सीमा पर होनी चाहिए शांति, इसके भंग होने का रिश्तों पर पड़ता है गंभीर असर : विदेश मंत्री

Update: 2020-10-17 14:20 GMT

नई दिल्ली। चीन के साथ सीमा पर तनाव इस वक्त चरम पर है। कई दौर की कूटनीतिक और सैन्य स्तर की बातचीत के बावजूद स्थिति में अभी तक कोई खास बदलाव नहीं आया है। दोनों तरफ हथियारों के साथ फौज खड़ी हैं। ऐसे में चीन के साथ पूर्वी लद्दाख में सीमा विवाद के चलते रिश्तों में जारी तल्खी के बीच विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने इशारों में कहा कि सीमा पर अशांति का सीधा असर संबंधों पर होता है।

विदेश मंत्री ने कहा- "सीमावर्ती इलाकों में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर शांति और स्थिरता होनी चाहिए... अगर यह अशांत होता है तो वास्तव में उसका रिश्तों पर असर होता है और वह हम देख रहे हैं।"

जयशंकर ने वैश्विक संकट के बीच भारत और चीन के उभरने को लेकर कहा- दुनिया के लिए 2008 एक नया मोड़ था, जहां वैश्विक वित्तीय संकट के बीच भारत और चीन का उदय हुआ। हमने दृश्यमान आर्थिक पुनरुत्थान की दुनिया में प्रवेश किया। एक कार्यक्रम के दौरान शनिवार को जयशंकर ने कहा- अफ्रीका के उत्थान में योगदान, मदद और भागीदारी यह हमारे सामरिक हित में है। अगर अफ्रीका वैश्विक धुरियों में से एक बनता है तो यह हमारे लिए बेहतर होगा।

इससे पहले, विदेश मंत्री एस जयशंकर ने शुक्रवार को कहा कि पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर बड़ी संख्या में हथियारों से लैस चीनी सैनिकों की मौजूदगी भारत के समक्ष बहुत गंभीर सुरक्षा चुनौती है। जयशंकर ने कहा कि जून में लद्दाख सेक्टर में भारत-चीन सीमा पर हिंसक झड़पों का बहुत गहरा सार्वजनिक और राजनीतिक प्रभाव रहा है तथा इससे भारत और चीन के बीच रिश्तों में गंभीर रूप से उथल-पुथल की स्थिति बनी है।

एशिया सोसाइटी की ओर से आयोजित ऑनलाइन कार्यक्रम में जयशंकर ने कहा, सीमा के उस हिस्से में आज बड़ी संख्या में सैनिक (पीएलए के) मौजूद हैं, वे हथियारों से लैस हैं तथा यह हमारे समक्ष बहुत ही गंभीर सुरक्षा चुनौती है। पूर्वी लद्दाख की गलवान घाटी में 15 जून को हिंसक झड़प में भारतीय सेना के 20 जवान शहीद हो गए थे जिसके बाद दोनों देशों के बीच तनाव बहुत बढ़ गया था। चीन की पीपल्स लिबरेशन आर्मी के जवान भी हताहत हुए थे लेकिन उसने स्पष्ट संख्या नहीं बताई।

जयशंकर ने कहा कि भारत ने पिछले 30 साल में चीन के साथ संबंध बनाए हैं और इस रिश्ते का आधार वास्तविक नियंत्रण रेखा पर अमन-चैन रहा है। उन्होंने कहा कि 1993 से लेकर अनेक समझौते हुए हैं जिन्होंने उस शांति और अमन-चैन की रूपरेखा तैयार की, जिसने सीमावर्ती क्षेत्रों में आने वाले सैन्य बलों को सीमित किया, तथा यह निर्धारित किया कि सीमा का प्रबंधन कैसे किया जाए और सीमा पर तैनात सैनिक एक-दूसरे की तरफ बढ़ने पर कैसा बर्ताव करें।

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