने में जरा भी संकोच नहीं किया कि वह मुंबई को कैसे निशाने पर ले सकती हैं, जहां से उन्हें इतनी शोहरत मिली, लेकिन शिवसेना के नेता संजय राउत समेत तमाम शिवसेनिकों ने जिस तरह से कंगना के खिलाफ आपत्तिजनक शब्दों का इस्तेमाल किया,यहां उसे किसी भी सूरत में नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है ।
इसके बाद फिर मुंबई महानगर पालिका ने जो उनके घर तोड़ने की आनन फानन में कार्यवाही की, उससे तो यह स्पष्ट हो गया कि शिवसेना के नेता और कार्यकर्ता कंगना के साथ बदले की भावना में इतने डूब चुके हैं कि उन्हें पूरी मुंबई छोड़िए, कहा जाए कि मुंबई की एक गली में क्या हो रहा है, उससे भी कोई लेना देना नहीं, सिर्फ अपने विरोधियों को ठिकाने लगाने के, जिनकी बातें शिवसेना से मेल नहीं खाती । वस्तुत: अब इस पूरे प्रकरण में कंगना जिस तरह से मुखर होकर सामने आई हैं, उससे नुकसान किसी को होगा तो वह शिवसेना ही है। क्योंकि न्यायालय के निर्णय का इंतजार करने और कंगना के अपने घर तक पहुंचने के पहले ही बीएमसी की टीम उनके घर पहुंचकर तोड़फोड़ करने लगती है, यह कहकर कि नक्शे का पालन नहीं किया गया। वस्तुत: जब बताया गया कि उन्होंने वॉशरूम को स्टोर रूप में तब्दील कर दिया है या ऐसे ही छोटे-छोटे कुछ परिवर्तन अपनी सुविधा के हिसाब से किए हैं, जोकि नक्शे से मेल नहीं खाते, इसलिए यह कार्यवाही की गई, तो जानकार यह सहज ही प्रश्न उठा कि मुंबई में कौन सा ऐसा घर है जिसमें कि शत प्रतिशत नक्शे के हिसाब से काम हुआ है, एक ईंट भी इधर से उधर नहीं लगाई गई। क्या स्वयं मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ये दावा कर सकते हैं कि उनका परंपरागत घर ''मातोश्री'' में जो कुछ भी निर्माण कार्य है, वह मुंबई महानगर पालिका में जमा कराए गए नक्शे के हिसाब से ही है। उदाहरण के लिए कंगना का घर या सीएम उद्धव का घर ही क्यों आप यहां के किसी भी घर को ले लीजिए, शायद कोई घर आपको नियमानुसार बना मिल जाए तो बड़ी बात होगी। इसका मतलब है कि बीएमसी में कार्यरत लोग एवं अधिकारियों के भी निजि निवास में कुछ न कुछ फेर बदल समय के साथ किया गया है, जिसकी सूचना उन्होंने अब तक मुंबई महानगर पालिका को नहीं दी है। तो क्या पूरी मुंबई के हर घर पर मुंबई महानगर पालिका कार्यवाही करेगी?
कुछ देर के लिए मातोश्री को भूल भी जाएं तो यहां यह जिक्र जरूर आएगा जो उद्धव ठाकरे के अपने नए भवन के निर्माण से जुड़ा है, बांद्रा ईस्ट की जिस भूमि पर मातोश्री-2 बिल्डिंग खड़ी है, उस भूमि की वास्तविक कीमत जो हो, लेकिन इसके इतर उसे 11.6 करोड़ में खरीदा गया है। यहां बनी आठ मंजिला इमारत में कई ट्रिप्लेक्स अपार्टमेंट्स बनाये गये हैं। भूमि का क्षेत्रफल दस हजार स्क्वेयर फीट से ज्यादा है जिसमें बेसमेंट, स्टिल्ट और आठ ऊपरी फ्लोर बनाये गये हैं। वस्तुत: यहां कंगना के कार्यालय को तोड़ देने के बाद ये बड़ा सवाल उठाया जा सकता है कि जिस भूमि पर मातोश्री-2 बिल्डिंग बनी है, वह पूरी तरह से वैध भूमि है? इसका नक्शा और इसका निर्माण कार्य भी पूरी तरह से वैध नियमों को ध्यान रखते हुए किया गया है? क्या वह उसकी वास्तविक कीमत पर ही खरीदी गई या कम कीमत पर खरीदकर बीएमसी को नुकसान पहुंचाया गया है? प्रश्न यह है कि कंगना के घर को तोड़ने वाली बीएमसी में आज इतनी हिम्मत है क्या, कि वह इस भूमि की भी जांच कर पाए जो वर्तमान मुख्यमंत्री का अपना है ?
यहां कंगना के द्वारा शिवसेना प्रमुख को जो चुनौतीपूर्ण तरीके से ललकारा जा रहा है 'उद्धव ठाकरे तुझे क्या लगता है, तूने फिल्म माफिया के साथ मिलकर मेरा घर तोड़ कर मुझसे बहुत बड़ा बदला लिया है. आज मेरा घर टूटा है, कल तेरा घमंड टूटेगा, ये वक्त का पहिया है, याद रखना, हमेशा एक जैसा नहीं रहता और मुझे लगता है तुमने मुझ पर बहुत बड़ा अहसान किया है' यह शब्द पढ़कर सीधे तौर पर समझा जा सकता है कि अपना घर टूटने से कंगना कितनी आहत हुई है। दूसरी ओर यह भी सच है कि शिवसेना के साढ़े पांच दशक के राजनीतिक इतिहास में पहली बार ठाकरे परिवार को मुंबई में सिनेमा स्टार से कोई चुनौती दी गई है, फिर यह भी पहली बार ही है कि शिवसेना के अंदाज में ही उद्धव ठाकरे पर जवाबी हमले कंगना और उसके चाहनेवालों की ओर से किए जा रहे हैं।
वस्तुत: कहना होगा कि सत्ता का मनमाना इस्तेमाल कितना विकराल रूप धारण कर सकता है, इसका ताजा और घिनौना प्रमाण है यह । कंगना के घर में यह तोड़फोड़ सिर्फ इसीलिए की गई, क्योंकि उनके कुछ बयान महाराष्ट्र सरकार को रास नहीं आए। शुरूआत में देखें तो कंगना जिस मामले को लेकर चर्चा में आईं, वह अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत का है। यह एक तथ्य है कि इस मामले की जांच भी सस्ती राजनीति से अब तक प्रभावित दिखी है । लेकिन कंगना का इस मुद्दे पर बोलना समय के साथ उनके लिए इतना घातक सिद्ध होगा और पूरी शिवसेना ही उसके पीछे पड़ जाएगी, यह तो कंगना को छोड़िए किसी ने सोचा तक नहीं था। आज कंगना ने शिवसेना के हर सवाल पर सख्त लहजे में जवाब दिया है. कंगना कहती है 'मैं रानी लक्ष्मीबाई के पद चिन्हों पर चलूंगी. ना डरूंगी, ना झुकूंगी. गलत के खिलाफ मुखर होकर आवाज उठाती रहूंगी.' इससे साफ जाहिर है कि कंगना और शिवसेना के बीच सारी जंग फिलहाल खत्म होने वाली नहीं है।
अच्छा हो कि शिवसेना अपना हठ छोड़े, संजय राउत जैसे नेता सांसद होकर भी जो अमर्यादित भाषा का उपयोग करते हैं या अन्य जो भी इस तरह की भाषा अपनाते हैं उन्हें भी सोचना चाहिए कि वे इससे अपनी ही पार्टी का नुकसान कर रहे हैं, अभी एक कंगना के स्वर बाहर निकले हैं, ऐसा न हो कि कई कंगनाएं इस तरह की अर्मादित भाषा के विरोध में सड़कों पर उतर आएं। अवैध निर्माण के खिलाफ बीएमसी या सरकारों को कार्यवाही करनी चाहिए, इससे किसी को परहेज नहीं, लेकिन इसका मतलब यह कदापि नहीं कि वह अपने विरोधियों पर ही कार्यवाही करे, उसके लिए शासन स्तर पर राजा और रंक एक समान होना चाहिए।
(लेखक फिल्म प्रमाणन एडवाइजरी कमेटी के पूर्व सदस्य एवं न्यूज एजेंसी की पत्रकारिता से जुड़े हैं।)