नई दिल्ली। केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह केवल चुनौतीपूर्ण वाले राज्यों का मैदान संभालेंगे। इसीलिए बिहार चुनाव से दूर रहे शाह पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु में सक्रिय हो गए हैं। 2021 में जिन राज्यों में चुनाव होना है, उसमें पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु में सरकार बनाना भाजपा का लक्ष्य है। लिहाजा, शाह इन दोनों राज्यों में ज्यादा समय देने वाले हैं। शाह जिस रणनीति से काम करते हैं, उसमें तृणमूल कांग्रेस नेता ममता बनर्जी के लिए शाह का चक्रव्यूह तोडऩा आसान नहीं होगा।
बंगाल और तमिलनाडु विधानसभा चुनाव के लिए अब सिर्फ पांच माह बचे हैं। इन दोनों राज्यों में संगठनात्मक कसावट लाने का काम शाह शुरू कर चुके हैं। बंगाल में उन्होंने पांच पदाधिकारियों को क्षेत्र के हिसाब से जिम्मा दिलाया है। उन्हें अपने क्षेत्र में बैठक करके वहां के राजनीतिक मिजाज की रिपोर्ट देना है। शाह माह में दो दिन बंगाल में डेरा डालेंगे। जिसमें एकसूत्रीय काम संगठन के लोगों से मिलना, उनसे जानकारी लेकर आगे की रणनीति तय करना है। शाह के बंगाल में रहने से कार्यकर्ताओं में उत्साह बढ़ेगा, वहीं बड़े नेताओं को सुस्ती से फुर्ती में लाया जाएगा। ममता बनर्जी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से ज्यादा अमित शाह से खौफ खाती हैं। शाह पार्टी को मजबूत करने के साथ विपक्ष को कमजोर करने में माहिर हैं। ममता के डर की वजह यही है कि जिस तरह उनकी पार्टी में बगावत पनप रही है, उसमें ताकतवर नेताओं के छिटक जाने का खतरा है। क्योंकि तृणमूल कांग्रेस से उपेक्षित रहे मुकुल राय शाह के जरिए ही भाजपा में पहुंचे थे। हाल में उनकी सरकार के दो मंत्री ममता के खिलाफ मुखर हैं, जिससे साफ लग रहा है कि ममता बनर्जी के कुनबे में पलायन का दौर आ सकता है। ममता बनर्जी के डर की एक वजह सारधा चिटफंड घोटाला भी है, जिसमें उनके भतीजे अभिजीत का नाम है। लिहाजा यदि चुनाव के दौरान यह मुद्दा उठा तो ममता बनर्जी के लिए जवाब देना मुश्किल हो जाएगा। ममता बनर्जी लोकसभा चुनावन नतीजों के बाद से परेशान हैं। बंगाल की 42 सीटों में से 18 पर भाजपा की जीत ने उनके माथे पर बल पैदा कर दिया था। इसके बाद बंगाल में ममता ने हिंसा का ऐसा स्वांग रचा है, जिसमें भाजपा के कई कार्यकर्ताओं को अपनी जान गवानी पड़ी है। ममता उसी रास्ते पर चल रही हैं, जिसके खिलाफ संघर्ष करके उन्होंने सत्ता हासिल किया था। तब वामपंथी दलों की हिंसक राजनीति के खिलाफ ममता बनर्जी बंगाल में बदलाव का चेहरा बनी थीं। वहां के लोगों में ममता बनर्जी को लेकर नई उम्मीद जागी थी। लेकिन सत्ता में आने के बाद उन्होंने उसी तुष्टिकरण की नीति का सहारा लिया, जिसके सहारे वामदल तीन दशक तक वहां शासक रहे। मुस्लिम तुष्टिकरण ने ममता बनर्जी का चेहरा बेनकाव कर दिया है। बंगलादेशी घुपैठियों के प्रति हमदर्दी और स्थानीय बंगालियों के प्रति तिरस्कारपूर्ण नीति के चलते ममता बनर्जी के खिलाफ बंगाल में नाराजगी बढ़ती जा रही है। इस नाराजगी को वह हिंसा के जरिए रोकना चाहती हैं, लेकिन बंगाल का मतदाता लोकसभा में तृणमूल कांग्रेस को हार दिलाकर साफ कर दिया है कि वह तुष्टिकरण की नीति को स्वीकार नहीं करेगा।
ममता बनर्जी द्वारा केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह को बंगाल में रोकने का किया गया प्रयास भी उनकी घबराहट को जाहिर कर दिया है। शाह जिस तरह की रणनीति बनाकर काम करते हैं, उसमें उनकी व्यूहरचना को भेदना ममता बनर्जी के लिए आसान नहीं रहेगा। मतदाताओं की नाराजगी और भाजपा में उत्साह के साथ अमित शाह की रणनीति ममता बनर्जी के लिए भारी साबित होगी। शाह ने जिस तरह से दबे पांव उप्र में सपा का सत्ता पटल किया था, उसी तरह बंगाल में तृणमूल कांग्रेस के पैरो तले जमीन खिसकना तय है।
पश्चिम बंगाल की तरह दक्षिण भारत में तमिलनाडु भी भाजपा के लक्ष्य का हिस्सा है। फिलहाल, अन्नाद्रमुक सत्ता में है। इधर भाजपा और अन्नाद्रमुक के रिश्तों में भी खटास पैदा हो गई है। द्रमुक फिर से सत्ता में वापसी की पूरी कोशिश कर रही है। तमिलनाडु की राजनीति द्रविड़ मुनेत्र कडग़म (द्रमुक) और ऑल इंडिया द्रविड़ मुनेत्र कडग़म (अन्नाद्रमुक) के इर्द गिर्द ही घूमता है। दोनों दल बारी-बारी से प्रदेश के साथ-साथ केंद्र की राजनीति में भी अहम भूमिका निभाते रहे हैं, लेकिन अन्नाद्रमुक की प्रमुख जयललिता और डीएमके के प्रमुख करुणानिधि के निधन के बाद तमिलनाडु की राजनीति में एक खालीपन पैदा हुई है और इसी में भाजपा नया विकल्प बन सकती है। इसी प्रयास के तहत अमित शाह 21 नवंबर को चेन्नई दौरे पर जा रहे हैं, जहां उनकी मुलाकात सुपर स्टार रजनीकांत से होनी है। रजनीकांत ने वेबसाइट और पार्टी का लोगो लॉच किया है और तमिलनाडु के विकास के लिए लोगों से जुडऩे की अपील की है। अमित शाह के दिवंगत करुणानिधि के बड़े पुत्र एम.के. अलागिरि से भी मुलाकात की चर्चा है। अलागिरि नई पार्टी बनाने की कवायद में जुटे हैं। फिल्म स्टार कमल हसन ने भी नई पार्टी बनाई है। ऐसे में शाह क्षेत्रीय दलों के साथ मिलकर तमिलनाडु में कमल खिलाने की तैयारी में लग गए हैं।