पटना। अपने बयान से बिहार की राजनीतिक में बढ़ती सरगर्मी को देखते हुए राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (रालोसपा) के अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा ने सोमवार को सफाई दी। उन्होंने कहा कि मेरे बयान का अर्थ सामाजिक एकता से था। किसी भी राजनीतिक दल के साथ किसी भी जाति समुदाय की पहचान न करें।
शनिवार को बीपी मंडल की 100वीं जयंती के मौके पर उपेंद्र कुशवाहा ने कहा था कि यदुवंशी का दूध और कुशवंशी का चावल मिल जाए तो उत्तम खीर बन सकती है। यहां बड़ी संख्या में यदुवंशी समाज के लोग जुटे हैं। यदुवंशियों का दूध और कुशवंशियों का चावल मिल जाए तो खीर बनने में देर नहीं लगेगी। लेकिन यह खीर तब तक स्वादिष्ट नहीं होगी, जब तक इसमें छोटी जाति और दबे-कुचले समाज का पंचमेवा नहीं पड़ेगा। यही सामाजिक न्याय की असली परिभाषा है।
उपेंद्र कुशवाहा के इस बयान के बाद प्रतिपक्ष के नेता तेजस्वी ने ट्वीट कर कहा था, 'नि:संदेह उपेंद्र जी, स्वादिष्ट और पौष्टिक खीर श्रमशील लोगों की जरूरत है। पंचमेवा के स्वास्थवर्धक गुण ना केवल शरीर बल्कि स्वस्थ समतामूलक समाज के निर्माण में भी उर्जा देता है। प्रेमभाव से बनाई गई खीर में पौष्टकिता स्वाद और उर्जा की भरपूर मात्रा होती है। यह एक अच्छा व्यंजन है।' सियासी हलकों में इसे राष्ट्रीय लोक समता पार्टी और राष्ट्रीय जनता दल के गठबंधन को लेकर कयास लगाये जाने लगे थे।