दिल्ली। देश में कोरोना के मामले हर दिन नए रेकॉर्ड बना रहे हैं। भारत पहले ही दुनिया में सबसे अधिक प्रभावित टॉप टेन देशों की सूची में शामिल हो चुका है। यही स्थिति रही तो अगले कुछ दिनो में देश में कोरोना संक्रमितों की संख्या 2 लाख पार कर सकती है। कुछ लोगों का कहना है कि अब भी देश में पर्याप्त संख्या में जांच नहीं हो रही है। लेकिन क्या पूरी आबादी की कोरोना जांच संभव है?कोरोना के खिलाफ जंग में इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) अग्रिम मोर्चे पर है। इसके डीजी डॉ. बलराम भार्गव का कहना है भारत की आबादी 1.3 अरब है और हर किसी की जांच संभव नहीं है। इसलिए हम केवल उन्हीं मरीजों की जांच कर रहे हैं जिनमें लक्षण दिख रहे हैं।
उन्होंने कहा कि आईसीएमआर तीन महीने से लगातार चौबीसों घंटे कोरोना जांच की सुविधा देने के लिए काम कर रहा है। हम देश में कोरोना से होने वाली मौतों को रोकने में सफल रहे हैं। देश में कोरोना की मृत्यु दर बहुत कम है। इसके कई कारण हो सकते हैं लेकिन इसका एक पहलू यह भी है कि हम जल्दी से जल्दी संक्रमण की जांच कर रहे हैं। इसकी एक वजह यह भी हो सकती है कि हमारे यहां लोगों में इम्युनिटी अधिक है।
डॉ. भार्गव ने कहा, 'पहले दिन से ही हमारा जोर इस बात पर रहा है कि देश में कोरोना से होने वाली मौतों को कम से कम किया जाए। मेडिकल इन्फ्रास्ट्रक्चर के मामले में हम विकसित देशों का मुकाबला नहीं कर सकते हैं। लेकिन हमें याद रखना चाहिए कि स्वास्थ्य पर हमारा बजट जीडीपी का 0.9 फीसदी है जबकि अमेरिका में यह 19 फीसदी है।'
उन्होंने कहा कि देश में कोरोना के बढ़ते मामलों से निपटने के लिए आईसीएमआर ने ठोस रणनीति बनाई है। देश में अब कोरोना के नमूनों की जांच के लिए 642 लैब हैं। हमारा लक्ष्य है कि इसमें हर राज्य आत्मनिर्भर हो और यह राज्य को तय करना है कि उसे कितनी जांच करनी है। हमने दूरदराज के क्षेत्रों में भी इन्फ्रास्ट्रक्चर बढ़ाया है ताकि जरूरत पड़ने पर टेस्टिंग बढ़ाई जा सके। हमने 18,000 फीट की ऊंचाई पर लेह में भी एक लैब बनाई है। लॉकडाउन के दौरान वहां हवाई रास्ते से मशीनें और उपकरण भेजे गए।
इसके अलावा हम स्थानीय स्तर पर टेस्टिंग किट और रीजेंट बना रहे हैं। जब कोरोना की शुरुआत हुई थी तो हम काफी हद तक विदेशी कंपनियों पर निर्भर थे। स्थानीय विनिर्माताओं ने इसकी लागत कम कर दी है। टेस्टिंग के साथ-साथ हमने ज्यादा बेड, ऑक्सीजन बेड, इंटेंसिव केयर बेड और वेंटिलेटर बेड का भी इंतजाम किया है।
लेकिन क्या देश में हेल्थ इन्फ्रास्ट्रक्टचर में असमानता नहीं है, इस सवाल पर डॉ. भार्गव ने कहा कि मुंबई और अहमदाबाद में कुछ हॉटस्पॉट में बिस्तरों की कमी थी। लेकिन हम राज्य सरकारों के साथ इस समस्या से निपटने पर पूरा जोर लगा रहे हैं। कोरोना के खिलाफ जंग में सब एकजुट हैं। उन्होंने कहा कि कोरोना के मामलों में उतार-चढ़ाव आते रहेंगे लेकिन इसका पूर्वानुमान लगाना मुश्किल है। लेकिन देश में मृत्यु दर कम है।
उन्होंने कहा, 'मैं कोरोना से होने वाली मौतों को लेकर चिंतित हूं। अभी यह 150 से 170 के बीच है जो अन्य देशों की तुलना में कम है। साथ ही संक्रमण को रोकने हम हर स्तर पर प्रयास कर रहे हैं। आप तर्क दे सकते हैं कि ब्रिटेन और अमेरिका ने हर्ड इम्युनिटी विकसित करने के लिए क्या किया। लेकिन लगता है कि यह तरीका कारगर नहीं हो रहा है। हमने भारत में कोरोना के कर्व में ठहराव लाने के बजाय उसे इस तरह छितरा दिया है कि यह लंबी हो सकती है लेकिन ऊंची नहीं। हमने अपने यहां लॉकडाउन के इसके प्रकोप को रोकने की कोशिश की। अब जब हम लॉकडाउन खोल रहे हैं तो लोगों के व्यवहार में बदलाव देखने को मिल रहा है।'
डॉ. भार्गव ने उम्मीद जताई कि हम इम्युनिटी, वैक्सीन और मेडिकेशन के स्तर पर संतुलन कायम करने में सफल होंगे। एच1एन1 ने भी अचानक हलचल पैदा की, लंबे समय तक रहा और फिर अचानक गायब हो गया। पता नहीं कि कोरोना के साथ भी ऐसा होगा या नहीं लेकिन पॉजिटिव होना हमेशा अच्छी बात है।