जयंती विशेष : वर्तमान सरकार पर पंडित दीनदयाल उपाध्याय का विचार प्रतिबिंब
डॉ. प्रेरणा चतुर्वेदी
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ निष्काम कर्म आंदोलन है। जिसके संगठन का आधार सक्षम, स्थाई, आत्मनिर्भर तथा कालजयी राष्ट्र है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एक सशक्त स्वयंसेवक, कार्यकर्ता, प्रचारक, विचारक, लेखक, चिंतक, राजनीति में मूल्यों के प्रतिपादक (25 सितंबर 1916-11 फरवरी 1967) रहे हैं। जनसंघ के संस्थापकों में से एक थे -पंडित दीनदयाल उपाध्याय। जनसंघ के संस्थापकों का राष्ट्र के प्रति जो समर्पण भाव था। वही वर्तमान सरकार का भी है। आज भारत 'राष्ट्र प्रथम' की भावना से आगे बढ़ रहा है । सन 1965 में भारत-पाक युद्ध के दौरान देश को आत्मरक्षार्थ हथियारों के लिए विदेशों पर निर्भर रहना पड़ता था। उस समय पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने कहा था कि -'हमें एक ऐसे भारत का निर्माण करने की आवश्यकता है, जो न केवल कृषि में आत्मनिर्भर हो, बल्कि रक्षा और हथियार निर्माण में भी आत्मनिर्भर हो।
आज यह देखा जा सकता है कि- वर्तमान समय में भारत में डिफेंस कॉरिडोर बन रहे हैं, भारत में हथियार बनाने में आत्मनिर्भर हो रहा है,तेज जैसे लड़ाकू विमान बन रहे हैं। 'राजनीति में संस्कृति के दूत' पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने अपने व्यक्तित्व से स्पष्ट किया कि- राजनीति में सामाजिक जीवन में कैसा होना चाहिए..?
भारतीय संस्कृति के अनुरूप लोकतंत्र और विकास ही देश में सुख समृद्धि जा सकता है। पाश्चात्य विकासात्मक ढांचा निश्चित ही भारतीय अवधारणा की नींव को कमजोर करेगा। इसलिए पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने भारतीय विकासात्मक ढांचे को अपनाने पर बल दिया था। 'हर हाथ को काम' का संदेश देने वाले पंडित दीनदयाल उपाध्याय के आदर्शों और सुझावों के अनुरूप ही वर्तमान सरकार देश के गरीब बेरोजगारों को रोजगार उपलब्ध कराने हेतु उन्हें कौशलपूर्ण कर रही है।
इसके लिए कौशल प्रशिक्षण योजनाओं के द्वारा और अकुशलों को कुशल श्रमिक बनाया जा रहा है। जिससे वे अपना भविष्य सुधारने के साथ ही देश के विकास में महत्वपूर्ण योगदान कर सकें। देश में स्वदेशी आधारित सामाजिक -आर्थिक चिंतन के सर्वश्रेष्ठ चिंतक पंडित दीनदयाल उपाध्याय थे। उनमें स्वदेशी चिंतन नैसर्गिक था। भारतीय चित्ति, जनमानस और भारतीय संस्कृति के उत्थान हेतु पंडित दीनदयाल उपाध्याय सदैव अग्रसर रहे। पंडित दीनदयाल का प्रिय शब्द 'अंत्योदय' था।अंत्योदय यानि 'अंतिम व्यक्ति का उदय'।
उन्होंने कहा था कि -जब तक समाज में अंतिम पंक्ति में खड़े व्यक्ति का उदय नहीं होगा ,तब तक भारत का उदय संभव नहीं है। राष्ट्रश्रम' को 'राष्ट्रधर्म' मानने वाले पंडित दीनदयाल उपाध्याय का मानना था कि -सरकार की प्रत्येक योजनाएं नगरोंन्मुखी नहीं गांवन्मुखी होनी चाहिए ।वर्तमान सरकार ने पंडित दीनदयाल उपाध्याय के 'अंत्योदय' शब्द को अपनी गरीबोंन्मुखी योजनाओं के द्वारा साकार किया है ।
'जन धन योजना' ,'शौचालय योजना', 'प्रधानमंत्री आवास योजना', 'मुद्रा योजना', 'स्वच्छता अभियान', असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों हेतु 'अटल पेंशन योजना ','किसान सम्मान निधि', आदि के द्वारा आज समाज के अंतिम व्यक्ति के जीवन में नया प्रभात आ चुका है ।