दिल्ली। प्रस्तावित बिजली (संसोधन) कानून को लेकर एक बार फिर सरकार और विपक्ष के बीच सियासी संग्राम देखने को मिल सकता है। कई राज्यों ने इसे भारत के संघीय ढांचे पर प्रहार और बिजली वितरण के निजीकरण का प्रयास बताया है। कांग्रेस, तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस), द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डीएमके) और वाम दलों ने इसका विरोध किया है। विपक्षी पार्टियों का यह भी कहना है कि यह बिल किसानों और गरीबों के हित में नहीं है।
17 अप्रैल को केंद्र सरकार ने इलेक्ट्रिसिटी एक्ट 2003 में संशोधन के लिए एक मसौदा जारी किया। ड्राफ्ट इलेक्ट्रिसिटी एक्ट (संशोधन) बिल 2020 पर 21 दिन के भीतर हितधारकों से प्रतिक्रिया मांगी गई। इस समयसीमा फिर को बढ़ाकर 2 जून तक कर दिया गया।
इस प्रस्तावित बिल का लक्ष्य एक इलेक्ट्रिसिटी कॉन्ट्रैक्ट इन्फोर्समेंट अथॉरिटी (ईसीईए) का गठन करना है जिसके पास बिजली उत्पादन और बिजली वितरण कंपनियों के बीच विवादों को सुलझाने के लिए सिविल कोर्ट की शक्ति होगी। मौसेदे के मुताबिक, बिजली खरीद, बिक्री से संबंधित कॉन्ट्रैक्ट्स पर फैसले का अधिकार सिर्फ ईसीईए को होगा। तेलंगाना, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ जैसे कई राज्यों का कहना है कि इससे राज्यों के डिस्कॉम और बिजली नियामकों की स्वायत्तता खत्म हो जाएगा।
ड्राफ्ट बिल में यह भी प्रस्ताव है कि ग्राहकों, खासकर किसानों और डोमेस्टिक सेक्टर्स को सब्सिडी का भुगतान डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर (डीबीटी) के जरिए उनके खाते में किया जाए। विपक्षी नेताओं का कहना है कि यह किसानों और गरीब उपभोक्ताओं के हित में नहीं है। यह राज्यों के ऊपर छोड़ दिया जाए कि उन्हें किस तरह भुगतान किया जाएगा।
बिल का लक्ष्य यह भी है कि अक्षय ऊर्जा स्रोत से भी न्यूनतम बिजली खरीद को अनिवार्य किया जाए और इसका पालन नहीं करने पर दंडात्मक कार्रवाई का प्रावधान भी है।
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने सोमवार को केंद्रीय ऊर्जा मंत्री आरके सिंह को खत लिखा। उन्होंने अपील की कि कोविड-19 महामारी को देखते हुए यह कदम अभी ना उठाया जाए और कानून बनाने से पहले राज्यों से सलाह लेनी चाहिए।
उन्होंने लिखा, ''इस बिल को लागू करने से समाज के निचले तबके पर बुरा असर होगा। क्रॉस सब्सिडी भेदभाव करने वाला और किसानों-गरीबों के हित में नहीं है। सिंचाई के लिए किसानों को सब्सिडी पर बिजली नहीं दी गई तो किसानों के सामने संकट आ जाएगा। इससे अनाज उत्पादन पर असर होगा।''
नाम गोपनीय रखने की शर्त पर एक कांग्रेस नेता ने कहा कि महामारी के बाद जब भी इसे संसद में लाया जाएगा, बिल को लटकाने के लिए विपक्षी पार्टियां एक संयुक्त मोर्चा बना सकती हैं। पिछले सप्ताह महाराष्ट्र के ऊर्जा मंत्री नितिन राउत ने कहा कि केंद्र सरकार बिजली उत्पादन, ट्रांसमिशन और वितरण में राज्यों की जिम्मेदारी को रद्द करना चाहती है।
उन्होंने कहा कि संविधान के मुताबिक, ऊर्जा केंद्र और राज्य दोनों की सूची में है। लेकिन प्रस्तावित कानून से पावर सेक्टर से संबंधित मामलों में राज्यों की शक्तियां कमजोर हो जाएंगी और सारी शक्ति केंद्र अपने हाथ में ले लेगा। राउत ने यह भी कहा कि केंद्र सरकार बिजली, उत्पादन, ट्रांसमिशन और वितरण का निजीकरण करने का प्रयास कर रही है।
कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री सिद्दारमैया ने भी राउत के सुर में सुर मिलाया है। डीएमके प्रमुख एमके स्टालिन ने कहा है कि इस बिल को वापस लिया जाए। तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव ने पीएम मोदी को खत लिखकर कहा है कि यह संघीय ढांचे के खिलाफ है। उन्होंने गैर भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों से बिल का मजबूती से विरोध करने की अपील की है।