लखनऊ। 30 साल के एक मुस्लिम युवक ने जब ये बात मुझसे कही तो मैं थोड़ा चौंक गया। इसी मंगलवार को मुंबई में परेल से छत्रपति शिवाजी महाराज हवाई अड्डा जाने के लिए मैंने टैक्सी मँगाई थी। चूँकि उबर की ये टैक्सी मेरे बेटे ने बुक की थी इसलिए मुझे चालक का नाम नहीं पता था। मुझे टैक्सी चालकों से गपशप करना अच्छा लगता है। इस दौरान अक्सर जिन्दगी की ऐसी तसवीरें देखने को मिल जाती हैं जिनसे हम अन्यथा वंचित रहते हैं। इसीलिए बातचीत शुरू करने के लिए आदतन मैंने चालक से नाम पूछा था। उसने बड़े नम्र और मीठे लहजे में कहा था, 'समीर सर। मुंबई में बेहद सधी और साफ हिंदी बोलते देख मुझे लगा कि वो उत्तर प्रदेश से है। दो यूपी वाले मिलें और राजनीति की बातें न हो ऐसा कैसे हो सकता है?
बात आगे बढ़ी तो सहज ही उत्तर प्रदेश के चुनाव का जिक भी होना ही था। मैंने उससे कहा, 'इस बार अखिलेश और योगी में मुकाबला कड़ा दिखाई देता है। समीर ने सहजता से कहा, 'आपको मुकाबला कितना भी कड़ा दिखाई देता हो, योगी ही जीतेंगे। मैंने पूँछा, 'क्यों ?Óसमीर ने जबाव दिया, 'अयोध्या का टंटा जिस आसानी के साथ उन्होंने निपटाया है, और किसी मुख्यमंत्री के बूते की बात नहीं थी। नहीं तो ये यूँ ही लटकता रहता। उसकी बातों से मुझे लगा कि वह कोई योगी 'भक्त या पुश्तैनी भाजपा समर्थक है। मैं उसकी राजनैतिक प्रतिबद्धता को लेकर मन ही मन में अनुमान लगा ही रहा था कि समीर ने खुद ही ऐलान किया कि वह मुसलमान होते हुए भी वे ये बात कह रहा है। इस बात पर मेरी उत्सुकता थोड़ी और बढ़ गई। उसने कहा कि उसका पूरा नाम है समीर मोहमद।
उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले की रानीगंज तहसील के सिंदौड़ा गाँव के रहने वाले समीर मोहमद मुंबई में टैक्सी चलाते हैं। अभी भी गाँव में भी उनका वोट है और ग्राम प्रधान के पिछले चुनाव में वे वहाँ वोट डालकर आए थे। गाँव आते-जाते रहते हैं। उनका पूरा परिवार अभी भी वहीं हैं। उन्होंने बताया कि परिवार में उनके माता पिता, दो बहनें, तीन भाई, पत्नी और चार साल की प्यारी बेटी शमा है। उनके परिवार के पास गाँव में भी टैक्सी है, जिसे वे जब वहाँ होते हैं तो खुद चलाते हैं। नहीं तो उनके भाईबंद उसटैक्सी को चलाते हैं। प्रतापगढ़ से सुल्तानपुर होकर अयोध्या कोई 110 किलोमीटर की दूरी पर है। कोई डेढ़ दो घंटे में आप वहाँ पहुँच सकते है। उन्होंने बताया कि सवारियों को लेकर उनका अयोध्या आना जाना लगा ही रहता है। मेरे मन में स्वाभाविक सवाल उठा कि राम मंदिर मसला हल होने से आखिर अयोध्या के आसपास रहने वाले एक मुसलमान युवक को भला क्या फायदा हो सकता है? इसलिए सीधे ही मैंने ये सवाल पूछ लिया।
समीर ने मुझे समझाया कि जब वे पहले प्रतापगढ़ से अयोध्या टैक्सी लेकर जाते थे तो हिंदू मुसलमानों के बीच में एक अनकहा मगर स्पष्ट खिंचाव और तनाव रहता था। मुसलमान डरते थे कि कल ना जाने क्या हो? और हिंदू खीजते थे कि उनका मंदिर नहीं बन रहा। दशकों से बस इसके बहाने राजनीति का खेल हो रहा था।उन्होंने कहा, क्योंकि अब इस मुश्किल मसले का समाधान निकल गया है तो लंबे समय से दोनों के बीच जड़ जमाए बैठा का वो खिंचाव भी दूर हो गया है। मामला सही तरीके से सुलट गया है और दोनों (समुदाय) ही आगे बढ़ गये हैं।मैं सोचने लगा कि जाने अनजाने में समीर मोहमद एक बड़ी बात कह गए हैं।
उत्तरप्रदेश की राजनीति को सिर्फ खाँचों में बाँटकर रात दिन उसके विश्लेषण में लगे विशेषज्ञ इसे नहीं समझ पाते। असल बात है कि आम आदमी का मन हमेशा के लिए किसी संघर्ष, विवाद या झगड़े में नहीं पड़ा रहना चाहता। वह तो पैदा हुए तनावों को निपटा कर अपनी रोजमर्रा की जि़न्दगी में आगे बढऩा चाहता है। इसलिए चाहे निजी जिंदगी हो या फिर सामाजिक जीवन, उलझी डोरों को सुलझाने वालों को हमेशा समाज में आदर और समान की नजरों से देखा जाता है। हमारे साहित्य के वांग्मय में ही नहीं, ग्रामीण बोलचाल में भी पंच के ओहदे को इसीलिए मान दिया जाता है। समीर के मुताबिक मोदी/योगी की जोड़ी ने देश के इस जटिलतम विवाद को गति, सहजता और सुगमता से समाधान की और बढ़ाया है। जिस सरलता से समीर मोहमद ने इसका विश्लेषण किया उसे इस तरह से मैंने कभी देख ही नहीं पाया था। राम मंदिर के मुद्दे पर शायद इसी नाते हमारा मीडिया, राजनेता, बुद्धिजीवी वर्ग और विश्लेषक एकांगी होकर सोचते रहे हैं। एक साधारण से दिखने वाले एक टैक्सी चालक ने मुझे एक नया नज़रिया देकर उस दिन एक गहरा सबक सिखा दिया।
समीर मोहमद ने एक पते की बात और कही। उन्होंने बताया कि उनका गाँव एक हिंदू बहुल गाँव है। उसमें हर जात बिरादरी के लोग रहते हैं। लेकिन कई साल से गाँव की प्रधानी एक मुसलमान के हाथ में है। उसने कहा कि जिस तरह गाँव में बाकी सारे लोग सगीर अहमद को वोट देकर ग्राम प्रधान बनाते हैं इसी तरह प्रदेश में मुसलमान भी योगी को वोट देंगे, इसमें हैरानी की बात क्यों होनी चाहिए? समीर के तर्क में वाकई दम था। फिर भी मैंने उसे आगे कुरेदते हुए पूछा, 'योगी और भाजपा को तुम अकेले ही समर्थन की बात कर रहे हो या फिर तुहारे बाकी कोई साथी भी ऐसी बात कहते हैं? समीर का जवाब था कि उनका पूरा कुनबा एक साथ ही चलता है। उनके कुनबे और बिरादरी के लोगों को भाजपा और योगी से कोई मलाल नहीं है।
असल बात तो ये है कि 2014 के बाद से प्रदेश के मतदाताओं का व्यवहार इस ओर साफ इशारा करता आ रहा है। जिसमें खासकर युवा वर्ग का मतदाता सिर्फ जात, बिरादरी और मजहब के आधार पर वोट नहीं डाल रहा। जरूरत उसके इस रुझान को साफ चश्मे से देखने भर की ही है। एक बात और, इसी कालावधि में डिजिटल और सोशल मीडिया का असर भी अत्यंत प्रभावकारी हो गया है। जिसने संवाद में बिचौलियों की भूमिका को काफी सीमित कर दिया है। नए माध्यमों से जानकारी लेने वाले अब सीधे बात पहुँचा भी रहे हैं और ग्रहण भी कर रहे हैं। ये लोग अब पुराने वैचारिक जंजालों, पूर्वाग्रहों और राजनैतिक विचारों के बंदी नहीं हैं। उनका राजनीतिक व्यवहार एक बड़ी हद तक 'उन्हें आज या मिला और 'किसी ने उनके लिए अभी या किया इससे संचालित हो रहा हैं न कि पुरानी वैचारिक गठरियों से। समीर की बातों में इसी सोच की झलक मुझे मिली। मैंने समीर से कहा कि लोग तो अखिलेश यादव और योगी के बीच कड़ी टक्कर बता रहे हैं। उसका कहना था कि कोई कैसी भी टकर बताए, योगी जैसा मुख्यमंत्री मिलना मुश्किल है। मैंने जब उससे इसका मतलब पूछा तो उसने कहा, 'देखिए साहब हमारे राज्य में तो शासन धमक से ही चलता है। अगर अफसरों पर कड़ाई न करो तो राज चल ही नहीं सकता।
योगी कि धमक ही अलग है। वो लगते हैं कि वाकई धाकड़ मुख्यमंत्री हैं। उसने कहा कि उसे अच्छा लगता है कि योगी मुँह देखे का टीका नहीं करते। वो हरेक के मुँह पर उसके जैसी बात नहीं करते बल्कि अपने तरह से जो बात सही लगती है उसे करते हैं। वे ऐसा करते ही नहीं उसपर कड़ाई से अमल भी करवा लेते हैं। समीर कि बातें दरअसल बहुत दिलचस्प होने के साथ साथ उन बहुत सी प्रचलित धारणाओं को भी तोड़ रहीं थीं जो असर टीवी, अखबार और सोशल मीडिया पर चल रहीं अनर्गल बहसों ने हमारे मन में बिठा दीं हैं। ये कथित विशेषज्ञ राजनीति की चादर को बस सफेद या काले रंग में पोतना चाहते हैं। जबकि राजनीति और जीवन तो अनेक रंगों से भरा एक इंद्रधनुष है। उसके पटल में अनेक रंगों और भावों की अनगिनत छटाएँ बिखरी हुईं हैं। यही नए रंग उस दिन मुझे समीर ने दिखाए। चलते चलते समीर ने अपनी मीठी सी बेबाकी के अंदाज़ में दो भविष्यवाणियाँ भी की। पहली ये कि अगर योगी को 5 साल मिल गए तो 'हमारे यूपी में भी गुजरात की तरह तरकी हो जाएगी। और दूसरी, कि अगर ऐसा हुआ तो फिर योगी के लिए दिल्ली बहुत दूर नहीं रहेगी। अब समीर मोहमद की भविष्यवाणी सही होगी कि नहीं ये तो वत ही बताएगा मगर उनकी बातें मुझे बेहद तर्कसंगत, समझदारी वाली और दिलचस्प लगीं। मैंने बाकायदा उनकी इजाजत से उनकी फोटो भी ली। उन्हीं की मजऱ्ी से ये बाते भीं साझा कर रहा हूँ।