लोकतंत्र के सिद्धांतों के प्रति सदैव निष्ठावान रहें : राष्ट्रपति कोविंद
अहमदाबाद। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने यह बहुत प्रसन्नता का विषय है कि All India Presiding Officers' Conference का यह सम्मेलन, सरदार वल्लभभाई पटेल की प्रतिमा के सान्निध्य में हो रहा है। उनकी यह प्रतिमा, विश्व की सबसे ऊंची प्रतिमा है। यह हम सभी देशवासियों के लिए, गौरव की बात है।
राष्ट्रपति की मुख्य बातें
>> भारत में आज से लगभग ढाई हजार वर्ष पहले से, 'गण' तथा 'संघ' जैसे स्वतंत्र शब्द प्रयोग में रहे हैं। हमारे प्राचीन ग्रंथों में 'गणतंत्र' का उल्लेख, 'जनतंत्र' तथा 'गणराज्य' के आधुनिक संदर्भों में किया गया है। हमारे यहां वैशाली, कपिलवस्तु और मिथिला जैसे अनेक गणतंत्र अस्तित्व में थे।
>> संसदीय लोकतंत्र में सत्ता पक्ष के साथ-साथ प्रतिपक्ष की भी महत्वपूर्ण भूमिका होती है, इसलिए इन दोनों में सामंजस्य, सहयोग एवं सार्थक विचार-विमर्श आवश्यक है। जन-कल्याण के व्यापक हित में, सामंजस्य और समन्वय का मार्ग अपनाया जाना चाहिए।
>> लोकतांत्रिक व्यवस्था में, 'वाद' को 'विवाद' न बनने देने के लिए 'संवाद' का माध्यम ही सबसे अच्छा माध्यम होता है। उन्होंने कहा कि मेरा मानना है कि देश की जनता अपने जन-प्रतिनिधियों से संसदीय मर्यादाओं के पालन की अपेक्षा करती है। इसलिए, कभी-कभी जब जन-प्रतिनिधियों द्वारा संसद या विधान सभा में अमर्यादित भाषा का प्रयोग या अमर्यादित आचरण किया जाता है तो जनता को बहुत पीड़ा होती है।
>> पिछले कुछ दशकों में, आम जन-मानस की आशाओं, आकांक्षाओं और जागरूकता में लगातार बढ़ोतरी हुई है। इसलिए संसद एवं विधानमंडलों की भूमिका व जिम्मेदारियां और भी बढ़ गई हैं।
>> सदन के अध्यक्ष का आसन, उनकी गरिमा और दायित्व-दोनों का प्रतीक होता है, जहां बैठकर वह, पूरी निष्पक्षता और न्याय-भावना से कार्य करते हैं।
>> निष्पक्षता, समदर्शिता और न्यायप्रियता का आसन है और आप सभी पीठासीन अधिकारियों से अपेक्षा की जाती है कि आपका व्यवहार भी, इन्हीं आदर्शों से प्रेरित होना चाहिए।
उन्होंने कहा कि यह एक सुखद संयोग है कि भारत की पहली लोकसभा के स्पीकर गणेश वासुदेव मावलंकर का जन्म गुजरात में ही हुआ था। भारत की संसदीय प्रक्रिया की सफलता में श्री मावलंकर के योगदान के लिए हम, श्रद्धा व आदर से उनका स्मरण करते हैं। मावलंकर जी का मानना था कि संसद और राज्यों के विधानमंडल जन-हित की सिद्धि के सर्वोच्च मंच हैं। इसलिए सभी सदस्यों को अपने राजनीतिक मतभेद भुलाते हुए आम सहमति से जन-हित का उद्देश्य प्राप्त करना चाहिए। आज देवोत्थान एकादशी का पावन दिवस है। बोलचाल की भाषा में देश के अनेक हिस्सों में इसे 'देव-उठनी' एकादशी भी कहते हैं। मान्यता है कि आज के दिन से सामाजिक गतिविधियों में सक्रियता बढ़ती है तथा मांगलिक कार्यों का शुभारंभ किया जाता है। मैं आप सभी को इस शुभ अवसर की बधाई देता हूं।
राज्यसभा के सभापति और उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू भी इस कार्यक्रम में भाग लेने के लिए मंगलवार देर रात पहुंचे। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी 26 नवम्बर को समापन समारोह को वर्चुअल माध्यम से संबोधित करेंगे। यह अखिल भारतीय पीठासीन अधिकारी सम्मेलन का शताब्दी वर्ष है। 26 नवम्बर को ही संविधान दिवस भी मनाया जाएगा। गुरुवार की सुबह सरदार पटेल की प्रतिमा के पास संविधान का मुख्य भाग पढ़ा जाएगा।