देश में 40 से अधिक कोरोना वैक्सीन पर चल रहा है काम, लेकिन अगले स्टेज में नहीं पहुंचा है कोई: ICMR
नई दिल्ली। देश और दुनिया में कोरोना वायरस संक्रमण के मामले तेजी से बढ़ते जा रहे हैं। हर किसी को इस वायरस को खत्म करने वाली दवा और वैक्सीन की खोज का का इंतजार है, लेकिन अभी तक इसमें सफलता नहीं मिली है। इंडिया काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च ने कहा है कि भारत भी वैक्सीन बाने की कोशिश में जुटा है, लेकिन अभी तक सफलता नहीं मिली है।
आईसीएमआर की ओर से देश को कोरोना वायरस से जुड़े अपडेट देते हुए डॉ. मनोज मुरहेकर ने कहा, '40 से अधिक वैक्सीन पर काम चल रहा है, लेकिन अभी तक कोई अगले स्टेज में नहीं पहुंचा है। भारत भी इस प्रयास में जुटा हुआ है।' उन्होंने बताया कि देश में अब कोरोना की जांच के लिए 219 लैब हैं। कुल 1.86 लाख टेस्ट हो चुके हैं। पिछले पांच दिन से हर दिन औसतन 15 हजार सैंपल की जांच की जा रही है और इनमें औसतन 584 केस पॉजिटिव पाए गए हैं।
कोरोना वायरस के खात्मे का टीका तैयार करने में दुनिया की सौ से ज्यादा कंपनियां, यूनिवर्सिटी और शोध संस्थान जुट गए हैं। टीका तैयार करने में एक से डेढ़ साल का समय लग सकता है, मगर कुछ संस्थानों ने सितंबर तक पहली वैक्सीन बाजार में लाने का दावा किया है। मशहूर अमेरिकी विषाणु विज्ञानी जॉन कोहेन ने एक इंटरव्यू में कहा है कि यह पहली बार है कि किसी वायरस का टीका तैयार करने की इतनी जल्दी शुरुआत हुई हो। चीन ने 1 जनवरी को अधिकृत तौर पर कोविड-19 का खुलासा किया था और 10 जनवरी को ही इसके जीनोम की संरचना को वैज्ञानिकों ने डिकोड कर लिया। इसे टीका तैयार करने का पहला चरण कहा जाता है।
अमेरिका, चीन, ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन समेत दिग्गज देशों ने इसके लिए अपनी ताकत झोंक दी है। मार्च के पहले हफ्ते में मैसाच्युसेट्स की कंपनी मॉडर्ना ने पहली बार किसी इंसान पर परीक्षण शुरू किया था। चीनी कंपनी सिनोवैक भी इस दौड़ में शामिल है। कोहेन ने कहा कि टीका वायरस को मारने के लिए वायरस के दूसरे रूपों के इस्तेमाल का तरीका है और इसने धरती पर अब तक करोड़ों लोगों की जान बचाई है।
भारत में भी करीब शोध और उच्च शिक्षा संस्थान वैक्सीन विकसित करने में लगे हैं। इसमें पुणे स्थित नेशनल वायरोलॉजी इंस्टीट्यूट, इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च और आईआईटी कानपुर समेत कई शीर्ष संस्थान शामिल हैं। हैदराबाद की कंपनी इंडियन इम्यूनिलॉजिकल्स ने ऑस्ट्रेलिया की ग्रिफिथ यूनिवर्सिटी के साथ मिलकर वैक्सीन तैयार करने के काम में लगी है।
ऑक्सफोर्ड यूनिर्सिटी के शोधकर्ताओं ने सितंबर तक वैक्सीन तैयार करने का दावा किया है। संस्थान की विषाणु विभाग प्रोफेसर सारा गिल्बर्ट ने कहा कि 80 फीसदी उम्मीद है कि यह टीका कारगर साबित होगा। इसका मानवीय परीक्षण 15 दिन में शुरू होगा। संस्थान के मुताबिक, कोविड-19 के 80-90 फीसदी आनुवंशिक कोड सार्स वायरस से मेल खाते हैं, लिहाजा इसका टीका तैयार होने में देर नहीं लगेगी।
बेयलर यूनिवर्सिटी के शोधकर्ता पीटर होट्ज का कहना है कि कोविड-19 का टीका तैयार करने में जल्दबाजी ठीक नहीं है और सारे परीक्षणों को समयबद्ध तरीके और मानकों के साथ पूरा किया जाना चाहिए। क्योंकि सार्स जैसे वायरस के जल्दबाजी में तैयार टीके के प्रयोग के दौरान बीमारी का स्तर और बढ़ गया था। इससे पहले सबसे तेजी से तैयार मम्प्स की वैक्सीन को वायरस का नमूना लेने से लेकर 1967 में दवा के उत्पादन की मंजूरी तक चार साल लगे थे।
किसी वैक्सीन के विकास में तीन अहम चरण होते हैं। इन्हें शोधात्मक, प्री क्लिनिकल और क्लीनिकल नाम दिया गया है। तीन प्रयोगशाला के स्तर पर तीन तरह की टेस्टिंग होती है और उसके बाद तीन चरणों में मानव पर परीक्षण होता है।
- शोधात्मक
जीनोड डिकोड के बाद वायरस के कमजोर कड़ी की पहचान।
- प्री-क्लीनिकल
पशुओं पर टीके का परीक्षण। जानवरों में वायरस के नमूने डालकर देखा जाता है उनके शरीर में वायरस से लड़ने वाले एंटीबॉडी उत्पन्न होते हैं या नहीं।
-क्लीनिकल डेवलपमेंट
वैक्सीन का शीर्ष संस्थाएं परीक्षण करती हैं और दुष्प्रभावों का अध्ययन होता है।
इसके बाद तीन व्यापक स्तरों पर इसका इंसानों पर परीक्षण शुरू होता है। उस देश की और अंतरराष्ट्रीय संस्थानों की निगरानी में हर चरण के नतीजे के मुताबिक गुणवत्ता में सुधार किया जाता है।
-1955 में पोलियो वायरस इसी के निष्क्रिय वायरस से तैयार हुआ। असली पोलियो वायरस के हमला करते ही इसके एंटीबॉडी सक्रिय होकर उसका खात्मा कर देते हैं।
-इसमें वायरस को ही इतना कमजोर कर शरीर में टीके के तौर पर डाला जाता है, ताकि इससे एंटीबॉडी पैदा हों और असली वायरस के हमले को नाकाम कर सकें। मीसल्स, मम्प्स, रुबेला, चिकेनपॉक्स, स्मॉल पॉक्स इसी का उदाहरण है।
-जेनेटिक इंजीनियरिंग वैक्सीन का सबसे उन्नत और कम समय वाला तरीका है, जिसमें वायरस की आनुवांशिक संरचना में बदलाव कर वैक्सीन तैयार होती है।