नई दिल्ली। देश में आजादी से पहले बनाई गई सेना की छावनियों, सैन्य प्रतिष्ठानों और पुराने (विंटेज) आवासों को फिर नए सिरे से बसाया जायेगा। ऐसा इसलिए किया जा रहा है क्योंकि स्वतंत्रता से पूर्व इन्हें आबादी से दूर बसाया गया था लेकिन इन 70 सालों में यह सभी शहर की आबादी के बीच आ गए हैं, इसलिए अब इन्हें फिर नागरिक आबादी से दूर करने की योजना बनाई गई है। शहर से दूर नए सिरे से बसाए जाने में सबसे बड़ी समस्या जमीन को लेकर आ रही है। भारतीय सेना ने पूरी योजना में पारदर्शिता रखने और आधारभूत ढांचे के प्रबंधन के लिए एक सॉफ्टवेयर बनाया है जिसे सेना प्रमुख मनोज मुकुंद नरवणे ने लॉन्च किया है।
भारत में सेना के 64 छावनी बोर्ड हैं जिन्हें चार हिस्सों में बांटा गया है। पहली श्रेणी में पचास हजार से अधिक जनसंख्या, दूसरी श्रेणी में दस हजार से अधिक लेकिन पचास हजार से कम, तीसरी श्रेणी में दो हजार पांच सौ से अधिक लेकिन दस हजार से कम और चौथी श्रेणी में दो हजार पांच सौ तक की आबादी वाली छावनियों को रखा गया है। छावनी बोर्ड सैन्य क्षेत्र में सार्वजनिक स्वास्थ्य, जल आपूर्ति, स्वच्छता, प्राथमिक शिक्षा और सड़क प्रकाश व्यवस्था आदि बुनियादी जरूरतों को पूरा करते हैं। चूंकि सारे संसाधन भारत सरकार के स्वामित्व में हैं, इसलिए यह कोई कर नहीं लगा सकता है। भारत सरकार इन्हें वित्तीय सहायता प्रदान करती है।
शहरी आबादी से दूर बसाई जाएंगीं सैन्य छावनियां
देश के 64 छावनी बोर्ड की संख्या राज्यवार देखें तो हिमाचल में 07, जम्मू-कश्मीर और तमिलनाडु में दो-दो, दिल्ली, हरियाणा, बिहार, झारखण्ड, मेघालय, ओडिशा, कर्नाटक, केरल, तेलंगाना और गुजरात में एक-एक, पंजाब और राजस्थान में तीन-तीन, उत्तराखंड में 09, मध्य प्रदेश में 05, उत्तर प्रदेश में 13, महाराष्ट्र में 07, पश्चिम बंगाल में 04 सैन्य छावनियां हैं। देश की आजादी से पहले इन सभी सैन्य छावनियों के साथ सैन्य प्रतिष्ठान भी शहर से दूर बसाए गए थे ताकि सेना की गतिविधियां शहरी आबादी से दूर हों। इन 70 सालों में शहरों की आबादी बढ़ती गई और नगर पालिका क्षेत्रों का विस्तार होता चला गया लेकिन सैन्य छावनियां अपनी जगह ही स्थापित रहीं। इसका नतीजा यह हुआ कि मौजूदा समय में सेना की छावनियां, सैन्य प्रतिष्ठान और पुराने आवास शहरी आबादी के बीच में आ गए हैं।
सेना के प्रवक्ता ने बताया कि अब सरकार ने सेना की छावनियों, सैन्य प्रतिष्ठानों और पुराने (विंटेज) आवासों को फिर से नागरिक आबादी से दूर स्थापित करने की योजना बनाई है। सेना का आधारभूत ढांचा फिर से खड़ा करना आसान नहीं है क्योंकि शहर से दूर नए सिरे से बसाए जाने में सबसे बड़ी समस्या जमीन को लेकर आ रही है। यह प्रक्रिया बोझिल और समय लेने वाली है जिसमें कई एजेंसियां शामिल हैं। वर्तमान में आधारभूत ढांचे के विकास और प्रबंधन की दिशा में भूमि की उपलब्धता, कार्यों की योजना और निगरानी, पर्यावरण संरक्षण और उत्तरदायी तिमाही नीतियों जैसे सभी कार्यों को हाथ से ही किया जाता है, जो न केवल समय लेने वाला है बल्कि अक्षम भी है।
सैन्य कमांडरों के सम्मेलन में शीर्ष अधिकारियों ने की अहम चर्चा
दिल्ली में चार दिन हुई सैन्य कमांडरों के सम्मेलन में इस मुद्दे पर सेना के शीर्ष अधिकारियों के बीच अहम चर्चा हुई जिसके बाद इसलिए इस कार्य को गति देने, सशक्त, पारदर्शी कार्य प्रणाली बनाने के लिए भारतीय सेना ने 'आधारभूत ढ़ांचा प्रबंधन प्रणाली (आईएमएस)' नाम का एक सॉफ्टवेयर की शुरुआत की है। इसे सेना प्रमुख जनरल मनोज मुकुन्द नरवणे ने कमांडर सम्मेलन के दौरान लॉन्च किया है। इस विकसित सॉफ्टवेयर की सहायता से ही सेना की छावनियों, सैन्य प्रतिष्ठानों और पुराने (विंटेज) आवासों को नए सिरे से बसाने का कार्य किया जायेगा।