बिहार में भाजपा पर दबाव बनाने की हालत में नहीं है जद (यू)

सीट बंटवारे पर नहीं चलेगी जद (यू) की अकेली पसंद

Update: 2020-08-27 01:00 GMT

पटना। बिहार में भाजपा-जद (यू) के बीच इस बार सीट समझौता आसान नहीं रहेगा। कारण, जद (यू) भाजपा को ज्यादातर वह सीटें देना चाहता है, जहां राजद जीती थी। इसके अलावा पिछले चुनाव में जिन सीटों पर जद (यू) को भाजपा के हाथों हार का सामना करना पड़ा है, उन सीटों को भी वह हासिल करना चाहती है। लेकिन अब वह स्थितियां नहीं हैं, जब जद (यू) के दबाव में आकर भाजपा उसकी पसंद की सीट छोड़ देगी।

बिहार में विधानसभा चुनाव की आहट के साथ सीटों को लेकर बातचीत शुरू हो गई है। हालांकि सीटों पर अंतिम निर्णय मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, भाजपा अध्यक्ष जे.पी.नड्डा और केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह लेंगे, लेकिन राज्य के स्तर पर यह कवायद होने लगी है। सूत्र बताते हैं कि जद (यू) की तरफ से भाजपा को यह इशारा दिया गया है कि वह पहले के गठबंधन की तरह जिन सीटों पर चुनाव लड़ती रही है, उन्हीं सीटों पर फिर दावा ठोकेगी। जद (यू) चाहती है कि भाजपा को राय में वह सीटें दी जाये जहां राजद और कांग्रेस से उसे मुकाबला करना पड़े। परन्तु भाजपा के एक नेता ने साफ कहा है कि अब वह स्थिति नहीं है। जद (यू) को समझौता में थोड़ा पीछे हटना पड़ेगा।

उनका कहना है कि पिछला विधानसभा चुनाव भाजपा अकेले लड़ी थी। उस चुनाव में कई ऐसी सीटें हैं जहां जद (यू) को भाजपा के हाथों हार मिली थी। इस लिहाज से उन जीती हुई सीटों पर भाजपा का दावा स्वाभाविक है। जिन सीटों पर जद (यू) जीती थी, वह उसे मिलेंगी। यद्यपि जद (यू) के तेवर इस बार पहले जैसे नहीं हैं। पार्टी के नेता व राज्य में मंत्री महेश्वर हजारी कहते हैं कि सीटों को लेकर राजग में कहीं कोई परेशानी नहीं है। जब साथ मिलकर चुनाव लड़ रहे हैं तो एक दो सीटों से कोई फर्क नहीं पड़ेगा।

इस बार एक पेंच और फंस सकता है। हाल में राजद गठबंधन छोड़कर आए जीतनराम मांझी राजग का हिस्सा बन सकते हैं। उनकी तरफ से भी जो सीटें मांगी जाएंगी, वह जद (यू) के हिस्से से जा सकती हैं. क्योंकि रामविलास पासवान की पार्टी लोजपा को भाजपा अपने हिस्से से सीट देती है, इसलिए जद (यू) पर दबाव होगा कि वह मांझी को अपने हिस्से से सीट दें। यह तय है कि इस बार जद (यू)-भाजपा मिलकर चुनाव लड़ेंगे। भाजपा का एक धड़ा अकेले चुनाव लडऩे के पक्ष में है। उस धड़े का मत है कि बिहार में पिछले चुनाव से अलग स्थिति है। राज्य की जनता राजद, जद (यू) दोनों के नेतृत्व से उकता गई है। भाजपा अकेले लड़ी तो उसका मुख्यमंत्री होगा। परन्तु इसकी संभावना नहीं है। भाजपा मिलकर लड़ेगी, लेकिन इस बार भाजपा सीट बंटवारे में पहले जैसे दबाव में नहीं रहेगी। मतलब साफ है कि पिछले चुनाव की तुलना में इस बार चुनाव के परिदृश्य बदलने के साथ सीट बंटवारे को लेकर किसी दल को घाटा उठाना पड़ेगा तो किसी को इसका लाभ भी मिल सकता है।

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